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महागठबंधन की राह में हैं कई रोड़े, यहां भी जारी है नूराकुश्ती

यूपी में चुनाव की दस्तक और समाजवादी पार्टी के भीतर कलह के बीच महागठबंधन की कवायद काफी तेज हो गई है। लेकिन महागठबंधन इतना आसान नहीं है जितना यह हाल फिलहाल दिख रहा है।

By Ankur
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लखनऊ। यूपी में चुनाव की दस्तक और समाजवादी पार्टी के भीतर कलह के बीच महागठबंधन की कवायद काफी तेज हो गई है। लेकिन महागठबंधन इतना आसान नहीं है जितना यह हाल फिलहाल दिख रहा है।

जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुलायम सिंह यादव से खफा हैं। बिहार चुनाव के दौरान जिस तरह से समाजवादी पार्टी अंतिम समय पर महागठबंधन से हाथ खींचे थे उससे आज भी नीतीश कुमार खफा हैं।

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मुलायम सिंह ने अपने भाई शिवपाल सिंह को महागठबंधन की जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन अभी भी जदयू के इस महागठबंधन के साथ आने पर सवाल बना हुआ जबकि कांग्रेस पर भी अटकलें तेज हैं। सूत्रों की मानें तो जदयू को इस बात की आशंका है कि सपा में दो फाड़ भी हो सकते हैं।

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सपा परिवार का विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, यहां तक कि अखिलेश यादव ने जो चुनावी वीडियो जारी किया है उसमें मुलायम सिंह नहीं है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और सपा दोनों ही पार्टियों में एक धड़ा ऐसा है जिसे लगताहै कि चुनाव से पहले सपा में दो गुट में बंट सकती है।

अखिलेश की ओर जदयू का झुकाव

अखिलेश की ओर जदयू का झुकाव

अगर सपा में बंटवारा होता है तो जदयू, कांग्रे, आरएलडी और तमाम छोटी पार्टियां उन्हें समर्थन दे सकती है। हालांकि अभी कांग्रेस ने अभी किसी महागठबंधन से इनकार किया है। लेकिन अगर पार्टी का बंटवारा होता है तो परिस्थितियां बदल सकती है। ऐसे में अगर नीतीश कुमार गठबंधन में आते हैं तो आरलडी भी उनके नक्शेकदम पर चल सकती है।

अगर जदयू और आऱएलडी एक साथ आते हैं तो तो हालात बदल सकते हैं। दोनों ही पार्टियों का पश्चिम यूपी जनाधार काफी बड़ा है। लेकिन कोई भी पार्टी अभी आधिकारिक रूप से कुछ कहने से बच रही है। सभी दल सपा में रार के निर्णायक मोड़ पर पहुंचने का इंतजार कर रही हैं। वह इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहती हैं कि सपा का निर्णायक परिणाम क्या है।
अखिलेश बन सकते हैं विजेता-नीतीश

अखिलेश बन सकते हैं विजेता-नीतीश


सूत्रों की मानें तो जदयू अखिलेश का साथ जाना पसंद करेगी। पार्टी का मानना है कि अखिलेश की छवि अच्छी है, ऐेसे में अखिलेश के साथ जाना बेहतर विकल्प होगा। गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने हाल ही में कहा था कि अखिलेश अगर अपने परिवार के जाल से बाहर आए तो विजेता साबित हो सकते है।

अखिलेश को कांग्रेस की होगी जरूरत

अखिलेश को कांग्रेस की होगी जरूरत


अगर अखिलेश खुद की अलग पार्टी बनाने का फैसला लेते हैं तो उन्हें कांग्रेस और जदयू दोनों की जरूरत होगी। कांग्रेस के जरिए वह मुसलमान वोटों को साधने की कोशिश करेंगे ताकि इसका बिखराव नहीं होगा। यही नहीं अगर कांग्रेस को भी चुनना है तो वह अखिलेश को चुनना पसंद करेगी, यहां तक कि कई बार राहुल गांधी ने अखिलेश यादव की तारीफ की है।

शिवपाल यादव भी इस बात से काफी वाकिफ हैं, जिसके चलते वह महागठबंधन की पूरी कोशिशें कर रहे हैं। ऐसे में जो भी व्यक्ति इस महागठबंधन को जमीन पर उतारने में कामयाब होगा वह असल विजेता होगा। एक तरह से मानें तो अखिलेश और शिवपाल में इस बात को लेकर भी प्रतिस्पर्धा जारी है कि किस नेता की पार्टी में नीव मजबूत है।

शिवपाल चल रहे हैं अपने दांव

शिवपाल चल रहे हैं अपने दांव

यूपी के बदलते घटनाक्रम और महागठबंधन की कवायद पर अखिलेश यादव ने अभी तक किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन शिवपाल इस बात की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि उनकी वजह से महागठंधन को सफल बनाया जा सके।

शिवपाल यादव और प्रशांत किशोर की हाल ही में मुलाकात भी हुई , हालांकि केसी त्यागी ने इस बात से इनकार किया है कि यह मुलाकात अनौपचारिक थी और महागठबंधन को लेकर किसी भी तरह की कोई चर्चा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि सपा के रजत जयंती कार्यक्रम का न्योता देने के लिए शिवपाल यहां आए थे।

इससे पहले शिवपाल यादव ने कई पार्टियों को सपा के रजत जयंती कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता भेजा है, जोकि 5 नवंबर को होना है। शिवपा ने जदयू, आरजेडी, राष्ट्रीय लोकदल और जनता दल के नेताओं को भेजा है।

राजनीतिक विश्लेशक इस न्योते को महज न्योता मानने से इनकार कर रहे हैं, वह इसे महागठबंधन की कवायद के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह मूल तौर पर मुलायम सिंह यादव की रणनीति है जिसे शिवपाल यादव सफल बनाने में लगे हैं।

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English summary
Nitish Kumar is upset with Mulayam Singh Yadav after the latter had jeopardised his attempt to bring together the erstwhile Janata Dal at the time of the Bihar elections.
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