यूपी में सुरक्षित सीटों पर दलित ब्राह्मण फार्मूला अपनाएगी बीएसपी, जानिए इसके पीछे क्या है बड़ी वजह
लखनऊ, 24 नवंबर: उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस बार सुरक्षित सीटों पर फोकस करने का प्लान तैयार किया है। बसपा चीफ मायावती ने इसकी जिम्मेदारी बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा को सौंपी है। बसपा सूत्रों के अनुसार दरअसल पिछले चुनाव में बसपा ने सुरक्षित सीटों पर केवल दलितों पर ही फोकस किया था लेकिन इस बार इन सीटों पर जीत हासिल करने के लिए सुरक्षित सीटों पर भी ब्राह्मण-दलित गठजोड़ की संभावनाएं तलाश कर रही है। बसपा को लगता है कि सुरक्षित सीटों पर ब्राह्मण समुदाय का वोट पार्टी के लिए कारगर साबित हो सकता है। इसको लेकर ही बसपा ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश की 86 आरक्षित विधानसभा सीटों (अनुसूचित जाति-84,अनुसूचित जनजाति-2) के अध्यक्षों के साथ बैठक की और स्पष्ट किया कि इस बार पार्टी उन पर विशेष ध्यान देगी। मायावती ने साफ तौर पर कहा है कि उन्हें इन सीटों पर 2007 का प्रदर्शन दोहराना है, जिसके आधार पर वह 206 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाने में सफल रहीं।
बसपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पार्टी सवर्ण मतदाताओं खासकर ब्राह्मणों के लिए एक विशेष रणनीति तैयार करेगी, जिसकी जिम्मेदारी पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को दी गई है। दरअसल, खुद को दलितों का मसीहा बताकर राजनीति करने वाली मायावती इस बात से खफा हैं कि उनकी पार्टी सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रही है। 2007 के चुनाव में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की वजह से इन सीटों पर जीत हासिल की थी।
मयावती कहती हैं कि,
''आरक्षित सीटों के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार करेंगे। मंगलवार को हुई बैठक महत्वपूर्ण थी क्योंकि हमने कैडर निर्माण और मतदान केंद्र के काम जैसे सभी स्तरों पर तैयारियों पर चर्चा की। हमें ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी चाहिए, जैसे 2007 में, जब हमने 206 सीटें जीती थीं। सवर्णों खासकर ब्राह्मणों के लिए अलग रणनीति बनाई जाएगी, जिसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव एससी मिश्रा को दी गई है।''
आरक्षित सीटों पर बसपा का प्रदर्शन फीका रहा
दरअसल पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो आरक्षित सीटों पर बसपा के प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इन 86 सीटों में से बसपा ने सीतापुर के सिधौली और आजमगढ़ के लालगंज में ही जीत हासिल की थी। इनमें से 70 सीटें अकेले बीजेपी ने जीती थीं। इससे पहले 2012 के चुनावों में, केवल 85 सीटें आरक्षित थीं (केवल अनुसूचित जाति के लिए) और बसपा केवल 15 सीटें ही जीत सकी। ये सीटें हैं रामपुर मनिहारन, पुरकाजी, नहटौर, हाथरस, आगरा कैंट, आगरा ग्रामीण, टूंडला, हरगांव, मोहन, महरौनी, नारायणी, मंझनपुर, कोरांव, बांसगांव और अजगरा सीट जीती थी। मायावती अपने 2007 के प्रदर्शन को दोहराना चाहती हैं क्योंकि बसपा ने इनमें से 62 सीटें गैर-दलितों के समर्थन से जीती थीं।
उत्तर प्रदेश की आरक्षित सीटें केवल विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के लिए चुनौती नहीं बनती हैं। लोकसभा चुनाव में भी यह पार्टी दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में नहीं रख पा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने यूपी की 80 में से 71 सीटें जीती थीं और 17 आरक्षित सीटों में से एक पर भी बसपा हाथी की सवारी नहीं कर पाई थी। यहां तक कि जब मायावती की पार्टी ने पिछले दो दशकों से अधिक समय में लोकसभा चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
हालांकि तब भी उसे पार्टी के आधार वोट बैंक के मामले में संतोषजनक परिणाम नहीं मिले हैं। 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी ने 17 में से केवल 5 सीटें जीतीं थीं और यह उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। 2019 में उसने सपा के साथ गठबंधन में 10 सीटें जीतीं, लेकिन इसमें वह नगीना और लालगंज की आरक्षित सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी।
सुरक्षित सीटों पर सवर्णों का वोट निर्णायक
दरअसल, यूपी की रिजर्व विधानसभा सीटों में बसपा के लिए मुश्किल हो जाती है, जहां दलितों का वोट अलग-अलग उम्मीदवारों में बंट जाता है। इसलिए सवर्णों का वोट निर्णायक साबित होता है। यही कारण है कि इस चुनाव में भी मायावती गैर-दलित और सवर्ण वोटों पर फोकस कर रही हैं और उनका निशाना मुख्य रूप से ब्राह्मण वोट हैं, जिससे उन्हें 2007 के विधानसभा चुनाव में जीत का स्वाद मिला है। इसकी जिम्मेदारी अपने खास सिपहसलार सतीश मिश्रा को सौंपी है।
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