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Sundarlal Bahuguna Death: चिपको आंदोलन की पहचान सुंदरलाल बहुगुणा ने पद्मश्री पुरस्कार लेने से किया था इनकार

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ऋषिकेश,21 मई: चिपको आनंदोलन की पहचान और जाने-माने गांधीवादी शख्सियत सुंदरलाल बहुगुणा अपने कर्मों की वजह से धरती पर पर्यावरण की रक्षा के पर्याय बन चुके थे। उनका समाजिक सरोकार काफी कम उम्र से शुरू हुआ था और जबतक जिंदगी रही, वह समाज और पर्यावरण के लिए अपनी ऊर्जा समर्पित करते रहे। चर्चित चिपको आंदोलन से उनका नाता तो ऐसे ही जुड़ा हुआ है कि जब भी दुनिया में कहीं पेड़ों को बचाने की बात उठेगी, तब उनमें गांधी के उस अनुयायी की छवि नजर आएगी। वह जब जीवित रहे, अपना जीवन प्रकृति के संरक्षण के लिए समर्पित किया। अब वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब भी प्रकृति पर कोई खतरा मंडराएगा, उनकी शिक्षा, उनकी चिंता और उनका दिखाया हुआ रास्ता देश के लोगों को बहुत बड़ा संबल देगा।

कैसे शुरू हुआ चिपको आंदोलन ?

कैसे शुरू हुआ चिपको आंदोलन ?

9 जनवरी, 1927 को मौजूदा उत्तराखंड (पुराने उत्तर प्रदेश) के टिहरी के पास मरोदा गांव में जन्मे जाने-माने पर्यावरणवादी सुंदरलाल बहुगुणा ने प्रकृति प्रेम के चलते अपनी छवि हिमालय रक्षक की बनाई थी। उनके 94 साल के जीवन की सबसे बड़ी कामयाबी चिपको आंदोलन है, जिसने सरकारों के काम करने की सोच बदल दी। उनका यह आंदोलन महात्मा गांधी के सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था। इस आंदोलन की शुरुआत अप्रैल 1973 में गढ़वाल के मंडल गांव से हुआ था और देखते ही देखते 5 साल के अंदर हिमालय के कई जिलों तक फैल गया। चिपको का सामान्य सा मतलब है कि पेड़ों से चिपक जाना, ताकि उसे कोई काट ना सके। इसके पीछे की कहानी ये है कि गांव वाले कृषि से जुड़े उत्पादों को बनाने के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल करना चाहते थे, जिसे तत्कालीन सरकार ने मना कर दिया था। लेकिन, जब खुद सरकार ने खेल का सामान बनाने वाली एक कंपनी को अलकनंदा इलाके के जंगलों में एक प्लॉट का आवंटन किया तो लोगों ने उसका जोरदार विरोध शुरू कर दिया।

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उनकी मुहिम जबर्दस्त रंग लाई और पेड़ों की कटाई कम हो गई

उनकी मुहिम जबर्दस्त रंग लाई और पेड़ों की कटाई कम हो गई

स्थानीय एनजीओ की मदद से स्थानीय महिलाएं जंगलों में पहुंच गईं और पेड़ों के चारों ओर घेरा बनाकर उससे चिपकना शुरू कर दिया, ताकि कोई उन्हें काटने के लिए हाथ भी न लगा सके। महिलाओं ने तबतक ऐसा किया जब तक पेड़ काटने वाले वहां से चले नहीं गए। जंगल बचाने की यह मुहिम जंगल की आग की तरह फैली और ज्यादा से ज्यादा गांव और लोग उससे जुड़ते चले गए। महिलाएं जिस तरह से पेड़ों को गले लगाकर उन्हें काटने से रोक रही थीं, वह नजारा अद्भुत था। चिपको आंदोलन की इतनी बड़ी सफलता को देखकर सुंदरलाल बहुगुणा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पेड़ों की कटाई पर पाबंदी लगाने की मांग की। उस समय इस आंदोलन का इतना असर जरूर हुआ कि जंगलों की कटाई के खिलाफ लोगों में जागरुकता आई और पेड़ों की कटाई में काफी कमी आनी शुरू हो गई।

जब उन्होंने पद्मश्री पुरस्कार लेने से मना कर दिया

जब उन्होंने पद्मश्री पुरस्कार लेने से मना कर दिया

हालांकि, पर्यावरण की रक्षा के लिए दार्शनिक सुंदरलाल बहुगुणा ने फिर भी अपनी मुहिम जरा भी धीमी नहीं पड़ने दी और पूर्ण लक्ष्य हासिल करने के लिए वह अपने रास्ते चलते रहे। लोगों के समर्थन का दायरा बढ़ाने और पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए उन्होंने 1980 के दशक की शुरुआत में हिमालय के इलाकों में 5,000 किलोमीटर लंबा मार्च शुरू किया। वह गांव-गांव गए और लोगों का समर्थन जुटाना शुरू किया। वह पर्यावरण के प्रति लोगों को तो जगा ही रहे थे साथ ही साथ समाज के कमजोरों और महिला सशक्तिकरण के लिए भी काम कर रहे थे। उनका पूरा आंदोलन महात्मा गांधी के विचारों सत्याग्रह और अहिंसा पर आधारित था। इसको लेकर वो इंदिरा गांधी से भी मिले और आखिरकार उनकी अपील की सरकार ने सुध ली और हरे पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई। इस दौरान 1981 में उन्हें केंद्र सरकार की ओर से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा भी हुई, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया। अलबत्ता, 1987 में चिपको आंदोलन को पर्यावरण संरक्षण और भारत के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के हित में आवाज उठाने के लिए 'राइट लाइवलिहुड अवार्ड' जरूर मिला।

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन की भी अगुवाई की

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन की भी अगुवाई की

बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम रोल अदा किया था। जब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी तो उन्होंने इस बांध के खिलाफ करीब डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल किया था। वह टिहरी बांध का इसलिए विरोध कर रहे थे, क्योंकि इससे जंगलों के डूब क्षेत्र में आने का खतरा था। लेकिन, सरकार नहीं झुकी और इस बांध को तैयार किया गया। 2009 में उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया।

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लाहौर में हरिजनों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई

लाहौर में हरिजनों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई

वैसे सुंदरलाल बहुगुणा को लोग सीधे चिपको आंदोलन और टिहरी आंदोलन से ही जोड़ते हैं। लेकिन, कम ही लोग जानते हैं कि उनका सामाजिक सरोकार से वास्ता तभी शुरू हो गया था, जब वह महज 13 साल के थे। वह गांधी जी के विचारों से प्रेरित थे और स्वतंत्रता संग्राम में उनके आंदोलनों से काफी प्रभावित थे। वह पढ़ाई के लिए लाहौर गए थे तो वहां भी बहुत ही कम उम्र में हरिजनों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी। उन्होंने टिहरी के आसपास शराब के खिलाफ भी आंदोलन चलाया था, लेकिन बाद में वन और पर्यावरण की रक्षा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो गए थे।(तस्वीरें सौजन्य- ट्विटर)

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English summary
Who was Sunderlal Bahuguna, what was the Chipko movement, his complete profile
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