18 साल तक ताबूत में बंद रहा कारगिल का शहीद, अब जाकर निकला
मैनपुरी में एक शहीद परिवार ने सरकार की उदासीनता के बाद खुद ही शहीद की प्रतिमा को स्थापित करने का फैसला लिया।
मैनपुरी। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी के किशनी छेत्र के दिवन्नपुर साहनी गांव के कारगिल युद्ध में शहीद अमरूद्दीन की शहादत के अठारह सालों के बाद 3 जुलाई को उनके परिजनों ने उनकी प्रतिमा स्थापित करने में सफलता पा ही ली। 1999 में तीन जुलाई के दिन ही कारगिल की पहाड़ियों में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाते हुये वीर अमरूद्दीन ने अपने जीवन का बलिदान दिया था।
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ताबूत के अंदर बंद रही शहीद की प्रतिमा
कारगिल युद्ध में किशनी के जांबाज क्वार्टर मास्टर हवलदार अमरूद्वीन शहीद हो गए। उस समय प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। विधायक रामेश्वर दयाल वाल्मीकि ने अपनी निधि से शहीद की एक प्रतिमा बनवाकर उनके परिजनों को दी थी। पर यह अलग बात है कि वह प्रतिमा 18 बर्षों के बाद लकड़ी के ताबूत से बाहर आ सकी।
शहीद की प्रतिमा को रहा सरकार का इंतजार
प्रतिमा तो समाजवादी पार्टी के विधायक ने उपलब्ध करा दी लेकिन उसे स्थापित करने के लिये आज तक दो गज जमीन प्रदेश की कोई सरकार उपलब्ध नहीं करा सकी। शहीद का परिवार पिछले अठारह वर्षों से शासन और प्रशासन से यही गुहार लगाता रहा कि शहीद की प्रतिमा को ऐसी जगह स्थापित किया जाय जिसे लोग आसानी से देख सकें। आज की युवा पीढी उनकी प्रतिमा को देख कर कुछ शिक्षा और प्रेरणा ले सके पर एसा न हो सका।
इस बीच समाजवादी पार्टी की दो बार तथा बसपा की एक बार सरकार बनी लेकिन शहीद की प्रतिमा स्थापित न हो सकी। अंत में थक-हार कर शहीद की पत्नी मोमना बेगम और उनके बेटे आरिफ ने निर्णय लिया कि वह अपनी जमीन में प्रतिमा स्थापित करायेंगे।
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शहीद की प्रतिमा स्थापित कर परिजनों को हुई खुशी
आरिफ खान अपने पिता की शहादत के समय बालक थे, वे आज नौजवान है। उनको खुशी है कि अपने पिता अमरूद्वीन की शहादत के दिन प्रतिमा स्थापित कराने का कार्य पूरा कर लिया। तीन जुलाई 2017 सोमवार को मैनपुरी के सांसद तेजप्रताप यादव तथा किशनी विधायक ब्रजेश कठेरिया ने प्रतिमा का अनावरण किया। बरेली-ग्वालियर हाईवे के किनारे बने अमरूद्वीन गैस एजेन्सी के गोदाम के सामने शहीद अमरूद्वीन की प्रतिमा स्थपित कर दी गई।
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