Maharashtra: भाजपा के अगले लक्ष्य से छूट सकते हैं उद्धव ठाकरे के पसीने, कहां है नजर ? जानिए
मुंबई, 01 जुलाई। महाराष्ट्र में जिस तरह से महाविकास अघाड़ी की सरकार सत्ता से बाहर हुई उसके बाद शिवसेना के सामने अगली सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के अस्तित्व को बचाने के साथ बीएमसी चुनाव में जीत दर्ज करने की है। शिवसेना के बागी विधायकों की चुनौती से जूझ रही शिवसेना के लिए बीएमसी चुनाव काफी अहम हैं। मुंबई में लंबे समय से शिवसेना बीएमसी चुनाव में जीत दर्ज करती आई है। तकरीबन तीन दशक से शिवसेना का बीएमसी पर कब्जा है। बता दें कि बीएमसी चुनाव इसी साल सितंबर-अक्टूबर माह में होना है। महाराष्ट्र की राजनीति में बीएमसी की अहमियत सबसे अधिक है, बीएमसी पर जीत दर्ज करने वाला प्रदेश की सत्ता का सबसे बड़ा दावेदार बनता है और यही वजह है कि भाजपा प्रदेश की सत्ता में परिवर्तन के बाद बीएमसी पर नजर गड़ाएगी।
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बीएमसी पर भाजपा की नजर
महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा ने ट्वीट करके साफ कर दिया था कि उसका अगला लक्ष्य बीएमसी चुनाव हैं। भाजपा ने ट्वीट करके लिखा, ये तो झांकी है, मुंबई महानगर पालिका अभी बाकी है। भाजपा प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही शिवसेना में बड़ी फूट डालने में सफल हुई और अब उसका अगला लक्ष्य बीएमसी पर कब्जा करना है। ठाणे और डोंबिवली में शिवसेना का वर्चस्व है। पिछले चुनाव में एनसीपी ने नवी मुंबई में जीत दर्ज की थी। ऐसे में शिवसेना के विकल्प के तौर पर भाजपा लोगों के बीच जाएगी।
देश की सबसे बड़ी महापालिका बीएमसी
बीएमसी देश की सबसी ज्यादा बजट वाली नगर पालिका है। बीएमसी का कुल बजट 46 हजार करोड़ रुपए का है। बीएमसी शिक्षा का बजट अलग से पेश करती है। बीएमसी का बजट किसी छोटे राज्य के बजट के बराबर होता है। इस साल बीएमसी के बजट में 17 फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे में कुछ महीने बाद होने वाले बीएमसी चुनाव में जीत दर्ज करके बीएमसी को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने की कोशिश करेगी। जिस तरह से एकनाथ शिंदे को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया है उसके पीछे बीएमसी और 2024 के लोकसभा चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है।
शिंदे गुट बदलेगा गणित
पार्टी एकनाथ शिंदे के जरिए पहले बीएमसी में जीत दर्ज करने की कोशिश करेगी। शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की वजह से अब शिंदे शिवसेना के गुट के लोगों को टिकट देंगे और इसपर भाजपा का असर देखने को साफ तौर पर मिलेगा। यही नहीं उद्धव ठाकरे गुट के पार्षद भी शिंदे के साथ आ सकते हैं। भाजपा का मुंबई में अपना कैडर है और ऐसे में शिंदे के साथ आने से उसे चुनाव में और भी मदद मिलेगी। बीएमसी चुनाव को उद्धव ठाकरे की शिवसेना को खत्म करने की भाजपा की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
महाराष्ट्र में कैसे भाजपा की जमीन हुई मजबूत
महाराष्ट्र की राजनीति की बात करें तो सबसे पहले प्रदेश में शिवसेना का ही उदय हुआ था। 1966 में शिवसेना का गठन हुआ था तो उस वक्त ना जनसंघ था ना ही भाजपा। प्रमोद महाजन जब पहली बार बाल ठाकरे से मिले तो भाजपा और शिवसेना ने एक साथ मिलकर समान विचारधारा के तहत चुनाव लड़ा। समय के साथ भाजपा ने महाराष्ट्र में अपनी जमीन को मजबूत करना शुरू किया और अब 2019 तक भाजपा प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी और 106 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं शिवसेना सिर्फ 56 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी।
पहली बार बीएमसी में शिवसेना को खतरा
बीएमसी के चुनाव में शिवसेना का वर्चस्व पहली बार खतरे में नजर आ रहा है। एकनाथ शिंदे ने पार्टी के भीतर बगावत करके पार्टी में दो फाड़ कर दिए हैं। अगर शिंदे गुट भाजपा के साथ बीएमसी चुनाव में गठबंधन करने का फैसला लेता है तो उद्धव ठाकरे के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी। ऐसे में उद्धव ठाकरे के लिए पहला बड़ा विकल्प यह है कि वह एकनाथ शिंदे गुट के साथ फिर से समझौता करे और भाजपा को बीएमसी चुनाव जीत हासिल करने से रोक सके। बता दें कि पिछले बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने 84 सीटों पर जीत दर्ज की थी बकि भाजपा ने 82 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जिसके बाद मनसे के 6 पार्षदों और कुछ निर्दलीय पार्षद शिवसेना में शामिल हो गए थे।
क्या हो सकती है शिवसेना की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एकनाथ शिंदे मुंबई के थाणे से आते हैं, ऐसे में जब उद्धव ठाकरे सत्ता से बाहर हो चुके हैं तो भारतीय जनता पार्टी के पास मौका है कि वह यहां वापसी कर सकती है। भाजपा ने शिंदे को मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर साफ कर दिया है कि बीएमसी चुनाव में लड़ाई अब सीधे तौर पर भाजपा और उद्धव ठाकरे के बीच होगी। कई शिवसेना के पार्षद बागी गुट के टिकट पर चुनाव लड़ेगे और कुछ पार्षद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। शिवसेना के नेता का कहना है कि पार्टी अपनी शाखा की ताकत के दम पर चुनाव में उतरेगी। आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में पार्टी चुनावी मैदान में उतर सकती है। शिवसेना की असली ताकत जमीनी कार्यकर्ता हैं, पार्टी के शाखा और शाखा प्रमुख हैं। विधायक आते है, जाते हैं लेकिन शाखा बरकरार रहेगी।