Indian History: अब मुगलों का महिमामंडन करने वाले झूठे इतिहास का 370 होगा
Indian History: लगता है मोदी सरकार ने मुगलों का गुणगान करने वाले और भारतीयों के मन में हीनभावना भरने वाले झूठे इतिहास को तथ्य आधारित तरीके से लिखवाने का मन बना लिया है।
पिछले साढ़े आठ साल से इस महत्वपूर्ण काम की अनदेखी हो रही थी, ऐसा लगने लगा था कि यह काम मोदी के एजेंडे पर है ही नहीं। लेकिन मुगलों को धूल चटाने वाले अहोम सेनापति लाचित बोरफुकन की 400वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में इतिहास के पुनर्लेखन को सरकार के एजेंडे पर बताया है।
मोदी ने कहा कि भारत के इतिहास को दबाया गया, भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है। भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है। दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा, जो गुलामी के कालखंड में एक साजिश के तहत रचा गया था।
आजादी के बाद जरूरत थी कि हमें गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडों और झूठे इतिहास को बदला जाए, लेकिन ऐसा किया नहीं गया। देश के हर कोने में मां भारती के वीर बेटे-बेटियों ने कैसे आक्रमणकारियों एवं आतताइयों का मुकाबला किया, अपना जीवन समर्पित कर दिया, इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया।
इसी कार्यक्रम में एक दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने इतिहास को फिर से सही परिपेक्ष्य में लिखवाने की बात कह कर संकेत दे दिया था कि इतिहास के पुनर्लेखन का यह महत्वपूर्ण विषय मोदी सरकार के एजेंडे पर आ गया है। और जल्द ही मुगलों का गुणगान करने वाले फर्जी इतिहासकारों के लिखे झूठे इतिहास को धारा 370 की तरह इतिहास के कूड़ेदान में फैंक दिया जाएगा।
अमित शाह ने कहा- "मैं इतिहास का विद्यार्थी हूं, और कई बार सुनने को मिलता है कि हमारा इतिहास सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया, तथा उसे तोड़ा-मरोड़ा गया है... शायद यह बात सच है, लेकिन अब हमें इसे ठीक करना होगा... मै आपसे पूछता हूं - हमारे इतिहास को सही तरीके से और गौरवशाली तरीके से प्रस्तुत करने से हमें कौन रोक रहा है... आगे आइए, शोध कीजिए और इतिहास को दोबारा लिखिए... इसी तरह हम अपनी अगली पीढ़ियों को प्रेरणा दे सकते हैं...।"
आज़ादी के बाद कांग्रेस सरकारों ने इतिहास लिखवाने के लिए वामपंथियों का सहारा लिया था, जिन्होंने भारत के इतिहास का कालक्रम ही घटा दिया। उन्होंने भारत का जन्म 1947 से और उससे पहले रियासतों पर तुर्कों, मुगलों के हमलों से इतिहास शुरू किया, जबकि भारतवर्ष की संस्कृति लाखों साल पुरानी थी और 5000 साल का तो प्रामाणिक इतिहास मौजूद है।
जहां तक प्राचीन भारतवर्ष का संबंध है तो इसकी सांस्कृतिक और राजनीतिक सीमाएं ईरान से लेकर बर्मा तक थीं। वामपंथियों के लिखे इतिहास के कारण पहले मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा था कि 1947 से पहले भारत था ही नहीं।
वामपंथी इतिहासकार मुगलों से पहले के राजाओं को भारतीय इतिहास का हिस्सा ही नहीं मानते, सांस्कृतिक भारत उनकी कल्पना से ही परे है। वे मुगलों के दरबारी इतिहासकारों की दृष्टि से ही भारत को देखते हैं, इसलिए इतिहास की किताबों में मुगलों का इतिहास भरा पड़ा है।
अमित शाह ने इतिहास को तथ्यात्मक और सही परिपेक्ष्य में लिखने वालों को सरकार की तरफ से पूरी मदद का वायदा भी किया है। अमित शाह ने कहा कि औरंगजेब को महान बताने वाले इतिहासकारों ने अहोम वीर लाचित बोरफुकन की मुगलों पर विजय का यह तथ्य छुपा कर रखा था।
