हे भगवान ! हेडमास्टर से ही नहीं बनता 441 में 4 का भाग देते, कलेक्टर ने लगाई क्लास
बालाघाट, 26 अगस्त: जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते है, बोलचाल की भाषा में उनको गधा कहा जाता है। लेकिन जब बच्चों को पढ़ाने वाले टीचर से ही गणित का सवाल हल करते न बने तो उसे क्या कहा जाएगा? मप्र के बालाघाट जिले के एक प्रायमरी स्कूल के टीचर नहीं, बल्कि हेडमास्टर का यही हाल है। कलेक्टर जब यहां औचक निरीक्षण पर पहुंचे तो हेडमास्टर से ही 441 में 4 का भाग देते नहीं बना। उसके बाद जो कुछ हुआ तो इस खबर को पूरा पढ़िए..
441 में 4 का भाग...
एमपी के बालाघाट जिले के प्राइमरी स्कूल की यह तस्वीर हैं। जहां कलेक्टर डॉ. गिरीश कुमार मिश्रा निरीक्षण करने पहुंचे थे। बच्चे स्कूल में क्या सीख रहे है और टीचर कैसा पढ़ा रहे, यह जानने वह बच्चों की क्लास में बैठ गए। सबसे पहले तो उन्होंने बच्चों को ही ब्लेकबोर्ड पर 441 संख्या में 4 का भाग देने कहा। एक छात्र को गणित के इस सवाल को हल करने दिया। वह सिर्फ संख्या ही लिख सका, उससे भाग देते नहीं बना। स्कूल की शिक्षिका सोना धुर्वे भी वहां मौजूद थी। वह बोली कि लॉक डाउन के कारण बहुत से बच्चे गुणा-भाग भूल गए है, उनको अभी दोबारा सिखा रहे है।
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हेडमास्टर ने भाग दिया तो उत्तर आया 1.2
स्कूल की शिक्षिका सोना धुर्वे के पास हेडमास्टर का प्रभार भी है। फिर क्या था, कलेक्टर ने उन्ही से कहा कि मैडम जरा आप ही बच्चों को गणित का यह सवाल हल करके बताओं। बड़े उत्साह से तेज आवाज में मैडम ने भाग देना शुरू किया। सैकड़ा की संख्या 441 में 4 का भाग देने के बाद मैडम का भागफल 1.2 आया। जिसे देख कलेक्टर साहब का माथा ठनक गया। उन्होंने दोबारा सवाल हल करने कहा तो उनका उत्तर 11.2 आया।
फिर ली कलेक्टर ने मैडम की क्लास
गणित की सामान्य संख्या का हेडमास्टर सोना धुर्वे से ‘भाग' न बनने पर कलेक्टर भड़क गए। उन्होंने कहा कि मैडम जब आपसे ही गणित नहीं बन रहा, तो बच्चों से कैसे बनेगा? ऊपर से आप बहाने बता रही है कि लॉक डाउन के कारण बच्चे भाग देना भूल गए है। कलेक्टर ने फ़ौरन मैडम की एक वेतन वृध्धि रोकने के निर्देश दिए। साथ ही उन्हें हेडमास्टर के प्रभार से हटा दिया।
कमाल है..98 बच्चों को पढ़ाने 4 शिक्षक
बालाघाट के बिरसा विकास खंड के अंतर्गत यह स्कूल आता है। मोहगांव प्राइमरी स्कूल में कुल 98 बच्चों की संख्या दर्ज हैं। एक तरफ मप्र के कई सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। सैकड़ों छात्र-छात्राओं की संख्या वाले स्कूल 1-2 शिक्षकों के भरोसे चल रहे। तो यहां चार शिक्षक है, और पढ़ाई के स्तर का अंदाजा कलेक्टर ने भी लगा लिया।
ऐसे में कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे ?
शहर से लेकर गांव तक सरकार का नारा है सब पढ़े, सब बढ़े। सर्व शिक्षा अभियान समेत शिक्षकों की दक्षता के कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। ऐसे टीचर जिनसे खुद गणित के सवाल हल करते नहीं बन रहे, उनको सालाना लाखों रुपए सैलरी दी जाती हैं। उनके बलबूते बच्चों का भविष्य कितना उज्ज्वल हो रहा है, बालाघाट जैसे स्कूलों की तस्वीर हकीकत बयां कर रही है। बच्चे कितना आगे बढ़ेंगे, इसका तो भगवान ही मालिक है।
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