Pics: मुस्लिम महिला की अंधेरी जिंदगी में 'शिव' लेकर आए उम्मीद की रोशनी
अक्सर लोग गैर मजहब और गैर धर्म के काम को करने से परहेज करते हैं लेकिन इस भेदभाव से हटकर मोहम्मद अतहर ने सोचा और नन्ही ने तो इसे एक मिसाल ही बना दिया।
वाराणसी। धर्म और संस्कृति की नगरी काशी जहां एक तरफ मंदिरों की घंटी बजती है तो दूसरी तरफ मस्जिदों के अजान की आवाज सुनाई पड़ती है। यही आवाज गंगा जमुनी तहजीब को बरकरार रखती है। इसी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा हैं एक मुस्लिम परिवार जहां महिलाओं ने अपने जीवन में आए अंधेरे को भगवान शिव ने रौशनी से भर दिया है।
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क्या है इस शिव भक्त की कहानी?
दरअसल ये सच्ची कहानी वाराणसी के प्रह्लाद घाट क्षेत्र में रहने वाली मुस्लिम समुदाय की एक महिला की है जिसका नाम नन्ही हैं। नन्ही के जीवन में आज से 20 साल पहले एक हादसे ने अंधेरा भर दिया था, एक दुर्घटना में नन्ही के पति मोहम्मद अतहर का इंतकाल हो गया। जिसके बाद नन्ही अपनी तीन बेटियों के साथ अकेली हो गई लेकिन नन्ही ने हालात से हार नहीं मानी और उसको सहारा मिला भगवान शिव का। जिसके बाद से नन्ही अपने बच्चों का पेट पालने के लिए पारे का शिवलिंग बनाने लगी।
कैसे शुरू किया पारे का शिवलिंग बनाना?
इस मुस्लिम महिला के पति इसी पेशे से परिवार चलाया करते थे तो जीवित रहने के लिए नन्ही ने भी इसी जीविका का सहारा लिया। आज मोहम्मद अतहर के बाद उनके इस काम को उनकी बेगम नन्ही बखूबी निभा रही हैं। अक्सर लोग गैर मजहब और गैर धर्म के काम को करने से परहेज करते हैं लेकिन इस भेदभाव से हटकर मोहम्मद अतहर ने सोचा और नन्ही ने तो इसे एक मिसाल ही बना दिया है।
कैसे बनता है पारे का शिवलिंग?
पारे का शिवलिंग बनाने के लिए नन्ही बाहर से पारा खरीदती हैं फिर उसे आग में पिघलाती हैं, जिसके बाद वो उसे शिवलिंग के ढांचे में रख देती हैं। करीब पांच घंटे तक ये प्रक्रिया चलती है और उसके बाद शिवलिंग तैयार हो पाता है। शिवलिंग का आकार देने के लिए सांचे का इस्तेमाल किया जाता है। शिवलिंग तैयार होने के बाद इसके रंगाई का काम शुरू होता है।
क्या
कहना
है
नन्ही
का?
नन्ही
ने
बताया
की
शुरुआत
में
बहुत
दिक्कतों
का
सामना
करना
पड़ा।
कुछ
लोगों
ने
इस
काम
करने
से
उन्हें
रोका
भी,
धर्म
की
दुहाई
दी
लेकिन
उन्हें
उनका
परिवार
दिखाई
दे
रहा
था,
उनके
ऊपर
अपनी
तीन
बेटियों
को
पालने
की
जिम्मेदारी
थी।
मजहब
की
दुहाई
देकर
लोग
दूसरे
को
तोड़ने
का
ही
काम
करते
रहते
हैं।
मजहब
के
भेदभाव
से
हटकर
ही
हम
जीवन
में
सुकून
और
भगवान
को
पा
सकते
हैं।
आज
नन्ही
इसी
पेशे
से
अपना
और
अपनी
बेटियों
का
जीवत
संभालती
हैं।
यहां
तक
की
उन्होंने
अपनी
तीनों
बेटियों
को
पढ़ाया-लिखाया।
तीनों
लड़कियों
आज
ग्रेजुएशन
कर
चुकी
हैं।
नन्हीं
बताती
हैं
कि
धर्म-मजहब
में
भेदभाव
खुदा
नहीं
करने
को
बोलते
हैं।
इसे
इंसान
ही
बनाता
है,
खुदा
एक
है
फिर
चाहे
उसे
अल्लाह
कहिए
या
शिव।
क्या कहती हैं नन्ही की बेटियां?
नन्ही इस पावन काम को अकेले नहीं करती बल्कि इसमें उनकी बेटियां उन्हें पूरा सहयोग देती हैं। उनकी बड़ी और छोटी बेटी निशि और फरहा कहती हैं कि पाक काम में कोई धर्म और जाति नहीं होती, जरूरत होती है केवल उस काम में इबादत की और उसी इबादत की बदौलत हम ये काम करते हैं। परिवार का प्यार और भगवान के प्रति अटूट आस्था रख कर हम अपना काम करते हैं।
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