यूपी चुनाव: क्या पति-पत्नी के झगड़े में सास बन गयी है भाजपा ? बेटे पर ही मेहरबान क्यों ?
लखनऊ, 07 फरवरी। क्या पार्टी में अपमान झेल रही महिलाओं का साथ नहीं देती भाजपा ? क्या पति-पत्नी के झगड़े में भाजपा की भूमिका सास की तरह हो गयी है ? हमेशा बेटे का पक्ष ही लेती है, बहू का नहीं ? ये सवाल इस लिए पूछे जा रहे हैं क्यों कि यूपी चुनाव में भाजपा ने दो पत्नियों का टिकट काट कर उनके पति को उम्मीदवार बना दिया है। अमेठी की विधायक गरिमा सिंह और सरोजनी नगर की विधायक स्वाति सिंह को भाजपा ने बेटिकट कर दिया है। गरिमा सिंह का अपने पति संजय सिंह से अलगाव हो चुका है। दोनों की दुश्मनी जगजाहिर है। कोर्ट से लेकर सड़क तक दोनों लड़ते रहे हैं। लेकिन इस बार भाजपा ने अमेठी से संजय सिंह को टिकट दिया है।
सरोजनी नगर की विधायक स्वाति सिंह मंत्री हैं। टिकट को लेकर उनकी अपने पति दयाशंकर सिंह से अनबन चल रही थी। इस झगड़े में भाजपा ने दयाशंकर सिंह का पक्ष लिया। उन्हें बलिया से उम्मीदवार बना दिया। घरेलू झगड़े में भाजपा ने क्यों रुचि दिखायी? अगर उम्मीदवार बदलना ही था तो किसी नये चेहरे को क्यों नहीं मौका दिया ? क्या संजय सिंह और दयाशंकर सिंह जीत की गारंटी हैं जो सीटिंग विधायक का टिकट काट दिया गया ?
गरिमा सिंह की पृष्ठभूमि ?
अमेठी पहले सुल्तानपुर जिले का हिस्सा थी। अब अमेठी खुद जिला है। अमेठी की विधायक गरिमा सिंह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की भतीजी हैं। वीपी सिंह का संबंध प्रयागराज के मांडा राजघराने से है। वीपी सिंह को राजा मांडा के नाम से भी जाना जाता था। उनके छोटे भाई का नाम हरिबक्श सिंह था। गरिमा सिंह हरिबक्श सिंह के बेटी हैं। अमेठी रियासत बहुत पुरानी है। अमेठी के सातवें राजा रणंजय सिंह 1969 में जनसंघ के टिकट पर अमेठी से विधायक चुने गये थे। 1974 में वे कांग्रेस से विधायक बने थे। रणंजय सिंह को कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अमेठी जिले के बेटुआ प्रखंड के अमेयमाफी गांव के रहने वाले संजय सिंह को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था। संजय सिंह के जैविक पिता का नाम गयाबख्श सिंह था। संजय सिंह 1962 में अमेठी के राजकुमार बने थे। तब वे पांचवी क्लास में पढ़ते थे। 1974 में गरिमा सिंह की शादी संजय सिंह से हुई थी। यह दो राजघरानों का संबंध था। आगे चल कर संजय सिंह, रणंजय सिंह की सम्पत्ति और राजनीति का उत्तराधिकारी बने।
क्या संजय सिंह का गरिमा से तलाक अवैध है ?
