पन्ना टाइगर रिजर्व: जंगल को आबाद करने वाले बाघ की मौत, डॉक्टर बोले-किडनी फेल हो गई थी
सागर, 10 जून। मप्र के पन्ना टाइगर रिजर्व की शान कहलाने वाले नर बाघ पी-111 की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। सुबह उसका शव रिजर्व के कोर एरिया में राजा बरिया बीट से गुजरे पन्ना-कटनी सडक मार्ग पर मिला। पोस्टमॉर्टेम करने वाले डॉक्टर फिलहाल मौत का कारण किडनी फेल होना बता रहे हैं, हालांकि उसके बिसरा लेकर सागर, जबलपुर और बरेली फॉरेंसिक लैब भेजे जा रहे हैं। इधर शाम को इलाके के अकोला बफर क्षेत्र में बाघिन टी-234 के चार माह के शावक की मौत हो गई, उसे किसी बाघ ने हमला कर मार दिया था।
पन्ना टाइगर रिजर्व में बीते रोज सुबह से शाम तक दो टाइगर की मौत हो गई। बाघ पुनर्स्थापन के बाद अप्रैल 2010 में जन्मे बाघ पी-111 का शव पन्ना-कटनी मार्ग पर संदिग्य हालात में मिला था। टाइगर रिजर्व प्रबंधन के डॉक्टरों ने प्रायमरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बाघा की मौत का कारण किडनी फेल होना बताया है। हालांकि मौत का सही और सटीक कारण फॉरेंसिक जांच रिर्पोट में सामने आएगा। इसके लिए बिसरा लेकर तीन अलग-अलग फॉरेंसिक लैब सागर, जबलपुर और बरेली भेजे जा रहे हैं। शाम को बाघ का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
चार
माह
के
शावक
की
मौत
पन्ना
टाइगर
रिजर्व
के
अकोला
बफर
जोन
में
बीती
शाम
को
चार
माह
के
शावक
का
शव
मिला
है।
टाइगर
रिवर्ज
के
बीट
गार्ड
ने
इसको
देखा
था।
बाद
में
जानकारी
मिली
कि
यह
शावक
बाघिन
टी-234
का
था।
चार
महीने
पहले
इस
बाघिन
ने
चार
शावकों
को
जन्म
दिया
था,
यह
उन्हीं
में
से
एक
था।
किसी
बाघ
ने
बाघिन
से
मेटिंग
में
बाधा
के
चलते
इसे
मार
दिया
होगा।
बाघ
परिवार
में
यह
सामान्य
घटना
बताई
जा
रही
है।
पन्ना
का
हीरा
कहलाता
था
बाघ
पी-111
गुरुवार
को
पन्ना
टाइगर
रिजर्व
में
पन्ना-कटनी
मार्ग
पर
संदिग्ध
परिस्थितियों
में
मृत
मिला
13
साल
का
बाघ
पी-111
पन्ना
का
हीरा
कहलाता
था।
यह
टाइगर
रिजर्व
की
शान
था।
पर्यटक
इस
बाघ
को
देखने
के
लिए
दो-दो
दिन
रुके
रहते
थे।
दरअसल
पन्ना
टाइगर
रिजर्व
को
बाघों
से
आबाद
करने
में
महती
भूमिका
थी।
पी-111
को
बाघों
की
आबादी
बढाने
और
जंगल
को
आबाद
करने
का
श्रेय
दिया
जाता
है।
पन्ना
में
2009
में
बाघ
पुनर्स्थापन
के
समय
बांधवगढ
से
टी-1
बाघिन
और
पेंच
से
टी-3
बाघ
को
पन्ना
शिफ्ट
किया
गया
था।
करीब
एक
साल
बाद
16
अप्रैल
2010
को
पहले
शावक
का
जन्म
हुआ,
जिसे
पी111
नाम
दिया
गया
था।
कुल
चार
शावक
जन्में
थे।
इसने
डेढ
साल
बाद
खुद
की
टेरेटरी
बनाते
हुए
तारगांव
पठार
इलाके
पर
था
कब्जा
कर
लिया
था,
बाद
में
अकोला
बफर
जोन
पर
भी
इसका
ही
राज
था।