Uttarakhand अनोखी परंपरा, यहां देवता के साथ दौड़ लगाते हैं ग्रामीण, ये है मान्यता
टिहरी बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर दिवाली पर होता है आयोजन
उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपरा सबसे अलग है। साथ ही यहां के त्यौहार भी खास हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है मंगशीर की बग्वाल। जो कि दिवाली के एक माह बाद मनाई जाती है।टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर की दिवाली पर ईष्ट देवता गुरु कैलापीर की पूजा भी होती है। जिनके नाम पर यहां पर मेला भी होता है। यह मेला तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेला आयोजित किया जा रहा है।
Recommended Video
क्षेत्र की समृद्धि और अच्छी फसल के लिए यह दौड़
बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर की बग्वाल के लिए 1001 भैले तैयार किए जाते हैं। इसे गांव में पास खेतों में सामूहिक रूप से खेला जाता है। गुरु कैलापीर देवता की झंडी को मंदिर से बाहर निकाला जाता है। इसके बाद ग्रामीण देव निशान के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं। यह दौड़ आकर्षण का केंद्र रहती है। देवता का खेत मानते हुए इन खेतों में कोई मकान नहीं बनाता है। पौराणिक मान्यता है कि क्षेत्र की समृद्धि और अच्छी फसल के लिए यह दौड़ होती है। इस दौड़ को देखने के लिए दूर दराज क्षेत्रों से भी ग्रामीण आते हैं। पहले दिन गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर निकलकर ग्रामीणों को आशीर्वाद देते हैं। स्नान आदि के बाद देवता बाहर निकाले जाते हैं। इसके बाद फिर खेतों में दौड़ लगाने को ले जाए जाते हैं।
उत्सव दो दिन तक, इसके बाद तीन दिन का मेला भी
देवता दोपहर दो बजे देवता मंदिर से बाहर निकलते हैं। सूर्य अस्त होने से पहले वे मंदिर में प्रवेश करते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि आज से करीब 300 साल पहले हिमाचल से क्षेत्र का ईष्ट देवता गुरु कैलापीर गढ़वाल भ्रमण पर आए थे। उन्होंने विभिन्न जगहों पर भ्रमण किया। उन्हें बूढ़ाकेदार क्षेत्र का जंदवाड़ा नामक जगह भा गई। देवता ने वहीं निवास करने का निर्णय लिया। उस समय वह मंगसीर का महीना था। जिसके स्वागत में ग्रामीणों ने खुश होकर छिलकों को जलाकर देवता का स्वागत किया। तभी से मंगसीर माह में बूढ़ाकेदार क्षेत्र में दीपावली मनाई जाती है। यह उत्सव दो दिन तक चलता है। इसके बाद तीन दिन का मेला भी आयोजित होता है।