यूपी में नशा बना लघु उद्योग, माफिया कैसे फैला रहा अपना कारोबार?
यहां भांग के पौधों को रगड़कर उससे सुल्फा बनाया जाता है। इस सुल्फे को सुखाकर उसे सिगरेट और चिलम में भरकर पिया जाता है।
मेरठ। मेरठ में होली से पहले नशे का कारोबार पूरे चरम पर है। खादर में कच्ची शराब तो बनाई ही जा रही है। इसके अलावा भांग के पौधों की पत्तियों से तैयार होने वाले सुल्फे की मांग भी बढ़ गई है। हैरत की बात ये है कि नशा माफिया इन दिनों लघु उद्योग की तरह दिहाड़ी मजदूरी देकर सुल्फा तैयार कराकर उसका स्टॉक कर रहे हैं। इस कारोबार में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बच्चे भी मजदूरी करते हैं।
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पत्ती को हाथ में रगड़कर बनता है सुल्फा
भांग के पौधे की पत्तियों को हथेलियों से रगड़ा जाता है। इससे उसका रस हथेली पर जमता रहता है। बाद में हथेलियों को आपस में रगड़कर उससे उतरने वाले मैल को कागज पर इकट्ठा कर लिया जाता है। इस मैल की गोली बना ली जाती है। यही मैल की गोली सुल्फा होती है। सुल्फे का प्रयोग सिगरेट और चिलम में होता है। नशा करने वाले चने की दाल के बराबर सुल्फा माचिस की तीली जैसी बारीक लकड़ी के आगे चिपका लेते हैं।
इसका नशा बढ़ाता है पागलपन
इस सुल्फे को आग लगा दी जाती है। जैसे ही यह थोड़ा जलता है, उसकी आग बुझाकर इसके चूरे को सिगरेट में भरने वाली तंबाकू में मिला दिया जाता है। इस सुल्फा मिश्रित तंबाकू को वापस सिगरेट में भरकर पिया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग चिलम में भी किया जाता है। सुल्फे का नशा आदमी को धीरे-धीरे अपना आदी बना लेता है। इसे पीने पर आदमी की आंखें लाल हो जाती हैं और शरीर में सुस्ती आने के साथ दिमाग भी काम करना बंद कर है। यदि इसका सेवन ज्यादा कर लिया जाये, तो आदमी मानसिक रूप से बीमार या पागल भी हो सकता है।
फरवरी से अप्रैल के बीच फसल होती है तैयार
सर्दियां आने पर भांग की पत्तियों का रस गाढ़ा होना शुरू हो जाता है। ऐसे में फरवरी से अप्रैल तक का समय इन पत्तियों से सुल्फा तैयार करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है। क्योंकि गर्मियों में जहां पत्तियों का रस सूख जाता है तो इसे तैयार करने वाले ज्यादा देर काम भी नहीं कर पाते हैं। वन इंडिया की पड़ताल में सामने आया की एक मजदूर लगभग 20 ग्राम सुल्फा बनाना होता है, जिसमें तीन-चार घंटे का समय लगता है। इसके बदले उसे 300 रुपये मिलते हैं। बाजार में 10 ग्राम सुल्फे की कीमत 600 रुपये तक है। गर्मियों में इसकी कीमत और ज्यादा हो जाती है।
प्रतिबंधित है सुल्फा का कारोबार
आबकारी विभाग सिर्फ भांग का ठेका देता है। जिसमें भांग की पत्तियों को उबालकर उसके गोले बेचने की अनुमति होती है। यह गोला दवा, पूजा और प्रसाद आदि में काम आता है। कुछ लोग इस गोले का नशा भी करते हैं। लेकिन सुल्फा पूरी तरह से प्रतिबंधित नशा है। इसे ड्रग्स की श्रेणी में रखा गया है । ऐसे में कालेजों के छात्र और युवा सुल्फे की लत का शिकार होते जा रहे हैं।
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