योगी के साथ यूपी में नई सियासत की शुरूआत!
यूपी में भाजपा का लम्बे अरसे का वनवास खत्म होने के साथ ही योगी आदित्यनाथ सूबे के 21वें मुख्यमंत्री बन गए।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (यूपी) की सियासत ने जबर्दस्त करवट ली है। निश्चित रूप से यहां के लोगों को अब धर्म और सियासत के कॉकटेल का स्वाद मिलेगा। गोरखपुर के सांसद और पूर्वांचल के लोगों बड़े हितैषी समझे जाने वाले योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री बनते ही यहां एक नई तरह की सियासत की शुरूआत हो गई। बेशक, यूपी के पूर्वांचल इलाके में जश्न का माहौल है।
आपको बता दें कि सीएम मनोनीत होने के बाद योगी आदित्यनाथ ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एजेंडे 'सबका साथ, सबका विकास' को आगे बढ़ाने की बात कहकर यह संकेत दिया कि उनके बारे में जो नकारात्मक बातें गढ़ीं जाती हैं, वे वैसा नहीं है। इससे यह प्रतीत हो रहा है कि यूपी के नए सीएम योगी आदित्यनाथ प्रदेश के हर वर्ग, समुदाय को एक नजर देखेंगे और सबके लिए काम करेंगे। यही लोगों की अपेक्षा भी है।
इन अपेक्षाओं पर योगी खरे उतरेंगे, यह विश्वास भी है। हालांकि राजनीति के ज्ञानी मानते हैं कि भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने हिन्दुत्व वाले एजेंडे को आगे करने के लिए योगी आदित्यनाथ को चुना है। इतना ही नहीं योगी के सीएम बनने में आरएसएस के बड़े नेताओं का भी प्रभाव माना जा रहा है। इसलिए यह कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही यूपी में एक नई सियासत की शुरूआत हुई है।
यूपी में भाजपा का लम्बे अरसे का वनवास खत्म होने के साथ ही योगी आदित्यनाथ सूबे के 21वें मुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ ही केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा उप मुख्यमंत्री बने। यूपी की सियासत में इन चेहरों को देखकर राजनीतिक रणनीतिकार यह सवाल कर रहे हैं कि क्या भाजपा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए ही विकास का राग अलापती है और चुनाव जीत जाने के बाद अपने मूल मुद्दे यानी हिन्दुत्व के एजेंडे पर वापस आ जाती है। इसके लिए उत्तर प्रदेश में नव मुख्यमंत्री के चयन का उदाहरण दिया जा रहा है। क्योंकि 45 साल के योगी आदित्यनाथ की छवि एक कट्टर हिन्दूवादी नेता के रूप में रही है।
हमेशा हिन्दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश
साल 1998 से गोरखपुर के लगातार पांच बार सांसद रहे आदित्यनाथ हिन्दू युवा वाहिनी के संरक्षक और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। उन्होंने अक्सर अपने भाषणों में लव जेहाद, धर्मांतरण और समान नागरिक संहिता की बात की है। मतलब साफ है कि उन्होंने हमेशा से हिन्दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश की है। उनकी छवि हिन्दुत्ववादी रही है। बावजूद इसके भाजपा ने इन्हें इस अहम प्रदेश में सत्ता की बागडोर सौंपी है। दूसरी तरफ चुनावी घोषणा पत्रों में भी भाजपा ने हमेशा विकास, सुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफत की बात कही। राम मंदिर निर्माण पर भी पार्टी ने बहुत कुछ नहीं कहा। जानकार यह भी कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ के चाहने वालों की इच्छा रही है कि अयोध्या में राम मंदिर बने। इसके मद्देनजर योगी कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं।
पुराने एजेंडे से बाहर नहीं निकल पाई भाजपा
यूपी में योगी आदित्यनाथ को स्थापित करने से जहां एक बड़ा तपका जश्न में डूबा है, वहीं कुछ राजनीति के ज्ञाता इस फैसले में ‘मीन-मेष' निकालने में जुटे हुए हैं। कहते हैं कि भाजपा अपने पुराने एजेंडे से बाहर नहीं निकल सकी है। यह अलग बात है कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब चुनावी भाषण देते हैं तो विकास की चासनी में हिन्दुत्व के एजेंडे को लपेट कर जनता के सामने परोसते हैं। यूपी विधान सभा चुनाव में भी पीएम मोदी ने रमजान पर बिजली देने और दीवाली पर बिजली नहीं देने की बात कही थी। इसके अलावा उन्होंने श्मसान और कब्रिस्तान का मुद्दा उठाया था।
