छोटे दलों के सहारे विधानसभा में पहुंचने की फिराक में हैं कई बाहुबली, पहले भी सरकार के रह चुके हैं खास
लखनऊ, 14 जनवरी: उत्तर प्रदेश में चुनाव की सरगर्मी बढ़ती जा रही है। एक तरफ जहां विधायक अपने टिकट को लेकर पार्टियों का चक्कर लगा रहे हैं वहीं दूसरी ओर यूपी की सियासत के कुछ बाहुबली ऐसे हैं जो पिछले दरवाजे से विधानसभा में एंट्री मारने की फिराक में लगे हुए हैं। यानी वो बड़े दलों की अपेक्षा छोटे दलों से टिकट पाने की आस में अपना जोर लगा रहे हैं ताकि पैसे और बाहुबल के दम पर टिकट मिलने के बाद वह अपनी किस्मत आजमा सकें। इसी क्रम में पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी हों या बाहुबली धनंजय सिंह हों सभी अपने टिकट को लेकर छोटे दलों को ही टारगेट कर रहे हैं।
अयोध्या की गोसाईगंज विधानसभा से विधायक बाहुबली अभय सिंह, सुल्तानपुर जिले के बाहुबली भाई चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू व यशभद्र सिंह उर्फ मोनू, आजमगढ़ के यादव भाई यानी रमाकांत यादव व उमाकांत यादव समेत दो दर्जन से अधिक बाहुबली नेता जाति के बैनर तले- आधारित पार्टियां 2022 के चुनावी मौसम में कूदने को तैयार हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबली नेता जाति आधारित पार्टियों के सहारे विधानसभा पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं।
याद कीजिए 90 के दशक की राजनीति का वह दौर जब लखनऊ से अरुण शंकर शुक्ल अन्ना और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से धर्मपाल सिंह ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की जीत सुनिश्चित की थी। समय बदला, राजनीतिक हालात बदले और इन बाहुबलियों को लगने लगा कि जब हम अपनी बाहुबल से मुलायम और मायावती जैसे नेताओं को चुनाव जीत दिला सकते हैं, तो हम खुद चुनाव लड़कर क्यों नहीं जीत सकते। तो इन बाहुबलियों ने पार्टी में अपनी उम्मीदवारी जाहिर की और इन बाहुबली नेताओं की फौज विधानसभा से लेकर संसद तक खड़ी रही।
अगर हम इस दौर को 'अपराध का राजनीतिकरण' कहें तो शायद यह गलत नहीं होगा और क्या बीजेपी, क्या कांग्रेस, क्या सपा और क्या बसपा सभी ने इसमें डुबकी लगाई। लंबे समय के बाद जब लोगों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी, राजनीतिक शुद्धता की बात हुई और चुनाव आयोग ने अपनी पकड़ मजबूत की, तब इन बड़ी पार्टियों को लगा कि यह पार्टी की प्रतिष्ठा को खराब कर रही है, फिर इन बाहुबली नेताओं से दूरी बना ली। ऐसे में अब ये बाहुबली नेता राज्य की छोटी जाति आधारित पार्टियों को खूब पसंद कर रहे हैं।
बीजेपी और निषाद पार्टी के कुछ नेता गठबंधन में वही सीटें निषाद पार्टी को देने की कोशिश कर रहे हैं, जिस पर बीजेपी से जुड़े बाहुबली नेता दांव लगाने वाले हैं। कई गंभीर मामलों के आरोपी और पूर्व सांसद धनंजय सिंह 2002 और 2007 में रारी विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। 2009 में वे बसपा के टिकट पर लोकसभा भी पहुंचे थे, लेकिन 2011 में बसपा से निकाले जाने के बाद उनके बीजेपी का प्यार इन दिनों किसी से छुपा नहीं है। माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में धनंजय सिंह भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) या निषाद पार्टी के टिकट पर मल्हानी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। इसके अलावा कटेहरी के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष धनंजय सिंह के करीबी अजय सिंह सिपाही और अतरौलिया के पूर्व प्रखंड प्रमुख अखंड सिंह भी निषाद पार्टी के संपर्क में हैं।
बीकापुर से पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बबलू भी सीधे तौर पर बीजेपी में शामिल नहीं हो पाए हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि वह भी निषाद पार्टी से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। मिर्जापुर के पूर्व एमएलसी बाहुबली विनीत सिंह की बात करें तो बीजेपी भले ही उन्हें सीधे तौर पर स्वीकार न करे, लेकिन अपने सहयोगी अपना दल (एस) की बदौलत वह इसके करीब रहने की कोशिश जरूर कर रही है। बाहुबली ब्रजेश सिंह वर्तमान में विधान परिषद के स्वतंत्र सदस्य के रूप में वाराणसी से एमएलसी हैं। माना जा रहा है कि बृजेश सिंह भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे, लेकिन अभी यह तय नहीं है कि बीजेपी किस पार्टी का समर्थन कर रही है।
योगी सरकार ने जब से बाहुबली नेताओं और हिस्ट्रीशीटरों पर नकेल कसी है, तब से खुद को बाहुबली कहने वाले नेता दो धड़ों में बंट गए हैं- एक खेमा बीजेपी समर्थक हो गया है और दूसरा बीजेपी विरोधी हो गया है। ऐसे में बीजेपी के खिलाफ विरोध का झंडा लेकर घूम रहे बाहुबली नेताओं ने भी अपना राजनीतिक ठिकाना तलाशना शुरू कर दिया है। माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी ने भी 2022 की तैयारी कर ली है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने यह संकेत दिया है। सपा के साथ गठबंधन का ऐलान करने के बाद बीजेपी के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोलने वाले राजभर ने फैसला किया है कि वह बाहुबली मुख्तार को अपनी पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दिलाएंगे।
अतीक अहमद की बात करें तो यह अभी तय नहीं है कि वह चुनाव लड़ेंगे या नहीं, लेकिन उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन में जरूर शामिल हुई हैं। माना जा रहा है कि वह दक्षिण के प्रयागराज शहर से ओवैसी की पार्टी से चुनाव लड़ सकती हैं, जहां से अतीक अहमद पांच बार विधायक रह चुके हैं. इसके अलावा अयोध्या की गोसाईगंज विधानसभा से विधायक रहे बाहुबली अभय सिंह, सुल्तानपुर जिले के बाहुबली भाई चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू व यशभद्र सिंह उर्फ मोनू, आजमगढ़ के यादव भाई यानी रमाकांत यादव और उमाकांत यादव समेत दो दर्जन से अधिक बाहुबली नेता शामिल हैं। जाति आधारित पार्टियों के 2022 के चुनावी मौसम में बैनर तले कूदने को तैयार हैं।
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