योगी का नामांकन: बाबा गोरखनाथ पार लगाएंगे भाजपा की चुनावी नैया !
लखनऊ, 04 फरवरी। गोरखपुर से पांच बार सांसद रहने वाले योगी आदित्यनाथ पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। नेता होने के साथ-साथ वे गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर भी हैं। भाजपा के अलावा नाथ सम्प्रदाय के करोड़ों अनुयायी उनकी सशक्त राजनीति का आधार हैं। यह आधार गोरखपुर-बस्ती मंडल की 41 सीटों समेत पूर्वांचल की 165 विधानसभा सीटों तक फैला हुआ है।
इसलिए योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा चुनाव नामांकन के पहले गोरखनाथ मंदिर में विधि विधान के साथ धार्मिक अनुष्ठान किया। उन्होंने अपने गुरु अवैद्यनाथ की समाधि पर जा कर उनका आशीर्वाद लिया। फिर रुद्राभिषेक और हवन किया। गोशाला में जा कर गोसेवा की। इन धार्मिक कृत्यों का उनकी राजनीति में बहुत महत्व है। गुरु गोरखनाथ नाथपंथ के प्रवर्तक थे। गोरखनाथ मंदिर नाथ सम्प्रदाय का सर्वोच्च सिद्धपीठ है।
गोरखनाथ मंदिर और जनआस्था
योग को जन जन तक पहुंचाने में गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) मंदिर का बहुत बड़ा योगदान है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गोरखनाथ मंदिर में त्रेतायुग से ही अखंड ज्योति जल रही है। अल्लउद्दीन खिलजी और औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट किया था लेकिन तब भी अखंड ज्योति जलती रही थी। शोधकर्ता जॉर्ज ब्रिग्स ने इसके बारे में लिखा है। अखंड ज्योति धुनी का भस्म बहुत ही पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस भस्म को लगाने से सभी तरह के कष्ट मिट जाते हैं। जो ज्योति कई सौ साल से लगातार जल रही है उसके प्रति अटूट श्रद्धा का होना स्वभाविक है। इस मान्यता ने करोड़ों सामान्य लोगों को इस मंदिर के प्रति आस्थावान बनाया है। जो नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी नहीं हैं वे भी इस पवित्र भस्म के लिए मंदिर आते हैं। यानी मंदिर से पूर्वांचल के करोड़ों लोगों की जनभावना जुड़ी हुई हैं। और राजनीति में आस्था की यही शक्ति विचारवाद या जातिवाद पर भारी पड़ जाती है। आस्था की इसी ताकत ने योगी आदित्यनाथ को एक दिग्गज नेता बनाया है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा, गोरखनाथ मंदिर के इसी धार्मिक प्रभाव को भुनाना चाहती है। गोरखनाथ मंदिर का राजनीति में प्रवेश हिंदू महासभा के जरिये हुआ था।
गोरखनाथ मंदिर और चुनावी राजनीति
गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ भारत के बड़े हिन्दूवादी नेता थे। उन्होंने ही पहली बार अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाने की वास्तविक संकल्पना की थी। 22 दिसम्बर 1949 की रात को अयोध्या में विवादित ढांचे की मुख्य गुंबद के नीचे जब रामलला की मूर्ति प्रगट हुई थी तब महंत दिग्विजयनाथ अन्य साधु-संतों के साथ वहां भजन-कीर्तन कर रहे थे। रामलला की मूर्ति यहां प्रतिस्थापित होने के बाद ही मंदिर निर्माण का दावा मजबूत हुआ था। यानी आजादी के तुरंत बाद राम मंदिर आंदोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ता गोरखनाथ मंदिर के संत दिग्विजयनाथ थे। वे हिंदू महासभा और अखिल भारतीय रामायण महासभा के नेता थे। 1967 में महंत दिग्विजयनाथ ने हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव जीता था। 1969 में महंत दिग्विजयनाथ का निधन हो गया। इसके बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर बने। पीठाधीश्वर होने के नाते महंत अवैद्यनाथ को राजनीति भी विरासत में मिली। महंत दिग्विजयनाथ के निधन के बाद गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में महंत अवैद्यनाथ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लेकिन 1971 के लोकसभा चुनाव में महंत अवैद्यनाथ चुनाव हार गये। उन्हें कांग्रेस के नरसिंह नारायण ने हराया था। 1977 और 1980 में महंत अवैद्यनाथ ने चुनाव नहीं लड़ा। 1984 में भाजपा ने गोरखपुर से लक्ष्मी शंकर खरे को टिकट दिया था जिनकी हार हुई। वे चौथे स्थान पर रहे थे। 1989 के लोकसभा चुनाव में महंत अवैद्यनाथ फिर चुनावी मैदान में आये। वे हिंदू महासभा के टिकट पर सांसद बने। तब तक गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर की राजनीति हिंदू महासभा में निहित थी। भाजपा का वहां प्रवेश नहीं हुआ था।
गोरखनाथ पीठाधीश्वर का भाजपा से जुड़ाव
1991 महंत अवैद्यनाथ ने पहली बार भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। वे जीते भी। इसके बाद गोरखनाथ मंदिर की राजनीति भाजपा में अंतर्निहित हो गयी। इसके पहले यहां जनसंघ और भाजपा के विधायक चुने गये थे। लेकिन वे गोरखनाथ मंदिर से नहीं जुड़े थे। हिंदू महासभा और जनसंघ के कोर वोट एक ही थे। लोकसभा चुनाव में ये वोटर हिंदू महासभा को वोट देते और विधानसभा चुनाव में जनसंघ (भाजपा) को। 1967 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर शहर सीट से जनसंघ के उदय प्रताप दुबे जीते थे। 1974 और 1977 में जनसंघ के अवधेश कुमार श्रीवास्तव गोरखपुर शहर सीट से विधायक बने थे। 1991 में महंत अवैद्यनाथ के जरिये भाजपा, गोरखपुर पीठाधीश्वर की राजनीति का आधार बनी। महंत अवैद्यनाथ 1996 में भी भाजपा के टिकट पर गोरखपुर से सांसद बने। 1998 के चुनाव में महंत अवैद्यनाथ ने अपना उत्तराधिकार योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया।
योगी आदित्यनाथ का नामांकन
योगी आदित्यनाथ ने 2017 में सांसदी छोड़ कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला था। पांच साल शासन के बाद वे फिर जनादेश लेने के लिए खुद मैदान में हैं। गोरखपुर शहर सीट पर 33 साल से भाजपा का कब्जा है। योगी आदित्यनाथ के नामांकन को भाजपा ने एक बड़े पॉलिटिकल इवेंट के रूप में पेश किया। सामाजिक समीकरण को ध्यान में रख कर उनके चार प्रस्तावक तैयार किये गये। गृहमंत्री अमित शाह और यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान उनके साथ मौजूद रहे। योगी आदित्यनाथ के नामांकन के बाद अमित शाह ने गोरखनाथ मंदिर में जा कर पूजा की। यानी नामांकन के पहले पूजा और नामांकन के बाद पूजा। राजनीतिक मुद्दों के अलावा भाजपा गोरखनाथ मंदिर के धार्मिक अनुष्ठान से भी अपना कल्याण चाहती है।
यह भी पढ़ें: जानिए कितनी संपत्ति के मालिक हैं योगी आदित्यनाथ ? कितना महंगा है कान का कुण्डल