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कांग्रेस, तीस्ता और घृणा फ़ैलाने वाले एनजीओ का मकड़जाल

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ह्यूमनस्केप नाम की एक पत्रिका में वर्ष 1999 में मेहर पस्तोंजी ने तीस्ता सीतलवाड़ का एक साक्षात्कार लिया. सवालों के क्रम में मेहर ने तीस्ता से पूछा कि "तुमने राजनीतिक दलों से संपर्क किया या उन्होंने तुमसे." इसपर तीस्ता का जवाब था कि "हमने उनसे संपर्क किया." अब ये कौन से राजनीतिक दल थे और उनसे संपर्क का उद्देश्य क्या था, इसपर तीस्ता ने बेबाकी से बताया कि भारतीय जनता पार्टी और उसकी हिंदुत्व विचारधारा के खिलाफ लड़ना है. रही बात, राजनीतिक दलों की, जिनसे संपर्क किया गया तो तीस्ता ने मेहर को बताया कि उसकी पत्रिका कम्युनिल्ज्म कॉम्बैट के लिए उसे 1 करोड़ 50 लाख रुपये कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआई (एम) और दस प्रमुख लोगों से मिले थे.

Teesta Setalvad

तब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी और कांग्रेस एवं वामपंथी दल विपक्ष में थे. इसलिए विपक्ष को एक ऐसे गैर-राजनीतिक साथी की तलाश थी जो भाजपा को वैचारिक तौर पर घेर सके. साल 2002 में जब गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए तो कांग्रेस एवं वामपंथी दलों ने इन्ही लोगों को आगे कर हिंदुत्व के खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया. जब 2004 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की हार हुई और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बनी, तो अगले 10 सालों तक इन गैर-सरकारी संगठनों का जंगलराज कायम हो गया. इन्ही हजारों गैर-सरकारी संगठनों में से कुछ संगठन तीस्ता सीतलवाड़ के भी थे.

15 जुलाई 1998 को तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण अडवाणी ने राज्यसभा को सूचित किया कि देश में विदेशी चंदा लेने के लिए अधिकृत गैर-सरकारी संस्थानों की संख्या 17439 है. साल 2008-09 में इनकी संख्या बढ़कर 23172 हो गयी. हालात इस कदर बिगड़ चुके थे कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री एम. रामचंद्रन ने 6 अगस्त 2013 को लोकसभा को बताया कि 21493 गैर-सरकारी संस्थाओं ने 2006 से 2009 के बीच अपनी वार्षिक रिटर्न ही नहीं भरी है. यही नहीं, गृह राज्य मंत्री ने इस बात का खुलासा भी किया कि "जब हमने इन संस्थाओं को उनकी वार्षिक रिटर्न भरने के लिए डाक के माध्यम से आग्रह पत्र भेजे तो 4138 सस्थाएं ऐसी थी जिनके पते ही गलत निकले और वे पत्र हमारे पास लौट आये."

यूपीए सरकार के मंत्री के बयानों से ही स्पष्ट है कि तब FCRA के लिए लाइसेंस रेवड़ियों की तरह बांटे गए थे. तीन सालों तक हजारों की संख्या में गैर-सरकारी संस्थाओं ने अपनी वार्षिक रिटर्न नहीं भरी और सरकार इस बात को लेकर गंभीर ही नहीं थी. इसके अलावा उनके पते तक सरकार ने सत्यापित करने की कोशिश नहीं की. जब यह संस्थाए देश के कानून के साथ खिलवाड़ करने लगी तो भी सरकार ने कोई कड़े कदम नहीं उठाये.

दिखावटी तौर पर FCRA कानून को सख्त करने के लिए एक विधयेक साल 2006 में राज्य सभा में मनमोहन सिंह सरकार ने पेश था. मगर खुद की पोषित गैर-सरकारी संस्थाओं पर वह लगाम कैसे लगाती? इसलिए उस विधेयक को सरकार ने राज्य सभा की स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया. उसके बाद अपने पूरे कार्यकाल में सरकार ने विधेयक की कोई खोज-खबर नहीं ली.

