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कश्मीर में टूटा केसर का 30 साल का रिकॉर्ड, इन दिनों ऐसे खिल रहे हैं फूल, कैसे होती है खेती?

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श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में केसर की खेती इस साल बड़े पैमाने पर हुई है। अभी कई जिलों में कश्मीरी केसर के फूल खिल रहे हैं। पर्यटकों को इन फूलों की महक यहां खासा आकर्षित कर रही है। चूंकि, केसर की खेती मे मेहनत बहुत ज्यादा लगती है। इसके लिए जमीन ठीक करना, बीज बोना और सिंचाई करना तो होता ही है, मगर ज्‍यादा ध्‍यान फसल तैयार होने पर देना पड़ता है। महज 1 किलो केसर तैयार करने के लिए किसानों को 1.5 लाख केसर के फूल चुनने पड़ते हैं। फिर फूल से स्टिग्मा निकालकर उन्हें सुखाना पड़ता है। उसके बाद हाथ में आना वाला केसर, दुनिया की सबसे महंगी फसल के तौर पर बिकता है।

कश्‍मीर में होता है दुनिया का सबसे महंगा मसाला

कश्‍मीर में होता है दुनिया का सबसे महंगा मसाला

घाटी के एक किसान ने बताया कि, वैश्विक बाजारों में कश्मीरी केसर की कीमत 3 लाख से 5 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक है। केसर के पौधों में अक्टूबर के पहले सप्ताह में फूल लगने शुरू हो जाते हैं और नवंबर में खूब फूल खिलते हैं। यूं तो इसे उगाने की प्रक्रिया काफी लंबी और मुश्किल होती है, लेकिन खेती अच्छे से हो और उसका ख्‍याल रखा जाए तो किसान को मोटा मुनाफा हो जाता है। कश्मीरी केसर को GI टैग मिलने के कारण किसानों को इसकी बेहतर कीमत भी मिल रही है।

इन दिनों पर्यटकों को यहां आना ही चाहिए

इन दिनों पर्यटकों को यहां आना ही चाहिए

खेत में केसर के फूलों को निहार रही एक महिला पर्यटक ने कहा, ''मुझे ये नन्‍हे-नन्‍हे फूल बहुत पसंद आए। मैं यहां आकर मानती हूं कि, कश्मीर अपनी खूबसूरती के लिए तो जन्‍नत कहलाता ही है, मगर यह केसर की क्यारियों के लिए भी जाना जाता है। मुझे यहां की महिलाओं ने बताया है कि केसर के फूल नवंबर महीने के मध्य में ही खिलते हैं। और... यहां हम इन फूलों को देखने यहां आए हैं। इस समय लोगों को इन खूबसूरत फूलों को देखने ज़रूर आना चाहिए।"

लेकिन, इसकी खेती करना बहुत ही मुश्किल

लेकिन, इसकी खेती करना बहुत ही मुश्किल

खेत में काम करती एक कश्‍मीरी महिला बोली, "कश्मीर में केसर की उपज को हमने जी-तोड़ मेहनत कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया। इसकी खेती का प्रोसेस काफी लंबा और मुश्किल-भरा होता है। पिछले कुछ सालों में हुआ यह था कि, बहुत मेहनत के बाद भी उपज का कम मूल्य मिलने के चलते कश्मीरी केसर की खेती से मुंह मोड़ने लगे। उस खेती वाली भूमि को सेब के बागों में बदला जाने लगा। कुछ किसानों ने अपनी जमीन बिल्डर्स को भी बेचनी शुरू कर दी। अब 'नेशनल सैफ्रॉन मिशन' की वजह से किसानों को केसर की खेती पर बेहतर कीमत मिल रही है।

इस बार टूट गया 30 साल का रिकॉर्ड

इस बार टूट गया 30 साल का रिकॉर्ड

केसर की खेती कश्‍मीर में यूं तो अब कम होती है। लगभग 30 साल पहले यहां हजारों हेक्‍टेयर भूमि पर केसर उगाई गई तो दुनियावालों ने कश्‍मीर को केसर की खुशबू के लिए खूब जाना-पहचाना। आंकड़ा देखें तो 1980 के दौर में कश्मीर में 5500 हेक्टेयर पर केसर उगाया गया था, हालांकि फिर इसकी खेती की जमीन 3500 हेक्टेयर रह गई।

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2020 में केसर की उपज 18 टन हुई

2020 में केसर की उपज 18 टन हुई

बरसों बाद खुशी की बात यह है कि 2020 में केसर की उपज 18 टन हुई। इससे पहले 1990 में 15 टन केसर का उत्पादन हुआ था। यह जानकारी राज्य के कृषि विभाग की रिपोर्ट से सामने आई है।

2010 में राष्ट्रीय सैफ्रॉन मिशन को मंजूरी दी गई थी

2010 में राष्ट्रीय सैफ्रॉन मिशन को मंजूरी दी गई थी

केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए 2007 में, राज्य सरकार ने एक अधिनियम के जरिए केसर की खेती वाली जमीन को बेचने या किसी और काम के लिए तब्दील करने पर रोक लगाई। उसके बाद केंद्र सरकार ने 2010 में राष्ट्रीय सैफ्रॉन मिशन को मंजूरी दी, इस योजना की वजह से सुधार आने लगा।

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English summary
saffron farming in kashmir valley: millions flowers blooming in these Days, attracting tourists, See how farming?
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