शहीद शिशुपाल सिंह की अंत्येष्टि, 18 KM लंबी तिरंगा यात्रा के बाद वीरांगना व बेटी ने किया आखिरी सैल्यूट
राजस्थान के सीकर के लक्ष्मणगढ़ के गांव बागड़ियों का बास में शहीद शिशुपाल सिंह का अंतिम संस्कार
सीकर, 2 जुलाई। यूएनओ शांति मिशन में कांगो में शहीद हुए शिशुपाल सिंह को उनके पैतृक गांव अंतिम विदाई दी गई। वे राजस्थान के सीकर जिले की लक्ष्मणगढ़ तहसील के गांव बागड़ियों का बास का रहने वाले थे। बेटे प्रशांत ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी। इससे पहले वीरांगना कमला देवी ने जय हिंद व वंदेमातरम के जयकारे के साथ शहीद की पार्थिव देह को आखिरी सैल्यूट किया तो वहां मौजूद कोई भी आंसू नहीं रोक पाया।
सूरज चांद रहेगा...शिशुपाल सिंह तेरा नाम रहेगा
शहीद के अंतिम विदाई देने के लिए लोगों ने 18 किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा निकाली। बलारां पुलिस थाने से लेकर उनके गावं बागड़ियों का बास गांव तक सड़क के दोनों तरफ लोग हाथों में फूल लिए खड़े नजर आए। लोगों ने जब तक 'सूरज चांद रहेगा...शिशुपाल सिंह तेरा नाम रहेगा' के जयकारों से आसमां गूंजा दिया। बेटी कविता ने भी पिता की अर्थी को कंधा दिया।
हजारों लोग अंतिम दर्शन करने पहुंचे
बता दें कि शहीद शिशुपाल सिंह की पार्थिव देह उनके घर पहुंची तो माहौल गमगीन हो गया। आस-पास के कई गांवों से लोग उनके अंतिम दर्शन करने पहुंचे। इस दौरान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, सांसद सुमेधानंद सरस्वती, पूर्व विधायक रतन जलधारी, प्रेम सिंह बाजौर, गोरधन सिंह सहित काफी संख्या में जनप्रतिनिधी व प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे।
26 जुलाई को हिंसक प्रदर्शन में हुए शहीद
उल्लेखनीय है कि बीएसएफ के जवान शिशुपाल सिंह अन्य भारतीय फौजियों के साथ यूएनओ के शांति मिशन के तहत अफ्रीकी देश कांगो में तैनात थे। वहां 26 जुलाई को हिंसक प्रदर्शन के दौरान भीड़ बेकाबू हो गई थी। भीड़ ने बुटेम्बो स्थित कैंप को घेर लिया था। कैंप में महिलाएं भी मौजूद थी।
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शिशुपाल सिंह व सांवलाराम विश्नोई दोनों शहीद हो गए
शिशुपाल और सांवलाराम बिश्नोई ने साथियों के साथ मोर्चा संभाला और महिला साथियों को एयरलिफ्ट कर बाहर निकाला। शिशुपाल व सांवलाराम खुद बाहर नहीं निकले। साथियों को बचाने में लग गए। इस दौरान भीड़ ने हमला कर दिया और दोनों शहीद हो गए।
बेटी के साथ किया वादा नहीं निभा पाए
मीडिया से बातचीत में शहीद की 24 वर्षीय बेटी कविता ने बताया कि उसने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली है। इसी साल कॉलेज के दीक्षांत समारोह में उसे डिग्री मिलने वाली है। पिता शिशुपाल सिंह ने बेटी से वादा किया था कि वे भी उसके साथ दीक्षांत समारोह में उसके कॉलेज जाएंगे, लेकिन अब यह वादा पूरा नहीं हो सकेगा। 21 वर्षीय बेटा प्रशांत अभी ग्रेजुएशन कर रहा है।
खेल कोटे से बीएसएफ में भर्ती हुए थे शिशुपाल
बता दें कि 10 जून 1977 के जन्मे शिशुपाल सिंह ने शुरुआती शिक्षा अपने गांव बगड़ियों का बास से पूरी की। 10वीं के बाद शिशुपाल दिल्ली चले गए और बड़े भाई मदन सिंह के पास रहकर पढ़ाई की। शिशुपाल सिंह एक बेहतरीन एथलीट भी थे। उन्हें दौड़ का शौक था। उन्होंने कई मैराथन जीती थी। खेल कोटे से 19 अक्टूबर 1994 को बीएसएफ में भर्ती हुए। शिशुपाल कांगो जाने से पहले शिलांग में तैनात थे। वे जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर, बीकानेर में सेवाएं दे चुके हैं। इनका चचेरा भाई रामनिवास बीएसएफ में एएसआई व श्रीपाल सीआरपीएफ में कॉन्स्टेबल है।
आखिरी फोन कॉल पत्नी को
मीडिया से बातचीत में वीरांगना कमला देवी ने बताया कि 25 जुलाई को उनसे कॉल पर बात हुई थी। वीडियो कॉल किया था। उन्होंने पत्नी को फोन पर बताया था कि कांगों में उन पर आए दिन हमले हो रहे हैं। एक दिन पहले ही भीड़ ने राशन से भरे दो ट्रक जला दिए। राशन और हथियार भी खत्म हो रहे हैं। इसके बाद उनसे बात नहीं हो पाई। अगले दिन 26 जुलाई को उनकी शहादत की खबर आ गई।
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