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दिल्ली और बिहार की तरह कहीं फिर ये भूल न करे भाजपा!

By हिमांशु तिवारी आत्मीय
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सर्दी से राजनीतिक गर्मी की ओर वक्त दौड़ता जा रहा है। पॉलिटिकल पार्टियां यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के लिहाज से उपस्थिति दर्ज कराने लगी हैं। किसी ने जुमले बाजी, सवाल-जवाब में खुद को शामिल कर लिया तो कुछ नए, भड़काऊ बयानों के साथ एंट्री मारने की फिराक में हैं। अब अगर बात की जाए सियासत के कुछ पुरोधाओं की, करिश्में के चश्मे से अभी तक खुद को देखने वालों की तो दिल्ली में अनुभवी सियासतदानों का हर एक दांव उल्टा पड़ा। जिसके कारण उम्मीद के इतर सब कुछ हो गया। बिहार में भी कुछ इसी तर्ज पर सियासत के महारथियों की मुंह की खानी पड़ी।

पढ़ें- अंधविश्वास में फंसे अखिलेश, 2017 तक नहीं जायेंगे नोएडा!

बहरहाल भाजपा खेमे ने यूपी में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से अपनी स्क्रिप्ट को तैयार करना शुरू कर दिया है। एक बार फिर भाजपा की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान अमित शाह को सौंपकर जीत की कल्पना की जा रही है। मोदी के करिश्मे को यूपी के जहन से कुरेद कुरेद कर विजय पताका लहराने की ख्वाहिश जताई जा रही है। आईये जानते हैं भाजपा के सामने मिशन यूपी को लेकर क्या क्या हैं चुनौतियां-

जनता का विश्वास

जनता का विश्वास

जनता का मानना है कि भाजपा लोकसभा में उम्मीद से अधिक समर्थन पाकर अभिमानी हो चुकी है। फलस्वरूप भाजपा को बनाने वाले नेताओं को पार्टी में कोने की सीट पकड़ा दी गई। जिस कारण भाजपा पर से जनता का विश्वास उठने लगा। ऐसे में भाजपा को जनता का विश्वास जीतना जरूरी है।

बुजुर्गों का आशीर्वाद

बुजुर्गों का आशीर्वाद

अपने बुजुर्ग नेताओं को तरजीह न देने का आरोप लगातार भाजपा के सिर मढ़ा जाता रहा है। जिसका कलंक यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के मद्देनजर भाजपा को अपने सिर से हटाने की कोशिश करनी होगी। अब यूपी में भाजपा अपने बुजुर्ग नेताओं से आशिर्वाद लेती भी है या नहीं, यह देखना होगा।

काबिलियत या करीबी रखेगा मायने?

काबिलियत या करीबी रखेगा मायने?

विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा में जो कार्यकर्ता बेहद शिद्दत के साथ पार्टी की तमाम योजनाओं का बखान करता है, उसे नकारते हुए टिकट किसी अन्य पार्टी से पलायन करके आये नये राजनीतिक व्यक्ति को सौंप दिया जाता है। या फिर सत्ता के मठाधीशों के बेहद करीबी व्यक्ति को टिकट दे दी जाती है।

टीम वर्क पर देना होगा ज़ोर

टीम वर्क पर देना होगा ज़ोर

कहीं न कहीं पार्टी में कभी पद तो कभी टिकट समेत अन्य वजहों से कलह की स्थिति उत्तपन्न हो जाती है। बिहार और दिल्ली में प्रत्यक्ष उदाहरण दिखे। इसलिए जानकारों का मानना है कि अगर पार्टी ने सभी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर भाजपा को पेश नहीं किया तो हो सकता है फिर से वही हाल हो।

मोदी मुर्दाबाद के नारे

मोदी मुर्दाबाद के नारे

प्रधानमंत्री मोदी 22 जनवरी को लखनऊ में थे, बीबीएयू में कार्यक्रम के दौरान कुछ छात्रों ने नरेंद्र मोदी मुर्दाबाद के नारे लगाकर केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध किया। जो कि आम जन मानस पर काफी बैड इम्पैक्ट कहें या बुरा प्रभाव डाल गई। इस बात की तह तक जाते हुए ये जानना जरूरी हो गया है कि ये किसी राजनीतिक पार्टी का विरोध था या सच में जनता की नजरों में भाजपा विश्वास खो चुकी है।

मोदी, विकास और सवाल

मोदी, विकास और सवाल

दरअसल देश की आबादी का बड़ा हिस्सा इस बात से अंजान है कि वास्तव में केंद्र सरकार ने उनके लिए या फिर देश के लिए क्या-क्या किया है। कहीं न कहीं भाजपा जिस तरह से सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों के जरिए मोदी का प्रचार कर रही थी, उस तरह केंद्र की योजनाओं की जानकारी को जन-जन तक पहुंचाने में असफल रही है।

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English summary
Under the leadership of Amit Shah, BJP is trying hard to avoid the episodes of Delhi and Bihar assembly elections.
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