कानपुर: रहस्यमयी बीमारी की चपेट में आकर एक-एक कर मर रहे हैं लोग, प्रशासन बेखबर
कानपुर। कानपुर देहात के एक गांव में आधे से ज्यादा लोग बीमार हो गए हैं और एक-एक कर के मरने लगे हैं। अफसोस की बात ये है कि उस गांव में अभी तक स्वास्थ्य विभाग की कोई भी टीम नहीं पहुंची और ना ही उस गांव में अभी तक बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए स्वास्थ्य शिविर का इंतजाम किया गया है और ना ही कोई डॉक्टर गांव पहुंचा है जबकि कुछ ही दिन पहले इस बीमारी से 2 मौतें भी हो चुकी हैं। अभी तक इस बीमारी का सही पता ही नहीं चला पाया है आखिर ये बीमारी है क्या?
कोई इसे चेचक बता रहा है तो कोई खतरनाक वायरस! अब सोचने की बात है कि जब इस बीमारी लोग मरने लगे तब भी स्वास्थ्य विभाग की आंखें नहीं खुल रही हैं। बीमारी का डर लोगों के अंदर इस कदर बैठ गया कि ग्रामीण अपने घर द्वार और अपने गांव से पलायन करने की बात करने लगे हैं , जब इसकी बात सी एच सी रसूलाबाद के चिकित्सा अधीक्षक आशीष बाजपेई से बात की तो उनका कहने का तरीका ही अलग था उनकी माने तो कोई बड़ी बीमारी नहीं है।
दरअसल, मामला जनपद के रसूलाबाद तहसील क्षेत्र डाबरी गांव का है। इस गांव की खुशियों में चेचक नाम की बीमारी का दाग लग गया और इस गांव की खुशियां छिन गईं। दरअसल आज से 15 दिन पहले राजपाल नाम का गांव के ही युवक को इस बीमारी का सामना करना पड़ा था और राजपाल ने अपनी जिंदगी का सामना इस बीमारी के किया तो राजपाल को अपनी जिंदगी छोड़नी पड़ी।
कानपुर देहात के रसूलाबाद तहसील क्षेत्र के गांव रबारी का है जहां कुछ दिन पहले एक युवक के शरीर में दाने निकलते हैं और उस दाने के कारण शरीर पर छाले होते हैं और कुछ ही दिन बाद उस युवक की मौत हो जाती है। अचानक उसी के घर में उसके भतीजे और बेटों के वहीं दाने निकलते हैं और देखते ही देखते पूरे गांव में कई लोगों को शरीर में दाने और छाले होने लगते हैं। एक नहीं दो नहीं बल्कि सैकड़ों लोग इस बीमारी से ग्रसित होने लगते हैं और आलम यह है कि हर घर में एक से 2 मरीज पड़े हुए हैं।
किसान होने के कारण और मजदूरों के पास पैसा ना होने के कारण अच्छा इलाज भी नही करवा पा रहे हैं। कस्बे से करीब 12 किलोमीटर दूर होने की वजह से लोग जल्दी अस्पताल भी नहीं पहुंच पाते हैं और अगर अस्पताल पहुंचते हैं तो वहां के डॉक्टर साधारण बीमारी बता कर टैबलेट देकर घर भेज देते हैं। लोगों के अंदर इस बीमारी का डर इतना है कि लोग इस ढबारी गांव से पलायन करने तक को मजबूर हैं।
गांव का गांव बीमार पड़ा है और ना ही कोई अधिकारी सुध ले रहे हैं ना ही कोई डॉक्टर। देखने वाली बात यह है कि जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर करोड़ों-करोड़ों रुपए खर्च होते हैं तो वहीं अब इस गांव के लिए क्या कुछ नहीं बचा। ना अस्पताल में दवाइयां बचीं जो इस गांव के लोगों का अच्छा इलाज हो सके और इस बीमारी से राहत मिल सके। देखने वाली बात यह है कि इस गांव में ज्यादा से ज्यादा मजदूर और किसान हैं लेकिन डॉक्टरों की टीम अभी तक वहां नहीं पहुंची और ना ही लोगों को कोई राहत अब तक मिली है।
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