पीएम मोदी के भाषण से लगा ऐसे
जाहिर है कि पीएम के मुंह से निकले ऐसे मुद्दे हिन्दू मतदाताओं को गोलबंद करने में कामयाब रहे लेकिन चुनाव जीतने के बाद जब 12 मार्च को पीएम मोदी ने भाजपा मुख्यालय में ओजस्वीपूर्ण और भावुक भाषण दिया तो ऐसा लगा कि भाजपा और खुद प्रधानमंत्री मोदी अब दोबारा हिन्दुत्व के एजेंडे पर नहीं लौटेंगे, सिर्फ विकास और सुशासन की राह पर चलेंगे और अपने मुख्यमंत्रियों के चलने के लिए प्रेरित करेंगे। लेकिन पांच-छह दिनों में ही भाजपा ने यूटर्न लेते हुए फिर से अपने मूल चरित्र (हिन्दुत्व) का प्रदर्शन करा दिया। निश्चित रूप से भाजपा के इस फैसले से यूपी के पूर्वांचल के बहुसंख्यक वर्ग अधिसंख्य लोग बहुत खुश है। इसे योगी आदित्यनाथ की खास लोकप्रियता ही कही जाएगी कि पूर्वांचल का अमूमन हर तपका यह महसूस कर रहा है कि यूपी के सीएम योगी नहीं वे ‘खुद' हैं।
हिन्दुत्व की हवा बनाने के लिए थी चुनौती
कहा जा रहा है कि ऐसी परिस्थितियों में देश के सबसे बड़े राज्य में जहां से लोकसभा के 80 सदस्य चुने जाते हैं, वहां हिन्दुत्व की हवा बनाए रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती थी। इस काम के लिए सबसे मुफीद योगी आदित्यनाथ ही भाजपा को एक खेवनहार के रूप में नजर आए। भाजपा और संघ को भरोसा है कि योगी के नेतृत्व में 2019 की चुनावी बैतरणी पार करने में पार्टी सफल हो जाएगी। देश के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपने एक लेख में स्पष्ट किया है कि भाजपा ने विशाल बहुमत हासिल करने के बाद भी उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनाया है तो इससे यही ज़ाहिर होता है कि पार्टी की राजनीति में अगर लॉग इन 'विकास' है तो पासवर्ड 'हिंदुत्व' है।
भाजपा की राजनीति ये नई बात नहीं
बीजेपी की राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है। वे विकास की बात ज़रूर करते हैं और ये थोड़ा बहुत होता भी है, लेकिन उनका पूरा अस्तित्व हिंदुत्व के मुद्दे पर टिका है। पार्टी की 'कोर आइडेंटिटी' जिस हिंदुत्व में हैं, उसमें योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की बड़ी भूमिका रही है। इसके साथ ये भी हक़ीकत है कि यूपी के बीजेपी कैडर में योगी आदित्यनाथ सबसे लोकप्रिय नेता हैं। आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने में उनकी अपनी लोकप्रियता और पार्टी की हिंदुत्व राजनीति की अहम भूमिका है।
उपेक्षा करना आसान नहीं
बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की आबादी में 18 से 20 फ़ीसदी मुसलमान हैं। इतने बड़े समुदाय की न तो उपेक्षा करना आसान है और न ही उनका भरोसा जीतना। कल तक जिस तरह से योगी आदित्यनाथ मुसलमानों के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं, लेकिन अब वे सबका साथ सबका विकास कर खुद के लिबरल होने का संकेत भी दे रहे हैं। इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश तेजी विकास की रफ्तार पकड़ेगा।यदि योगी आदित्यनाथ की सियासी शैली की बात करें तो उनकी नजर में हिन्दुत्व मिशन है और राजनीति सेवा का माध्यम।
किस रफ्तार से होगा विकास
वे संतों की उस परंपरा से ताल्लुक रखते हैं, जो धर्म और राजनीति को एक सिक्के का दो पहलू मानती है। पूर्वांचल में वे राजनेता से ज्यादा ‘योगी महाराज' के नाम से जाने और माने जाते हैं। बहरहाल, देखना है कि योगी आदित्यनाथ यूपी के विकास की रफ्तार को किस दिशा में ले जाते हैं।
ये भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश: जानिए कौन-कौन है टीम योगी के खिलाड़ी