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लेक्चरर की नौकरी, 34 की उम्र में पहला टेस्ट, फिर बने सबसे तेज दिमाग वाला क्रिकेट कप्तान

इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइक ब्रेयरली को तेज दिमाग वाला कप्तान माना जाता था, वह काफी ज्यादा उम्र के बाद टेस्ट खेलने आए थे।

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mike brearley

कैम्ब्रिज में पढ़ाई की। फिलॉस्फी के लेक्चरर बने। प्रोफेशनल साइकोएनालिस्ट के रूप में नाम कमाया। यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान क्रिकेट खेला। विकेटकीपर बल्लेबाज थे। फिर सलामी बल्लेबाज बने। पढ़ने-पढ़ाने और क्रिकेट खेलने की तपस्या साथ-साथ चलती रही। आखिरकार उनका चयन राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में हुआ। तब तक उनकी उम्र 34 साल हो चुकी थी। इस उम्र में आम तौर पर कोई क्रिकेटर संन्यास लेने की सोचता है लेकिन उन्होंने अपना करियर शुरू किया। (Photo: Twitter)

सबसे तेज दिमाग वाले कप्तान

वे ऐसे क्रिकेटर थे जिन्होंने जीत की रणनीति बनाने के लिए पहली बार मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का इस्तेमाल किया। विपक्षी खिलाड़ियों का दिमाग पढ़ने में उन्हें विशेषज्ञता हासिल थी। इसकी वजह से उन्हें सिर्फ 8 टेस्ट मैच खेलने के बाद ही टीम का कप्तान बना दिया गया। उन्होंने अपनी काबिलियत का सिक्का जमाया। कुल 39 टेस्ट मैच खेले। 31 में कप्तानी की। कप्तान के रूप में सिर्फ चार टेस्ट ही हारे। सबसे खास बात ये कि उन्होंने भारत के मशहूर उद्योगपति की पोती और भारत के महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक की भतीजी से शादी की। ये हैं इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेट कप्तान माइक ब्रेयरली। उन्होंने दिग्गज उद्योगपति अंबालाल साराभाई की पोती और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक डॉ. विक्रम साराभाई की भतीजी माना साराभाई से शादी की थी।

एक भी शतक नहीं लेकिन 31 टेस्ट में कप्तानी

कभी कभी तेज दिमाग वाला रणनीतिकार कप्तान औसत प्रदर्शन के बाद भी टीम की जरूरत बन जाता है। माइक ब्रेयरली ने अपने टेस्ट जीवन में एक भी शतक नहीं लगाया लेकिन वे 31 टेस्ट मैचों में इंग्लैंड के कप्तान रहे। ये उनकी तेज कप्तानी का कमाल था कि टीम को 18 टेस्टों मैचों में जीत मिली। सिर्फ 4 टेस्ट में ही वे हारे। उनका उच्चतम स्कोर 91 रहा जो उन्होंने भारत के खिलाफ बनाया था। 1976-77 में इंग्लैंड की टीम भारत के दौर पर आयी थी। टॉनी ग्रेग कप्तान थे। इस टीम में ब्रेयरली भी शामिल थे। वैसे तो वे ओपनर थे लेकिन कभी-कभी वन डाउन या मिडिल ऑर्डर में भी खेलते थे। पांच टेस्ट की ये श्रृंखला इंग्लैंड ने 3-1 से जीती थी। पांचवां टेस्ट ड्रा रहा था। ब्रेयरली ने पांचवें टेस्ट की पहली पारी में 91 रनों की पारी खेली थी।

प्रेरणादायी नेतृत्व

इंग्लैंड के लिए माइक ब्रेयरली की प्रेरणादायी कप्तानी कितनी जरूरी थी ये 1981 की एशेज सीरीज से पता चलता है। किम ह्यूज की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैंड आयी थी। इयान बॉथम इंग्लैंड के कप्तान थे। उस समय बॉथम दुनिया के सबसे बड़े ऑलराउंडर थे। उनका बड़ा नाम था। इंग्लैंड के चयनकर्ताओं ने ब्रेयरली को हटा कर बॉथम को कप्तान बना दिया था। पहला टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया 4 विकेट से जीत गया। दूसरा टेस्ट मैच ड्रॉ रहा। तब तक इयान बॉथम की कप्तानी और खेल की आलोचना शुरू हो चुकी थी। बॉथम पिछले आठ टेस्ट मैच से कप्तान थे और इंग्लैंड एक भी टेस्ट नहीं जीत पाया था। जब कि ब्रेयरली के जमाने में जीत पर जीत मिलती थी। बॉथम की तब और किरकिरी हो गयी जब वे लॉर्ड्स के दूसरे टेस्ट में दोनों पारियों में 0 पर आउट हो गये।

जब ब्रेयरली को फिर बनाना पड़ा कप्तान

बॉथम बॉलिंग और बैटिंग, दोनों में फेल थे। इंग्लैंड के क्रिकेट प्रशंसक उन्हें कप्तानी से हटाने की मांग करने लगे। आखिरकार इंग्लैंड के चयनकर्ताओं ने तीसरे टेस्ट में माइक ब्रेयरली को फिर कप्तान बनाया। ब्रेयरली के कप्तान बनते ही टीम का कायापलट हो गया। तीसरे टेस्ट में इंग्लैंड को 18 रनों से जीत मिली। जो बॉथम बेअसर नजर आ रहे थे उन्होंने शानदार ऑलराउंड खेल दिखाया। पहली पारी में 6 विकेट लिये और 50 रन बनाये। दूसरी पारी में तो उन्होंने कमाल ही कर दिया। 148 गेंदों पर नाबाद 149 रनों की तूफानी पारी खेली। ब्रेयरली की कप्तानी में खासियत थी कि वे बल्लेबाज और गेंदबाज से सौ फीसदी हासिल कर लेते थे। गेंदबाजी में परिवर्तन की उनकी मेथडोलॉजी बहुत खास थी। वे विपक्षी बल्लेबाज की कमजोरी ताड़ कर गेंदबाज को उसके अनुरूप गेंद डालने की सलाह देते थे।

फिर तो कमाल हो गया

जो इंग्लैंड दो टेस्ट मैचों तक 1-0 से पिछड़ रहा था उसने ब्रेयरली के कप्तान बनते ही बाजी पलट दी। इंग्लैंड ने छह टेस्ट मैचों की श्रृंखला 3-1 से जीत ली। फीके फीके से रहे इयान बॉथम पुराने रंग में आ गये। चौथा टेस्ट मैच इंग्लैंड 29 रनों से जीता। बॉथम ने ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी में 11 रन दे कर 5 विकेट लिये। ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 151 रन बनाने थे। लेकिन वह 121 पर ऑलआउट हो कर मैच हार गया। पांचवें टेस्ट में इयान बॉथम ने फिर विस्फोटक बैटिंग की। उन्होंने 102 गेंदों पर 118 रन बनाये। उन्होंने पहली पारी में 3 और दूसरी पारी में दो विकेट भी लिये। इंग्लैंड ने यह टेस्ट मैच 103 रनों से जीता। इस श्रृंखला में ब्रेयरली, बल्लेबाज के रूप में बिल्कुल नाकाम रहे। उन्होंने 10,14,13,48,3,2,51,0 रनों का ही योगदान दिया लेकिन टीम को 3-1 से सीरीज जीता दी। टेस्ट क्रिकेट में शायद ही ऐसा कोई कप्तान हो।

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English summary
mike brearley Lecturer's job, first Test at the age of 34, then became the sharpest minded captain
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