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फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने लैब में बिना पौधों के 'उगाई' कॉफी

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हेलसिंकी, 14 अक्टूबर। कृषि क्षेत्र उन क्षेत्रों में से हैं, जिन पर पर्यावरण परिवर्तन का सीधा और तेज प्रभाव हो रहा है. लेकिन इस क्षेत्र में भी कई बातें ऐसी हैं जो पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं. जैसे कुछ फसलें हैं जिनकी खेती पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है. जैसे कि कॉफी.

Provided by Deutsche Welle

संसाधनों की कमी की चुनौतियों के चलते कॉफी की पारंपरिक खेती पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है. इन्हीं खतरों के संबंध में शोध करते हुए फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने ऐसी कॉफी बनाई है जो पर्यावरण के लिए अच्छी है.

फिनलैंड के इन वैज्ञानिकों ने यह कॉफी 'सेल कल्चर्स' तकनीक का इस्तेमाल करके बनाई है और दावा किया जा रहा है कि इसका स्वाद और गंध दोनों ही असल कॉफी से मिलती जुलती हैं.

फिनलैंड के वीटीटी टेक्निकल रिसर्च के शोधकर्ताओं का कहना है शायद उन्हें पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक कॉफी बनाने की तकनीक मिल गई है. इस तकनीक के जरिए कॉफी बीन्स की खेती किए बगैर ही कॉफी बनाई जा सकती है.

कैसे बनी लैब में कॉफी?

यह तकनीक सेल कल्चर्स पर आधारित है. इसके जरिए बायो रिएक्टर्स में न सिर्फ कृषि के बल्कि जानवरों से मिलने वाले विभिन्न उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं. वीटीटी में इस प्रक्रिया की निगरानी करने वाले शोधकर्ता हाएकी ऐसाला कहती हैं कि हो सकता है इस तरह से बनाई गई कॉफी अभी लोगों को उतनी लजीज ना लगे लेकिन इसमें अरबों डॉलर के कॉफी उद्योग के लिए विशाल संभावनाएं हैं.

जब उनसे पूछा गया कि क्या इस कॉफी का स्वाद असली कॉफी जैसा है, तो ऐसाला ने कहा, "एकदम सौ फीसदी तो नहीं. इसका स्वाद ऐसा है जैसे कई तरह की कॉफी मिला दी गई हो. व्यवसायिक कॉफी बनाने में हमें अभी पूरी कामयाबी नहीं मिली है लेकिन इतना तय है कि यह कॉफी जैसी है."

वीटीटी में रिसर्च टीम की प्रमुख हाइको रिषर कहते हैं कि लैब में तैयार प्रक्रिया पर्यावरण के लिए ज्यादा फायदेमंद कॉफी बनाने का रास्ता खोलती है क्योंकि बहुत ज्यादा मांग के चलते विभिन्न देश बहुत बड़े पैमाने पर धरती का इस्तेमाल कॉफी की खेती के लिए कर रहे हैं और इस कारण जंगल काटे जा रहे हैं.

रिषर कहते हैं कि प्रयोगशाला में तैयार कॉफी में कीटनाशकों व खाद का इस्तेमाल कम होता है और इसे दूर देशों के बाजारों तक ले जाने का परिवहन बचता है.

कई चुनौतियां हैं

हालांकि प्रयोगशाला में तैयार कॉफी के सामने काफी चुनौतियां होंगी. जैसे कि यूरोप में बाजार में उतारे जाने से पहले उसे 'नोवल फूड' के तौर पर अनुमति लेनी होगी.

और सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि कॉफी के दीवाने क्या इसे पसंद भी करेंगे. फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में एक कैफे चलाने वाले सातू कहते हैं कि किसी दिन तो वह राह पकड़नी ही होगी.

उन्होंने कहा, "जिस तरह कॉफी के सारे कुदरती संसाधन खत्म हो रहे हैं, मुझे लगता है कभी तो वह तरीका अपनाना ही होगा. इसलिए हमें उस राह पर चलना ही होगा. और अगर उसका स्वाद अच्छा है, खुश्बू कॉफी जैसी है तो क्यों नहीं? मुझे लगता है कि संभव है."

वीके/एए (रॉयटर्स)

Source: DW

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English summary
wake up and smell the sustainable coffee produced in finnish lab
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