वोट बैंक साधने के लिए बीजेपी में भी अब हो रहा दलित चेहरों का उभार, जानिए
लखनऊ, 28 जनवरी: उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी अब हर वह मुमकिन कोशिश कर रही है जिससे उसे चुनावी फायदा हो सके। एक तरफ जहां बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की पैठ दलित समाज में कम हो रही है वहीं दूसरी ओर बीजेपी भी अब दलित वोटरों को रिझाने के लिए अपने चेहरों को आगे कर रही है ताकि उसका लाभ मिल सके। पहले उत्तराखंड की राज्यपाल रहीं बेबीरानी मौर्य को त्यागपत्र दिलाकर उन्हें विधानसभा का टिकट पकड़ाया उसी तरह कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरूण को साधने में भी कामयाब रही। असीम अरुण को भी बीजेपी जाटव दलित चेहरों को आगे कर रही है।
दलितों में पैठ बनाने की कवायद में जुटी बीजेपी
दलितों में पैठ बनाने के लिए पार्टी ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। खासतौर से मायावती की दलित वोटों पर ढीली पड़ती पकड़ को देखते हुए अब बीजेपी ने ऐसे चेहरों को आगे लाना शुरू कर दिया है जो किसी न किसी बहाने से फायदेमंद हों। बेबीरानी मौर्य से लेकर असीम अरुण तक बीजेपी की पौध उसी रणनीति का हिस्सा है जिसपर बीजेपी अपना दूर का फायदा देख रही है। बीजेपी को लग रहा है कि इन चेहरों पर दांव लगाकर कुछ पर्सेंट दलितों को अपने फेवर में किया जा सकता है। विधानसभा चुनाव में अगर कुछ फीसदी दलित भी पार्टी से जुड़ने में कामयाब हो गए तो इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।
बेबीरानी मौर्य के बहाने आगरा में जाटव बेल्ट पर नजर
उत्तराखंड में राज्यपाल रहने के दौरान बेबीबरानी मौर्य पर रिश्वत के आरोप लगे थे। इन आरोपों के बीच चुनाव से महज कुछ समय पहले ही बीजेपी ने बेबीरानी को हटा दिया और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बना दिया। दरअसल इसके पीछे बीजेपी की सोची समझी रणनीति काम कर रही थी। इसके बाद बीजेपी ने उन्हें विधानसभा का टिकट भी दे दिया है। बेबीरानी मौर्य के सहारे बीजेपी आगरा में दलित- जाटव समुदाय में पैठ बनाना चाहती है। इसके साथ ही उनका असर आसपास की कई विधानसभा सीटों पर पड़ सकता है। इसबार सपा और रालोद के गठबंधन ने बीजेपी की सियासत को हाशिए पर लाकर रख दिया है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में आगरा की नौ विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी कई सीटों पर डगमगा रही है। इनमें आगरा की ग्रामीण विधानसभा भी शामिल है। आगरा ग्रामीण विधानसभा सीट से बीजेपी ने पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य को प्रत्याशी बनाया है।
असीम अरुण मैनपुरी बेल्ट में बीजेपी को देंगे धार
असीम अरुण 16 जनवरी को ही बीजेपी में शामिल हुए हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस में कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहते हुए वीआरएस (ऐच्छिक सेवानिवृत्ति) की सोशल मीडिया पर घोषणा की थी। चर्चा है कि इससे पहले ही उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। साथ ही उन्होंने डीजीपी मुकुल गोयल को वीआरएस के लिए अर्जी दे दी थी। बीजेपी ने असीम अरुण की जिस कन्नौज सीट से उतारा है, उसे समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। 2017 में मोदी लहर के दौरान भी सपा कन्नौज विधानसभा सीट को जीतने में कामयाब हो गई थी। कन्नौज सुरक्षित सीट से सपा के अनिल कुमार दोहरे ने कड़े मुकाबले में बीजेपी के बनवारी लाल दोहरे को हराया था। वहीं 2007, 2012 और 2017 में सपा के अनिल कुमार दोहरे ने यहां से जीत दर्ज की। अब पूर्व असीम अरुण के लिए सपा के इस किले को भेदना आसान नहीं होने वाला है।
पूर्व डीजीपी बृजलाल भी बीजेपी के दलित एजेंडे को बढ़ा रहे आगे
सीएम योगी ने दलित एजेंडे को धार देते हुए पूर्व डीजीपी बृजलाल को अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं, अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल को जाति वित्त विकास निगम का अध्यक्ष बनाया है। ईमानदार और साफ छवि के बृजलाल मायावती सरकार में यूपी के डीजीपी थे और मायावती के बेहद करीबी जाने जाते थे। 2016 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। बाराबंकी में एसपी के पद पर रहते हुए बृजलाल, अफीम माफिया और तस्करों पर अंकुश लगाने के लिए चाफी चर्चित हुए थे। लखनऊ में भी एसएसपी के पद पर रहते हुए क्राइम कंट्रोल करने के लिए वे काफी मशहूर थे। दलितों और अनुसूचित जन जाति के उत्थान के लिए वे हमेशा संघर्षशील रहे हैं। अब जाहिर है कि सीएम के इस फैसले से भाजपा को रूठे हुए दलित समाज को मनाने में आसानी होगी।