सातवें चरण में दिग्गजों ने झोंकी ताकत, बहुत कुछ है दांव पर
सातवें चरण के लिए सभी पार्टियों ने झोंकी अपनी पूरी ताकत, सभी पार्टियों का बहुत कुछ है दांव पर
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सातवें चरण के लिए चुनाव प्रचार अब खत्म हो चुके हैं और 8 मार्च को आखिरी चरण का मतदाना होना है, प्रदेश की 363 सीटों पर पर उम्मीदवारों भाग्य का फैसला हो चुका है और इसका नतीजा 11 मार्च को लोगो के सामने आएगा। उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पूरी ताकत झोंकी और कुल 23 रैलियों को संबोधित किया और वाराणसी में लगातार तीन दिन के बाद पीएम ने अपने प्रचार अभियान को समाप्त किया।
आखिरी चरण में पीएम ने झोंकी ताकत
प्रधानमंत्री मोदी ने सातवें चरण के लिए दो जनसभाओं को संबोधित किया और दो मेगा रोड शो किए। पीएम ने काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन किए, काल भैरव मंदिर पहुंचे, फिर उन्होंने गढ़वा आश्रम पहुंचकर यादव वोटों को अपनी ओर करने की कोशिश की, पीएम ने इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री के घर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी, इस मौके पर उनका लोगों ने भव्य स्वागत भी किया।
पीएम के लिए साख का सवाल
उत्तर प्रदेश में भाजपा बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनाव लड़ रही है, ऐसे में पार्टी अपना सबकुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर ही लगा चुकी है और पूरी तरह से उनपर ही निर्भर है। पीएम ने अपने प्रचार अभियान के दौरान श्मशान घाट, कब्रिस्तान के मुद्दे को फतेहपुर की रैली में उठाया तो उन्होंने रमजान और दिवाली में बिजली के वितरण में भेदभाव का भी आरोप लगाया। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री ने जिस तरह से प्रचार अभियान की कमान संभाली उसके बाद उनकी साख दांव पर है।
हार के बाद मुश्किल होगा शाह-मोदी का सफर
उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा को जीत मिलती है तो पीएम की लोकप्रियता में काफी इजाफा होगा और 2019 में पार्टी को इसका सीधा लाभ मिलेगा, लेकिन अगर पार्टी को प्रदेश में हार का मुंह देखना पड़ा तो इसके लिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह निशाने पर होंगे। यूपी में रणनीति बनाने के साथ अमित शाह ने खुद भी काफी सक्रिय भूमिका निभाई थी, उन्होंने ना सिर्फ अगड़ी जाति के वोटरों बल्कि गैर यादव पिछड़े वर्ग के मतदाताओं व गैर जाटव, दलितों को पार्टी की ओर मोड़ने के लिए रणनीति बनाई।
अखिलेश को खुद को साबित करने का मौका
इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के भीतर विवाद के बाद पूरे प्रचार अभियान की कमान मुख्यंमंत्री अखलेश यादव ने अपने हाथों में ली थी और चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भी उन्होंने सात रैलियों को संबोधित किया, वहीं 7 मार्च यानि आज भी उन्होंने अंबेडकरनगर में अलापुर में रैली को संबोधित किया। अखिलेश यादव के लिए इस बार का चुनाव व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का सवाल है जो पहली बार अपने पिता के प्रभाव से बाहर आकर अकेले दम पर चुनाव लड़ा है, उन्होंने खुद को पार्टी के मुखिया के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की।
ब्रांड अखिलेश को स्थापित करने की कोशिश
अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव प्रचार को काम बोलता है के नारे से साथ आगे बढ़ाया, अपने प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने सपा सरकार के कामों को गिनाया, उन्होंने तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं को लोगों के सामने रखा, उन्होंने खुद को तकनीक के साथ आगे बढ़ाते हुए अखिलेश ब्रांड को आगे बढ़ाया और खुद को सिर्फ यादवों के नेता की परिधि से निकालने की कोशिश की।
गठबंधन को करना होगा साबित
इस चुनाव में अगर अखिलेश यादव को हार का सामना करना पड़ता है तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कांग्रेस के साथ गठबंधन को सही साबित करना। गठबंधन के फैसले को खुद मुलायम सिंह यादव भी गलत ठहरा चुके हैं, उनके साथ ही शिवपाल यादव ने भी कहा था कि इस गठबंधन के चलते हमें सीधे 105 सीटों का नुकसान हुआ है। अखिलेश यादव ने अपने प्रचार अभियान के दौरान लगातार पीएम पर हमला बोला, उन्होंने कहा कि पीएम हतोत्साहित हैं और इसीलिए उनका कैबिनेट वाराणसी में है।
मायावती के लिए अस्तित्व की लड़ाई
वहीं आखिरी चरण के लिए मायावती ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेस के जरिए सपा और भाजपा को आड़े हाथों लिया, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम फिर से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएंगे। जिस तरह से 2012 के चुनाव हारने के बाद मायावती को 2014 में एक भी सीट हासिल नहीं हुई, उनके लिए यह चुनाव काफी अहम है, या यूं कहें कि यह चुनाव उनके अस्तित्व की लड़ाई है। मायावती ने इस चुनाव में अपना सबकुछ झोंका और तमाम रणनीतियां बनाई जो उन्हें फिर से सत्ता में ला सके। उन्होंने पहली बार 99 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जोकि किसी भी पार्टी की तुलना में सबसे अधिक है।