इसी तरह अंग्रेजों से हारने के बाद उनकी गुलामी स्वीकार करने वाले टीपू सुल्तान का भी इतिहास में महिमामण्डन किया गया, जबकि टीपू ने जमानत के तौर पर अपने दो बच्चे अंग्रेजों को गिरवी रख दिए थे। टीपू का महिमामण्डन करने वाला इतिहास लिखवाने वाली कर्नाटक की सेकुलर पार्टियां टीपू की जयंती मनाने के लिए हमेशा से छटपटाती रही हैं।
इसी तरह कांग्रेस की सरकारों ने लाचित बोरफुकन की बहादुरी का इतिहास भी पूर्वोतर तक सीमित कर दिया था। सिर्फ पूर्वोतर के लोग ही औरंगजेब को हराने वाले लाचित बोरफुकन का इतिहास जानते रहे। वाजपेयी के शासनकाल में पहली बार लाचित बोरफुकन को राष्ट्रीय पटल पर लाने की कोशिश की गई जब नेशनल डिफ़ेंस अकेडमी, पुणे ने 1999 से लाचित बोरफुकन मेडल देना शुरू किया।
भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा भी लाचित बोरफुकन की रणनीति से ही ली गई है।
मोदी सरकार आने के बाद पूर्वोतर को जिस तरह मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास हुए हैं, उसी का नतीजा है कि लाचित बोरफुकन की 400वीं जयंती भारत सरकार की ओर से दिल्ली के विज्ञान भवन में मनाई गई, ताकि देश की जनता इतिहास को सही परिपेक्ष्य में समझ सके।
आजादी के बाद भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने औरंगजेब को ऐसा हीरो बनाया कि जैसे वह कभी हारा ही नहीं और उसने पूरे देश पर राज किया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व सरमा ने कहा कि दिल्ली में लाचित बोरफुकन की जयंती आयोजित करने की पहल से भारत के लोगों को यह एहसास होगा कि देश में औरंगजेब की तुलना में बेहतर राजा और सम्राट मौजूद थे।
17वीं शताब्दी की बात है, मुगल पूरे हिन्दुस्तान पर कब्ज़ा करने का ख्वाब देख रहे थे। 16वीं शताब्दी के आखिर तक बंगाल की धरती पर पर मुगलिया परचम लहराने लगा था। लेकिन ऐसा नहीं है कि वे आसानी से जीतते चले गए, भारत के कई वीर योद्धाओं ने मुगलों को अपना परचम फहराने से रोका।
1663 में अहोम राजा जयध्वज सिंघा मुगलों से हार गए थे, उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। उनके बेटे चक्रध्वज ने इसका बदला लेने का फैसला किया। अगस्त 1667 में राजा चक्रध्वज ने लाचित बोरफुकन को अहोम सेना का सेनापति बनाया था। कुछ महीने बाद ही लाचित ने गुवाहाटी से मुगलों को मार भगाया था।
औरंगज़ेब ने 1671 में गुवाहाटी वापस लेने के लिए, विशाल मुगल सेना को भेजा था। इस सेना में 30,000 सैनिक, 18,000 घुड़सवार, 15,000 तीरंदाज, 5000 बंदूकधारी, 1000 तोपें और 40 जहाज़ शामिल थे। इसके बावजूद लाचित बोरफुकन ने मुग़ल शासक औरंगज़ेब की सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
असम की धरती मुगलों की सबसे शर्मनाक हार की गवाह है, सराईघाट के युद्ध के बाद मुगल कई सालों तक संभल नहीं पाए थे। सच यह है कि असम की धरती से ही मुगलों की जड़ें हिलने लगी थी।
असम की कहानियों, कविताओं और गीतों में लाचित की बहादुरी का ज़िक्र होता है, बच्चा-बच्चा वीर लाचित की कहानी जानता है। असम में लोगों को वीर लाचित के नाम पर इतना भरोसा है कि कई बार हारती फुटबॉल टीम वीर लाचित का नाम लेती है और टीम में नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वीर लाचित और असम के लोगों का क्या रिश्ता है, लेकिन अधिकांश भारतीय उनका नाम तक नहीं जानते।
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