अब जिस तीस्ता को कांग्रेस और वामपंथी दलों ने मिलकर खड़ा किया था उसकी संस्था - सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस - को 2007 में FCRA मिला. कानून के अनुसार FCRA के बैंक अकाउंट में सिर्फ विदेशों से मिलने वाला पैसा ही जमा कराया जा सकता है. उसमें भारत से मिली रकम को शामिल नहीं किया जा सकता. फिर भी तीस्ता ने घरेलू चंदे के लगभग 12 लाख रुपए विदेशी अंशदान के बैंक अकाउंट में गैर-कानूनी रूप से जमा करा दिए.

FCRA कानून में स्पष्ट है कि जिस संस्था को विदेशी पैसा मिल रहा है उसका इस्तेमाल किसी भी प्रकार के पंजीकृत प्रकाशन में नहीं होगा. जबकि तीस्ता की कंपनी - सबरंग कम्युनिकेशन एंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड के अंतर्गत ही कम्युनिल्ज्म कॉम्बैट का प्रकाशन होता था. विदेशी पैसे से भारत में खबरें छापना कितना घातक होगा इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है. फिर भी कानून का कई वर्षों तक खुलेआम उल्लंघन होता रहा.

साल 2008 से 2012 के बीच Humanist Institute for Co-operation and Developing Countries नाम की एक यूरोपियन संस्था से गुजरात की कई गैर-सरकारी संस्थाओं को 13 लाख यूरो (लगभग 9.25 करोड़ रुपए) मिले थे. इस कुल रकम में तीस्ता सीतलवाड़ को 10000 यूरो मिले. इसके अलावा, 5 मई 2015 में लोकसभा में किरण रिजजू ने बताया कि "तीस्ता के नाम पंजीकृत दो संस्थाओं - सबरंग ट्रस्ट और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस को FCRA के माध्यम से फोर्ड फाउंडेशन से भी पैसा मिला है. फोर्ड फाउंडेशन से उन संस्थाओ को भी पैसा मिला जोकि FCRA में रजिस्टर्ड ही नहीं थी."

इंडिया गेट से: तीस्ता सीतलवाड़: सेक्युलरवाद की आड़ में धन संग्रह और खतरनाक साजिशें
तीस्ता पर कंपनी एक्ट 1956 के अनुसार एक केस दर्ज हुआ है क्योंकि इसने साल 2011-12 की अपनी वार्षिक रिटर्न नहीं भरी है. यानि विदेशों से मिला पैसा कहाँ गया उसका कोई लेखा-जोखा सरकार को नहीं दिया. साथ-ही-साथ उन संस्थाओं को भी पैसा दिया गया जोकि FCRA का पैसा लेने के लिए अधिकृत ही नहीं थी. साल 2015 में गुजरात पुलिस ने जब तीस्ता के FCRA के पैसे की जाँच की तो पता चला कि उसने विदेशी पैसे का इस्तेमाल महँगी शराब पीने, महँगे रेस्टोरेंट में खाना खाने, लाखों रुपए के चश्में खरीदने, और अनेक मोबाइल फ़ोन खरीदने में किया है. यही नहीं, कानों में गन्दगी साफ़ करने के लिए इयर बड्स की खरीददारी भी इसी विदेशी पैसे से होती थी.

यह तो एक तीस्ता की कहानी है और यूपीए सरकार के दौरान न जाने कितनी ऐसी तीस्ताओं ने नेहरू-गाँधी परिवार के वरदहस्त में कानून के साथ खिलवाड़ किया होगा. जब मोदी सरकार में इनकी फंडिंग और खर्चों पर नजर रखी जाने लगी तो इनमें अत्यधिक बैचेनी शुरू हो गयी. वही बैचेनी अब सरकार को गालियां देने के साथ साथ उनके कुकर्मों को छुपाने में मदद न करने वाले प्रत्येक लोकतांत्रिक संस्थान को कोसने में दिख जाती है. अपने अहं और स्वार्थ में इन्हें न संसद के महत्त्व का ख्याल रहता है, न ही न्यायपालिका का.

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

English summary
congress teesta setalvad and nexus of ngo
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