संजय सिंह और गरिमा सिंह को तीन संतान हुईं। अनंत विक्रम सिंह, महिमा सिंह और शैव्या सिंह। 1986 के आसपास संजय सिंह की जिंदगी में अमिता मोदी का प्रवेश हुआ था। अमिता नेशनल बैडमिंटन चैम्पियन थीं और वे मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की पत्नी थीं। कहा जाता है कि अमिता से नजदीकी के बाद संजय सिंह ने 1995 में गरिमा सिंह को तलाक दे दिया था। इस मामले में गरिमा सिंह का कहना है कि ये तलाक फर्जी है, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अवैध करार दिया है। गरिमा सिंह का आरोप है कि संजय सिंह ने सीतापुर की अदालत में किसी दूसरी महिला को खड़ा कर तलाक हासिल की थी। उस समय वे लखनऊ में थीं। 1989 में संजय सिंह ने गरिमा सिंह को अपने महल से निकाल दिया था। आरोप है कि संजय सिंह ने अपने बच्चों को भी गरिमा सिंह के खिलाफ भड़का दिया था। इन बातों से निराश हो कर गरिमा सिंह लखनऊ में रहने लगीं। वे अपने आप को कानूनी रूप से संजय सिंह की पत्नी मानती रहीं। 2014 में गरिमा सिंह अचानक अमेठी राजघराने के एक और महल भूपति पैलेस में रहने के लिए पहुंच गयी। करीब एक सौ कमरे वाला भूपति महल एक आलिशान इमारत है।
गरिमा सिंह को जनता का समर्थन
2014 में जब गरिमा सिंह अपने तीनों बच्चों के साथ भूपति महल में रहने आयीं तो बड़ा विवाद हो गया। वहां संजय सिंह के हथियारबंद आदमी महल की रखवाली कर रहे थे। वे गरिमा के आने पर विरोध करने लगे। लड़ाई -झगड़ा शुरू हो गया। यह देख कर महल के आसपास रहने वाले लोग वहां जमा हो गये। स्थानीय लोग गरिमा सिंह को अमेठी की रानी मानते थे। जब संजय सिंह के हथियारबंद लोग गरिमा सिंह पर ताकत दिखाने लगे तो स्थानीय लोग भड़क गये। वे गरिमा सिंह के समर्थन में नारा लगाने लगे- रानी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। जब गरिमा सिंह महल के झरोखे में आ कर जनता का अभिवादन करने लगीं तो वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो गयी। भीड़ लगातार गरिमा सिंह के समर्थन में नारे लगाती रही। यह देख कर संजय सिंह के हथियारबंद कारिंदे हवाई फायरिंग करते हुए वहां से भाग गये। स्थानीय लोगों का कहना था कि अमेठी राजघराने ने रानी गरिमा सिंह के साथ बुरा सलूक किया था। इसलिए वे रानी गरिमा के साथ हैं। विवाद बढ़ने पर मामला पुलिस और कोर्ट तक पहुंच गया। हिफाजत के लिए मुख्य दरवाजा बंद कर दिया गया था। किसी बाहरी आदनी के जाने पर रोक लगा दी गयी। इस स्थिति में गरिमा सिंह अपने बेटे-बेटियों के साथ महल में फंस गयी थीं। वे भूख से परेशान थे। तब स्थानीय लोगों ने बाल्टी में भोजन भर कर रस्सी के सहारे उसे महल में भेजा था।
सीटिंग विधायक गरिमा सिंह का टिकट क्यों कटा ?
जनता की सहानुभूति गरिमा सिंह के साथ थी। 2017 के चुनाव में ये बात साबित हो गयी थी। 2017 में भाजपा ने गरिमा सिंह को अमेठी से उम्मीदवार बनाया था। संजय सिंह की दूसरी पत्नी अमिता सिंह (मोदी) ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। संजय सिंह ने गरिमा सिंह के खिलाफ खूब प्रचार भी किया था। लेकिन जनता ने अपना समर्थन गरिमा सिंह को दिया। गरिमा सिंह को 64 हजार से अधिक वोट मिले और विजयी रहीं। अमिता सिंह को करीब 20 हजार वोट ही मिले थे और वे चौथे पायदान पर रहीं थीं। संजय सिंह कई बार दल बदल चुके हैं। वे कभी कांग्रेस में रहते हैं तो कभी भाजपा में। 2017 में वे कांग्रेस में थे। 2019 में भाजपा में आ गये थे। जब जनता गरिमा सिंह के साथ थी तब फिर भाजपा ने क्यों उनका टिकट काट दिया ? क्या संजय सिंह ने जोड़तोड़ से टिकट हासिल कर ली ?
संजय सिंह हार चुके हैं विधानसभा चुनाव
ऐसा नहीं है कि संजय सिंह जीत की गारंटी हैं। अगर गरिमा सिंह के साथ कोई जोखिम थी तो ये जोखिम संजय सिंह के साथ भी हो सकती है। संजय सिंह 1989 में अमेठी विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। वे जनता दल के टिकट पऱ खड़े हुए थे। जनता दल का बोलबाला था। बोफोर्स विवाद के कारण कांग्रेस के खिलाफ हवा बह रही थी। इसके बाद भी संजय सिंह चुनाव हार गये थे। उन्हें कांग्रेस के हरिचरण यादव ने बुरी तरह पराजित किया था। हरिचरण को करीब 53 हजार वोट मिले थे जब कि संजय सिंह करीब 20 हजार वोट ही ला सके थे। फिर वे लोकसभा का चुनाव लड़ने लगे। उनकी दलीय आस्था बदलती रही है। संजय सिंह 33 साल बाद विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। क्या यह कम जोखिम वाली बात है ?
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