कैराना में एक तीर से दो निशाने साधने के मूड में अखिलेश यादव, रचा नया चक्रव्यूह
गोरखपुर और फूलपुर की सीट गंवाने के बाद जहां भगवा खेमा नई रणनीति के साथ विपक्ष पर पलटवार को तैयार है, वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कैराना में एक तीर से दो निशाने साधने की योजना बनाई है।
नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यूपी की कैराना लोकसभा और बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनावों में लगातार सियासी समीकरण बदल रहे हैं। गोरखपुर और फूलपुर की सीट गंवाने के बाद जहां भगवा खेमा नई रणनीति के साथ विपक्ष पर पलटवार को तैयार है, वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कैराना में एक तीर से दो निशाने साधने की योजना बनाई है। अखिलेश यादव की नई रणनीति के तहत कैराना सीट पर अब राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के टिकट पर समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा।
RLD के टिकट पर लड़ेंगी सपा की तबस्सुम
सूत्रों के हवाले से खबर है कि शनिवार को अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह की बैठक के बाद कैराना सीट को लेकर बनी पहली रणनीति को बदला गया है। दरअसल जयंत चौधरी और अखिलेश यादव की शुक्रवार को लखनऊ में हुई बैठक में तय हुआ था कि कैराना सीट पर सपा और नूरपुर सीट पर आरएलडी का प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा, लेकिन इसके बाद खुद अजीत सिंह ने अखिलेश से बात कर उन्हें कैराना सीट का समीकरण समझाया। इसके बाद तय किया गया कि पूर्व सांसद और सपा नेत्री तबस्सुम हसन आरएलडी के टिकट पर कैराना सीट से चुनाव लड़ेगी। रविवार को इसका आधिकारिक ऐलान हो सकता है।
जाट-मुस्लिम समीकरण बनाने की तैयारी
इस नई रणनीति के तहत अखिलेश यादव ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। पहला- 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ चले गए जाट वोटों को आरएलडी की मदद से वापस मुस्लिम वोटों के साथ जोड़, पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट+मुस्लिम समीकरण तैयार करना, और दूसरा सपा प्रत्याशी को आरएलडी के टिकट पर लड़ाकर 2019 के गठबंधन के लिए चौधरी अजीत सिंह की प्रतिष्ठा को सामने रखना। माना जा रहा है कि इस नए समीकरण में कांग्रेस भी गठबंधन का साथ दे सकती है।
कौन हैं तबस्सुम हसन
आपको बता दें कि तबस्सुम हसन पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी हैं। मुनव्वर हसन के निधन के बाद तबस्सुम 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं और भाजपा प्रत्याशी बाबू हुकुम सिंह को हराकर जीत हासिल की। इसके बाद तबस्सुम बसपा छोड़कर सपा में चली गईं और 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके बेटे नाहिद हसन साइकिल के निशान पर चुनाव लड़े। 2014 में भाजपा प्रत्याशी हुकुम सिंह ने उन्हें हरा दिया, जिसके बाद नाहिद हसन कैराना विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बन गए। कैराना की राजनीति पिछले लंबे समय से हुकुम सिंह और मुनव्वर हसन परिवार के इर्द-गिर्द ही रही है।
सपा बसपा पहले ही कर चुके हैं गठबंधन
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बसपा और सपा में पहले ही गठबंधन हो चुका है। मायावती ये भी ऐलान कर चुकी हैं कि वो लोकसभा के आम चुनाव से पहले किसी भी उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेंगी। ऐसे में कैराना सीट पर सपा, लोकदल और बसपा का संयुक्त प्रत्याशी उतरने से भाजपा उम्मीदवार के लिए जीत हासिल करना बड़ी चुनौती हो सकता है। कैराना लोकसभा में करीब 17 लाख वोट हैं। इनमें 5 लाख मुस्लिम, 4 लाख ओबीसी (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति व अन्य) और लगभग 1.5 लाख जाटव वोट हैं।
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