Bihar: देश को सबसे ज्यादा रेल मंत्री देने वाले राज्य की रेल बजट से उम्मीदें
कई रेलगाड़ियों की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं। बिहार के लोगों का आरोप है कि पिछले दो-तीन वर्षो के रेल बजट में लगातार बिहार की उपेक्षा हो रही है, जो कुछ भी बिहार को मिल रहा है वह पर्याप्त नहीं है। रेल सुविधाओं की नज़र से देखें तो बिहार काफी दूर खड़ा नज़र आता है।
अब
तक
बिहार
से
निकले
रेल
मंत्री-
1.बाबू
जगजीवन
राम
(1962)
2.
राम
सुभग
सिंह
(1969)
3.
ललित
नारायण
मिश्र
(1973)
4.
केदार
पांडेय
(1982)
5.
जॉर्ज
फर्नाडीस
(1989)
6.
रामविलास
पासवान
(1996)
7.
नीतीश
कुमार
1998
और
2001
(दो
बार)
8.
लालू
प्रसाद
यादव
(2004)
पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान जब देश के रेल मंत्री थे तो बिहार में कई रेल परियोजनाएं आई और कई महत्वपूर्ण गाड़ियां भी मिलीं परंतु उसके बाद से बिहार को रेल मंत्रालय की इनायत कभी नहीं मिल पाई।
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पूर्व रेल मंत्री लालू की ड्रीम प्रोजेक्ट में मधेपुरा विद्युत इंजन कारखाना था। दस वर्षो के बाद भी कारखाना शुरु होना तो दूर अभी तक इस परियोजना के लिए कोई ब़डी प्रगति नहीं हुई है। जब इस कारखाने की आधारशिला रखी गई थी तब इसके निर्माण की लागत 1000 करो़ड रूपये बताया गया था।
रेल मंत्री के पद पर लालू प्रसाद थे तब वर्ष 2006 में छपरा के रेल पहिया संयंत्र को मंजूरी मिली थी परंतु कहा जाता है कि अब तक इस कारखाने से रेल का एक पहिया तक नहीं निकल सका है। 31 जुलाई 2010 की समय अवधि तक बनकर तैयार हो जाने वाले इस कारखाने में प्रतिवर्ष एक लाख पहिया बनाने का लक्ष्य था।
इसी तरह हरनौत रेल कारखाना आज तक सरजमीन पर नहीं उतर सका है तो दीघा-सोनपुर स़डक सह रेल पुल का काम अभी तक कागजों पर भी नहीं उतरा है। इसी तरह मुंगेर में गंगा नदी पर निर्माणाधीन रेल सह स़डक पुल का निर्माण कार्य भी 70 प्रतिशत से ज्यादा पूर्ण हो चुका है परंतु यह बीच में रुका है।
जानकारों का कहना है कि बिहार का एक ब़डा क्षेत्र नेपाल के साथ जु़डा हुआ है जिसके लिए रेलों की संख्या इन क्षेत्रों में बढ़ना काफी आवश्यक है। पटना यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर कहते हैं 'मोदी के "अच्छे दिन" बिहार के लिए अवश्य होने चाहिए। बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स का भी मानना है कि पटना से नई दिल्ली और मुंबई के बीच और एक्सप्रेस ट्रेनों की आवश्यकता है।
बिहार में आज पर्यटकों की संख्या गोवा जैसे पर्यटक स्थलों से भी अधिक है ऐसे में आवागमन की सुविधा न होना इस क्षेत्र की उपेक्षा होगी। स्थानीय लोग कहते हैं कि बिहार और झारखंड की राजधानी रांची को जो़डने के लिए भाया डालटनगंज होकर भी एक्सप्रेस ट्रेन की आवश्यकता है। तो यही कुछ आशाएं हैं जिनकी डोर बिहार की जनता 'अच्छे दिन' से बांधकर रखी है।