बाबू कुंवर सिंह की धरोहर लुप्त होने के कगार पर
पटना। शाहाबाद की आन-बान-शान के प्रतिक 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के केंद्र बिंदु रहे बाबू वीर कुंवर सिंह की जन्म एवं कर्मभूमि जगदीशपुर आज राजनैतिक उपेक्षा के शिकार हो रही है। जिस महायोद्धा की तलवार की चमक से अंग्रेजी सलतनत हिल जाया करती थी, उस महानायक की धरती सरकार से न्याय की गुहार लगा रही है।
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बाबू वीर कुंवर सिंह की स्मृति धरोहर सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण बदहाल स्थिति में पहुंच गई है। देवघर का शिधारगाह कौरा का विश्राम दलान, आरा हाउस, वीवी जान का हाता, दुसाधी बधार पीरो, दलीपपुर गढ़, मिठहां कोठी, राज श्मशान घाट, जगदीशपुर से आरा का भुजबरा, मोर्चा का जंगी मैदान, शिवघाट आदि के जिर्णोद्धार के वादे हर पांच साल पर किये जाते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही फोकस कहीं और चला जाता है।
1944 में देश के प्रथम राष्ट्रपति. डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जगदीशपुर को आदर्श आदर्श नगर के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। लेकिन वह आदेश बिहार सरकार तक पहुंचा या नहीं पहुंचा, किसी को नहीं मालूम है।
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वही केंद्र से लेकर बिहार के कई छोटे-बड़े नेता यहां का दौरा कर चुके हैं। सब ने विकास का वचन दिया। 1857 की यादों को संजोये विशाल परिसर वाले किले का चारदीवारी दरकने लगी हैं। वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा में भी दरार पड़ने लगी हैं।
बाबू कुंवर सिंह के किला परिसर की जमीन आज भूमाफियाओं के अवैध कब्जे में है, जिस पर सरकार की चुप्पी ही सरकार की पोल खोल रही है। शाहाबाद क्षेत्र से चुनाव जीते विधायक, सांसद, मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और लोकसभा स्पीकर तक बाबू साहेब की जन्म भूमि को राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन का दर्जा नहीं दिला सके।
जगदीशपुर को रेल मार्ग से जोड़ने का लक्ष्य प्रधानमंत्री कार्यालय में लंबीत है। दिखावे के लिए संसद भवन के सेंट्रल हॉल में बाबू साहेब का चित्र लगाने से ही उनके जन्म तिथि को मान सम्मान नहीं मिल जाता है। अगर सरकार कुछ करना चाहती है तो 23 अप्रैल 2016 को विजय उत्सव के स्थान पर भव्य जगदीशपुर महोत्सव का आयोजन होता, परंतु भारत सरकार और बिहार सरकार के खजाने में वीर कुंवर सिंह के लिए पैसा नहीं है।
इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है, स्वतंत्रता के इस दीवाने के लिए सरकार की लापरवाही के कारण बाबू कुंवर सिंह के जीवन और संघर्ष से जुड़ी लेख अभिलेख नष्ट हो गये, उनके अस्त्र-शस्त्र तथा उनके उनसे जुड़ी दुर्लभ वस्तुएं रख-रखाव के बाव में खत्म हो गये।