मम्मी और पत्नी के नाम से लिए जाते 10 फीसद ही घर
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) अगर आप मानते हैं कि औरतों को उनके हक मिलने शुरू हो गए तो बता दें कि कम से कम अचल संपत्ति के स्तर पर हालात बेहद खराब है। अब भी 10 फीसद तक ही घरों को औरतों के नाम से खरीदा जा रहा है।
ये हालात दिल्ली जैसे शहर के हैं। बाकी की क्या स्थिति होगी, ये बताने की जरूरत नहीं है। ये जानकारी राजधानी के गीता कालोनी स्थित सब- रजिस्ट्रार के एक आला अधिकारी ने दी। इधर ही ईस्ट दिल्ली की अचल संपतियों का पंजीकरण होता है। कुल मिलाकर यही ट्रेंड सारे देश में रहता है। यानी औरतों के नाम से घर नहीं लिए जाते।
जानकारी के अनुसार, घरों की 78-80 फीसद खरीद संयुक्त रूप से होती है। यानी ओनरशिप संबंधी पेपर्स में पति-पत्नी दोनों का नाम रहता है। अगर महिला के नाम से घर लिया जाए तो स्टाम्प ड्यूटी दो फीसद कम देनी होती है। संयुक्त रूप से लेने पर स्टाम्प ड्यूटी एक फीसद कम होती है। ये बात भी दिल्लीपर ही लागू होती है।
पंजाबी से बंगाली
जानकारी के अनुसार,राजधानी में रहने वाले पंजाबी,वैश्य,बिहारी,मलयाली,बंगाली और दिल्ली में आकर बसे दूसरे 80 फीसद तक लोग संयुक्त रूप से ही घर खरीदते हैं।
और सूरते हाल मुसलमानों के
पर,मुसलमानों के बारे में पता चला कि वहां पर लगभग शत-प्रतिशत घर पुरुष के नाम से ही खरीदे जा रहे हैं। वहां पर घरों की खरीद में औरतों को हिस्सेदार नहीं बनाया जा रहा।
दिल्ली में मुसलमानों के बीच में तालीम की रोशनी फैलाने के काम में जुटे हुए मकसूद अहमद कहते हैं कि सारा मुस्लिम समाज औरतों को लेकर अब भी बहुत दकियानूसी तरीके से सोचता है। उसमें औरतों को हक देने की कहीं कोई बात समझ नहीं आती।