लाश नहीं मिलने पर पूरे परिवार को भूखे पेट सोना पड़ता है!
गया। लंबे चौड़े जुर्माने के साथ तरह-तरह की सजाओं के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन क्या आपने ऐसी सजा के बारे में सुना है, जिसमें किसी व्यक्ति को दाह संस्कार करने की सजा दी गई हो। जी हां ऐसा ही बिहार के गया जिले में हुआ है, जहां एक मामूली से जुर्म की सजा मिली है हर महीने पांच लोगों का दाह संस्कार करने की। आप सोच में पड़ गये होंगे कि पुलिस की डायरी में ऐसी कौन सी धारा है, जिसमें किसी को अंतिम संस्कार करने की सजा सुनायी जाये। और सुनिये लाश नहीं मिलने पर इस परिवार को भूखे पेट सोना पड़ता है।
तो चलिये चलते हैं लखन के घर जो यह सजा भुगत रहा है। असल में यह वक्त से मजबूर लोगों पर सुनाया गया फैसला है। जो रेलवे पुलिस की अपनी धारा के तहत किया गया। बिहार में रेलवे पुलिस ने 20 साल पहले यह सजा सुनायी थी।
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हुआ यूं कि बिना टिकट सफर कर रहे गया निवासी लखन को परिवार के साथ सफर करने के आरोप में पकड़ा गया। और जुर्माने की राशि देने की बात कही गई थी। लेकिन पैसे का अभाव होने के कारण लखन पैसा नहीं भर सका और रोते गिड़गिड़ाते हुए अधिकारियों से माफी मांगता रहा। रेलवे के अधिकारी उसे माफ करने के बजाये जेल भेजने की तैयारी कर चुके थे।
इसी बीच बड़े बाबू को लखन की गरीबी पर दया आ गई। और उन्होंने अपनी जेब से पैसा निकालते हुए उसका फाइन भर दिया। फाइन तो भर दिए लेकिन उसके बाद बड़े बाबू ने लखन को एक ऐसी सजा सुनाई, जिसे आज तक भुगत रहा है। उन्होंने कहा कि रेलवे ट्रैक के आस-पास जितनी भी लावारिस लाशें मिलेंगी उनका दाह संस्कार लखन को करना होगा।
लाशें जलाते-जलाते बूढ़ा हो चला लखन
रेलवे पुलिस के द्वारा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने की सजा सुनाने के बाद लखन के द्वारा पिछले 20 वर्षों से हर महिने चार से पांच लाशों का अंतिम संस्कार किया जाता है। हालांकि लखन को लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए रेलवे के द्वारा पैसे भी दिए जाते हैं।
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लेकिन लखन का कहना है कि बढ़ती महंगाई और परिवार की बोझ के आगे वह पैसा एकदम मामूली है। रेलवे के द्वारा शवों का दाह संस्कार करने के लिए 1000 रुपए दिए जाते हैं, जिसमें से 100 रुपए लाश के पोस्टमार्टम में खर्च हो जाते हैं। 400 रुपए की लकड़ी लगती है। इस काम के लिए एक साथी है जिसे 200 रुपए देना पड़ता है। मरघट पर लाश को जलाने की फीस भी 100 रुपए लगती है। कुल मिलाकर प्रति लाश पर मात्र 200 रुपए लखन के पास बचते हैं।
अब कंधा देने लगा है जवाब
लावारिस लाशों को कंधा देने वाले लखन का खुद का कंधा अब जवाब देने लगा है। कभी-कभी जब लाशें नहीं मिलती हैं, तो भूखा सोना पड़ता है। लखन का कहना है कि कभी-कभी तो ऐसा हो जाता है कि रेल थाने में जाकर हाथ फैलाते हुए अपने और अपने परिवार वालों का पेट भरना परता है।
बढ़ती महंगाई के सामने पत्नी व चार बच्चों का पेट चलाना मुश्किल हो गया है। बेटी की शादी की चिंता सताने लगी है। पत्नी ओरूम दास का कहना है कि हम लोग सरकार से आस लगाए बैठे हैं कि कभी न कभी हमें स्थाई किया जाएगा और उचित पैसा दिया जाएगा। लेकिन सरकार की नजर अब तक हमारे ऊपर नहीं पड़ी है।