अखिलेश के लिए यूपी लोकसभा उपचुनाव में हार के 5 साइड इफेक्ट
लखनऊ, 27 जून: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के किसी करीबी ने सूत्र से कहा था कि उन्होंने कहा है कि वह रामपुर और आजमगढ़ में चुनाव प्रचार नहीं भी करेंगे तो भी पार्टी जीत रही है। परिणाम आने से पहले ज्यादातर लोग इसी लाइन पर सोच रहे थे। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बिना लड़ाई लड़े हथियार डालने को राजी नहीं हुए। उन्होंने इस उपचुनाव को भी उतनी ही अहमियत दी, जितनी की उनकी पार्टी को जरूरी थी। अखिलेश को उनका ओवर कॉन्फिडेंस (या मिस कैलकुलेशन) उन्हें ले डूबा। लेकिन, संघर्ष शक्ति ने भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ी ताकत दे दी। आइए जानते हैं कि अखिलेश यादव पर इस करारी हार का क्या असर पड़ सकता है।
यूपी में सीटो में ऐतिहासिक कमी
2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठबंधन था। तब समाजवादी पार्टी ने 5 सीटें जीती थीं। उपचुनाव में रामपुर और आजमगढ़ हारने के बाद उसके पास अब सिर्फ तीन सीटें रह गई हैं। ये हैं- मुरादाबाद, संभल और मैनपुरी। लेकिन, अगर रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को वोटों में आई गिरावट को देखें तो यह पार्टी के लिए ज्यादा तकलीफदेह है। आम चुनाव में रामपुर से आजम खान 52.69% वोट लेकर जीते थे। इस बार उनके करीबी आसिम रजा को महज 46 % वोट मिले हैं। इसी तरह आजमगढ़ में अखिलेश यादव को 60.36% वोट मिले थे, लेकिन इसबार धर्मेंद्र यादव सिर्फ 33.44% वोट ही ले पाए हैं। यहां दोनों चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ही थे। पिछली बार वह 35.12% वोट लाकर भी काफी अंतर से हार गए थे। लेकिन, अबकी बार 34.39% वोट ने भी उन्हें संसद भवन तक पहुंचा दिया है। लेकिन, तब बीएसपी सपा के साथ थी और इसबार उसके उम्मीदवार गुड्डू जमाली को 29.27% वोट मिले हैं। यह 2024 के चुनाव के लिए एक आईना हो सकता है।
Recommended Video
पर्सेप्शन की लड़ाई में अखिलेश की हार
यूं तो 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में भी चुनाव हार गई थी। पार्टी के हाथ से फूलपुर सीट भी निकल गई थी। लेकिन, इसबार विधानसभा चुनावों के सिर्फ तीन महीने बाद सपा नेता आजम खान के गढ़ रामपुर और पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की सीट आजमगढ़ हारना समाजवादी पार्टी के लिए पर्सेप्शन की हार है। यादव-मुस्लिम गठजोड़ का तिलिस्म अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ में ही तार-तार हो गया है। आने वाले समय में यूपी की राजनीति में अखिलेश यादव और उनकी पार्टी पर इसका बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ने की संभावना है। खासकर इस वजह से क्योंकि लड़ाई बीजेपी से है और वह निगम का चुनाव भी बहुत ही प्रोफेशनल तरीके से लड़ना जानती है। एक बात यह भी चर्चा में है कि जब पहले से यही कहा जा रहा था कि आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी का जीतना मुश्किल है। आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंदर की पाचों विधानसभा सीट पर सपा का कब्जा भी है। लेकिन, फिर भी जिस तरह से सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूरे मन से यह चुनावी लड़ाई लड़ी, वह गौर करने वाली बात है। जबकि, अखिलेश यादव ने दोनों क्षेत्रों में एक सभा करने की भी जरूरत नहीं समझी।
आजम खान का किला ढह गया
रामपुर मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र है। लेकिन, यहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मोहम्मद आसिम रजा की बीजेपी उम्मीदवार घनश्याम लोधी से करीब 42 हजार वोटों के अंतर से हार काफी कुछ कहानी बयां कर रही है। इस क्षेत्र को पिछले कई चुनावों से दिग्गज सपा नेता आजम खान का गढ़ मान लिया गया था। इसको लेकर आजम बढ़चढ़ डायलॉगबाजी करने में भी माहिर रहे हैं। वह भाजपा सरकार में जिस तरह से भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में जेल में रहे और उपचुनाव से ठीक पहले छूटकर आए तो लगा कि उनके पक्ष में मुसलमानों के बीच सहानुभूति का माहौल बनेगा। लेकिन, यहां बीजेपी के जातीय गणित के सामने उनका यह मुस्लिम कार्ड भी फेल कर गया है।
सपा से मुस्लिम वोट खिसकेंगे !
आजमगढ़ का चुनाव परिणाम इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि बसपा मुस्लिमों का वोट खींचने में सफल रही है। रामपुर में भी सपा प्रत्याशी और आजम के करीबी की काफी वोटों से हार यह संकेत है कि यूपी के मुसलमानों में योगी सरकार के खिलाफ पहले वाला नजरिया नहीं रह गया है। इसकी वजह ये मानी जा रही है कि जिस तरह से धर्म स्थलों से लाउडस्पीकर हटवाने में योगी सरकार ने निष्पक्षता से काम किया, उससे आम मुसलमानों में उनकी सरकार के खिलाफ पहले वाली कट्टरता की भावना कम पड़ी है। यही नहीं, नुपूर शर्मा विवाद में भी सीएम ने अपने दल और सरकार के लोगों को जिस तरह से साधा है, वह अच्छा संदेश दे गया। आने वाले वक्त में यह अखिलेश एंड कंपनी के लिए अच्छा संकेत नहीं लग रहा।
इसे भी पढ़ें- घनश्याम सिंह लोधी: रामपुर में सपा के धुरंधर को धूल चटाने वाले भाजपा उम्मीदवार को जानिए
मायावती हार कर भी जीतीं
आजमगढ़ में बसपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा है, लेकिन मायावती इससे भी बहुत उत्साहित हैं। हालांकि, गुड्डू जमाली ने पार्टी सुप्रीमो को भरोसा दिया था कि वह चुनाव जीत रहे हैं। ऐसा तो नहीं हुआ है, लेकिन आजमगढ़ के परिणाम से यह पता जरूर चलता है कि हाथी पर सवारी करने के लिए एकबार फिर से मुस्लिम और दलित तैयार हुए हैं। यहां एआईएमआईएम और राष्ट्रीय मुस्लिम उलेमा काउंसिल ने भी बसपा प्रत्याशी का समर्थन किया था। लिहाजा, मुसलमान सपा की जगह बसपा में गए और यह अखिलेश यादव की राजनीति के लिए ठीक नहीं है। दूसरी ओर यूपी की राजनीति से समाप्त समझी जाने लगीं, पार्टी सुप्रीमो की उम्मीद एकबार फिर से जग गई है।