पश्चिम बंगाल चुनाव: TMC में बगावत का फायदा उठाएगी भाजपा!
पश्चिम बंगाल चुनाव: TMC में बगावत का फायदा उठाएगी भाजपा!
कोलकाता: ममता बनर्जी ने अपने 27 सीटिंग विधायकों का टिकट काट दिया है। इसके बाद पार्टी में असंतोष की ज्वाला फूट पड़ी है। इनमें सबसे खास है सिंगूर सीट। इस सीट पर रवीन्द्रनाथ भट्टाचार्या चार बार जीत हासिल कर चुके थे। वे 2006 से लगातार जीत हासिल कर रहे थे। लेकिन इस बार ममता बनर्जी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। अब रवींद्रनाथ नाराज हैं और एलान किया है कि वे तृणमूल का प्रचार नहीं करेंगे। इसी तरह वित्त मंत्री अमित मित्रा को खराब सेहत के नाम पर टिकट नहीं दिया गया है। भांगर विधानसभा सीट से विधायक रज्जाक मोल्ला को टिकट नहीं दिये पर उनके समर्थकों रोड जाम कर दिया। तृणमूल का झंडा और टायर चला कर विरोध भी जताया। मोल्ला सीपीएम छोड़ कर तृणमूल में आये थे और पिछला चुनाव जीते थे। आमडांगा के विधायक रफीकुर रहमान का भी टिकट कट गया है। उनके समर्थकों ने भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन किया है। सतगछिया की विधायक सोनाली गुहा का जब कटा तब वे इतनी निराश हो गयीं कि फूट-फूट कर रोने लगीं। सोनाली गुहा, जटू लाहिड़ी समेत तृणमूल के कई बेटिकट विधायक अब भाजपा में जा सकते हैं।
तृणमूल की स्थिति का फायदा उठाएगी भाजपा !
तृणमूल कांग्रेस में उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद जो उथल-पुथल मची है, भाजपा इसका फायदा उठाना चाहती है। इसमें सबसे खास सीट है ममता बनर्जी की भवानीपुर सीट। वे इस बार नंदीग्राम से चुनाव लड़ रही हैं। भवानीपुर से उन्होंने शोभनदेव चट्टोपाध्याय को उम्मीदवार बनाया है। भवानीपुर में नया चेहरा होने से भाजपा को ये सीट आसान लग रही है। शोभनदेव दीदी की साख पर ही चुनाव लड़ेंगे। इसलिए भाजपा ने यहां अपना पूरा जोर लगा दिया है। भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में कोलकाता नगर निगम के आठ वार्ड हैं। यहां बंगाली वोटरों की तादाद करीब 90 हजार है। गैरबांग्लाभाषी लोगों की संख्या करीब 50 हजार है। मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 45 हजार है। सामाजिक संरचना को देख कर भाजपा ने इस सीट पर बांग्ला और गैरबांग्ला भाषियों को अपने पाले में करने की कोशिशें तेज कर दी है। भाजपा इस चुनाव क्षेत्र में घर घर जा कर लोगों से संवाद कर रही है। ममता बनर्जी ने 2011 में इसी सीट से उपचुनाव जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी सलामत रखी थी।
क्या ममता बनर्जी ने भवानीपुर की अनदेखी की?
2011 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर तृणमूल के सुब्रत बख्शी जीते थे। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री तो बन गयीं थीं लेकिन उस समय वे सांसद थीं। उनका विधायक बनना जरूरी था। सुब्रत ने दीदी के लिए सीट खाली कर दी। दीदी ने यहां से उपचुनाव लड़ा और उन्होंने सीपीआइ की नंदिनी मुखर्जी को करीब 95 हजार वोटों से हराया था। भवानीपुर से उन्होंने 2016 में भी जीत हासिल की थी। लेकिन जिस भवानीपुर ने ममता बनर्जी के लिए इतना उत्साह दिखाया आज उसी को छोड़ कर वे नंदीग्राम चली गयीं। भाजपा इसी बात को घर-घर जा कर प्रचारित कर रही है। वह लोगों को बता रही है कि कैसे दीदी ने उनकी भावनाओं की अनदेखी की।
क्या विधान परिषद का वायदा छलावा है?
ममता बनर्जी ने कहा है, जिन विधायकों को टिकट नहीं मिला है उन्हें विधान परिषद में भेजा जाएगा। उनके लिए विधान परिषद का गठन होगा। फिर उन्हें उच्च सदन में भेजा जाएगा। भाजपा सांसद अर्जुन सिंह ने ममता बनर्जी की इस घोषणा को छलावा बताया है। उन्होंने कहा है कि वे पार्टी में बगावत की आग को ठंडा करने के लिए ये सपना दिखा रही हैं। क्या विधान परिषद का गठन इतना आसान है ? इसके लिए विधायी प्रक्रिया का पालन करना पड़ेगा और इसमें बहुत वक्त लगेगा। सबसे बड़ी बात ये है कि जब वे चुनाव जीतेंगी तभी तो ये वायदा पूरा कर पाएंगी। लेकिन हालात उनके जीतने लायक नहीं हैं। जिन लोगों ने तृणमूल कांग्रेस को खड़ा किया वैसे लोग एक-एक कर उनका साथ छोड़ रहे हैं। अर्जुन सिंह ने कहा, ऐसे बयानों से लगता है कि ममता बनर्जी के आत्मविश्वास में कमी आ गयी है।
हिंदीभाषियों को खुश करने के लिए विधायक का टिकट काटा
कोलकाता महानगर के जोड़ासांको विधानसभा सीट पर इस बार ममता बनर्जी ने तृणमूल हिंदू प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विवेक गुप्ता को टिकट दिया है। इसके लिए उन्होंने सीटिंग विधायक स्मिता बख्शी का टिकट काट दिया है। स्मिता ने इस सीट पर 2011 और 2016 में चुनाव जीता था। वे क्षेत्र में सक्रिय भी थीं। लेकिन जब उनका टिकट कट गया तो तृणमूल के समर्थक भी हैरान रह गये। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी ने इस चुनाव में हिंदी और भोजपुरी भाषियों का वोट हासिल करने के लिए विवेक गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है। चूंकि भाजपा हिंदीभाषी लोगों में लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रही है इसलिए इसके काट में मनीष गुप्ता को मैदान में उतारा गया है। इस सीट पर तृणमूल के पूर्व विधायक दिनेश बजाज की भी नजर थी। लेकिन ममता ने उनको भी टिकट नहीं दिया। अब चर्चा है कि दिनेश बजाज भाजपा के साथ जा सकते हैं। तृणमूल के बागियों की मदद से भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है।