चिली के पैटागोनिया में गिरा ग्लेशियर तो दहल गए टूरिस्ट
नई दिल्ली, 14 सितंबर। सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में चिली के पैटागोनिया इलाके में विशाल हिमखंड को भड़भड़ा कर गिरते देखना बहुत से लोगों के लिए डरावना ही नहीं, परेशान कर देने वाला भी साबित हुआ है. दर्जनों पर्यटकों की मौजूदगी में यह घटना घटी और लोगों ने इसे अपने कैमरों में कैद कर लिया.
ऊंचे तापमान और बारिश के कारण बर्फ की दीवार कमजोर पड़ने से पहाड़ पर स्थित विशालकाय हिमखंड का एक हिस्सा सोमवार को ध्वस्त हो गया. चिली की राजधानी से 1,200 किलोमीटर दक्षिण में क्वेलाट नेशनल पार्क में स्थित इस हिमखंड के 200 मीटर ऊंचे हिस्से का जब गिरना हुआ तो भयंकर गड़गड़ाहट हुई जिससे वहां मौजूद पर्यटकों के दिल दहल गए.
Higher temperatures and rainfall that weakened ice walls caused part of a hanging glacier to break off at a national park in Chile's Patagonia region https://t.co/FHat1gDqcl pic.twitter.com/cj0gnxm0Kl
— Reuters (@Reuters) September 14, 2022
सैनटियागो यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक राऊल कोरडेरो कहते हैं कि बर्फ के विशाल भंडारों का एक दूसरे से अलग होना तो आम बात है लेकिन यहां चिंता की बात है कि ऐसा अब बार-बार हो रहा है. कोरडेरो ने कहा, "चूंकि इस तरह की घटनाओं की वजह ग्रीष्म लहर या बहुत ज्यादा बारिश होता है और ये दोनों ही चीजें अब सिर्फ चिली में नहीं बल्कि हमारे पूरे ग्रह पर बहुत ज्यादा बार हो रही हैं. "
कोरडेरो के मुताबिक पैटागोनिया इलाके में इस हिमखंड के गिरने से पहले ग्रीष्म लहर चली थी और तापमान बहुत असामान्य रहा था. उन्होंने कहा कि वहां 'एटमॉसफेरिक रिवर' भी देखी गई थी यानी ऐसी हवा जिसमें नमी बहुत ज्यादा थी. वह कहते हैं, "जब यह एटमॉसफेरिक रिवर एंडीन और पैटागोनिया के भूगोल से मिलती है तो विशाल बादल बनाती है और वाष्पकण छोड़ती है."
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर
कोरडेरो ने बताया कि ग्लोबल वॉर्मिंग के बहुत से नतीजों में से ही एक यह भी है कि यह कई हिमखंडों को अस्थिर कर रही है और खासतौर पर हिमखंडों की दीवारें कमजोर हो रही हैं. वह कहते हैं, "पैटागोनिया में पिछले दिनों में जो कुछ हुआ है, वह यही मामला है. कुछ समय पहले आल्प्स और हिमालय में भी ऐसा ही हुआ था."
वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि मानवीय कारणों से बढ़ते तापमान और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण गर्मी तेज हो रहीहै. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान पर बनी समिति ने इसी साल के शुरुआत में कहा था कि सरकारों और उद्योगों को जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग तेजी से कम करना चाहिए ताकि बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को काबू किया जा सके.
2019 में जारी हुई यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहता है तो साल 2100 तक आल्प्स के ग्लेशियर 80 प्रतिशत तक सिकुड़ जाएंगे. और गैसों के उत्सर्जन में जो भी कमी पेशी हो, बहुतों का गायब हो जाना तो तय है. इसकी वजह अब तक हुआ ग्रीनहाउस उत्सर्जन है जो स्थायी नुकसान पहुंचा चुका है.
बाकी दुनिया में भी यही हाल
जो यूरोप में हो रहा है, वैसा ही कुछ हिमालय में भी हो रहा है. भारत के उत्तर में खड़ा यह विशाल पर्वत अपने हिमखंडों को तेजी से खोता जा रहा है. इस साल हिमालय में बर्फ का रिकॉर्ड नुकसान होना तय है. मिसाल के तौर पर जब कश्मीर में इस साल मानसून आया तो कई हिमखंड पहले ही बहुत सिकड़ चुके थे. मार्च से मई के बीच पड़ी भयंकर गर्मी के कारण तलहटी की बर्फ पिघलकर बह चुकी थी.
हिमाचल प्रदेश में जून में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि छोटी शिगड़ी हिमखंड अपनी काफी बर्फ खो चुका है. आईआईटी इंदौर में हिमखंड विज्ञानी मोहम्मद फारूक आजम ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया, "मार्च से मई के बीच इस सदी का सबसे ज्यादा तापमान रहा, जिसका असर साफ नजर आ रहा है."
इसी साल आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि अगर परिवर्तन मौजूदा दर पर जारी रहा तो 2040 तक अफ्रीका के तीनों ग्लेशियर पिघल जाएंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल अफ्रीका की भूमि और पानी दोनों वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हुए और अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो 2040 के दशक तक टक्सन के ग्लेशियर पूरी तरह से गायब हो जाएंगे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से माउंट केन्या के एक दशक पहले पिघलने की संभावना है. इसके मुताबिक, "मानव गतिविधियों के चलते जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों को पूरी तरह से खोने वाले ये पहले पहाड़ होंगे."
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)
Source: DW