Rajasthan में सचिन पायलट ने उसी नेता के खिलाफ बगावत कर डाली जिन्होंने राजनीति में उन्हें आगे बढ़ाया, जानिए वजह
Rajasthan में चल रहे सियासी घटनाक्रम के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक निजी चैनल को दिए आक्रामक इंटरव्यू के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट पर जो आरोप लगाए हैं। उनसे राजस्थान में सियासी तूफान खड़ा हो गया है। राजस्थान में हुई एकाएक इस घटना से हाईकमान सदमे में है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया कि जब 2009 में लोकसभा चुनाव में हम राजस्थान में 20 सीटें लेकर आए। मुझे दिल्ली बुलाया गया। मैंने राय दी कि पायलट को मंत्री बनाया जाना चाहिए। खुद सचिन को भी इसका पता है। क्योंकि उसके पहले हमारे 70 गुर्जर फायरिंग में मारे गए थे। नमो नारायण मीणा पहले से मंत्री थे। मैंने कहा गुर्जर को बनाएंगे तो कम से कम गुर्जर और मीणाओं के बीच झगड़ा खत्म होगा। मुझे गवर्नेंस में भी आसानी रहेगी। पायलट का मेरे पास फोन आया कि आप मेरी सिफारिश करो। मैंने कहा कि सचिन मैंने बात कर ली है और मुझे उम्मीद है कि सब ठीक होगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस खुलासे के बाद सवाल उठता है कि सचिन पायलट को जिस नेता ने केंद्र में मंत्री बनाने की सिफारिश की पायलट ने उन्हीं की सरकार के खिलाफ कैसे मोर्चा खोल दिया।

कम उम्र में बड़ा पद पाने की महत्वाकांक्षा
सचिन पायलट कांग्रेस के दिग्गज दिवंगत नेता राजेश पायलट के पुत्र हैं। सड़क हादसे में पिता की मौत के बाद सचिन राजनीति में उतरे। पायलट बहुत कम उम्र में सांसद बन गए। उसके बाद वे केंद्र में मंत्री बने। सचिन पायलट को 2014 में राजस्थान कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। पीसीसी चीफ बनते ही पायलट की पहली परीक्षा मोदी लहर में लोकसभा चुनाव में हुई। जिसमें वे फेल हो गए। इसके बाद से लेकर 2018 के बीच जितने भी उपचुनाव हुए। उसमें से 90 फीसदी उपचुनाव में कांग्रेस की जीत हुई। उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ही कांग्रेस ने 2018 का विधानसभा चुनाव जीता और कांग्रेस सरकार में काबिज हुई। इस कामयाबी ने पायलट की महत्वाकांक्षा को और बढ़ा दिया। वह खुद को राजस्थान का मुख्यमंत्री का दावेदार मानने लगे। वरिष्ठ पत्रकार नीलम मुंजाल कहती हैं, अशोक गहलोत दावा करते हैं कि उन्होंने सचिन पायलट की मदद की है। राजनीति में आगे बढ़ने में। अब उनको इस बात का गिला है कि सचिन उनकी बात रखते नहीं हैं। सचिन पायलट को राजनीति में बहुत जल्दी आगे बढ़ने की मंशा है। उनकी अतिमहत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दी। इससे अशोक गहलोत आहत हैं। वे कहती हैं अशोक गहलोत बहुत अनुभवी राजनेता है। इस पद को पाने के पीछे उनका अपना परिश्रम है। गहलोत की प्रशासनिक समझ बहुत ज्यादा है। जब ऐसे विरोध सामने आते हैं तो उनका आहत होना स्वाभाविक हैं। पार्टी में अनुशासन रहना चाहिए। प्रोत्साहित करने वाले नेता ही सरकार के विरूद्ध खड़े हो जाए तो आहत होना स्वाभाविक है। वे आगे बताती है, सचिन इस समय बहुत शांत हैं। अशोक गहलोत का सम्मान भी कर रहे हैं। पायलट ने कूटनीतिक रवैए बनाया हुआ है। राजनीतिक शालीनता का परिचय दे रहे हैं। पायलट चाहते हैं राजस्थान में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा शांतिपूर्वक सम्पन्न हो।

गाइडलाइन हो गई साइड लाइन
मुख्यमंत्री गहलोत के साक्षात्कार ने पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा कर रख दी है। सितंबर में पार्टी पर्यवेक्षक बैरंग लौटने के बाद गहलोत और पायलट कैम्पों ने एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया। पार्टी की किरकिरी होते देख कांग्रेस हाईकमान को एडवाइजरी जारी कर दोनों पक्षों को बयानबाजी से बचने को कहा गया। लेकिन मुख्यमंत्री ने अपने साक्षात्कार में सचिन पायलट के खिलाफ जिस तरह से मोर्चा खोला है। उसने एडवाइजरी की धज्जियां उड़ा कर रख दी है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने अपनी ही सरकार गिराने की कोशिश की
सचिन पायलट राजस्थान के ऐसे पहले नेता हैं। जिन्होंने पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अपनी ही सरकार को गिराने की कोशिश की। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने साक्षात्कार में कहा कि इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि पार्टी का अध्यक्ष खुद अपनी सरकार गिराने के लिए विपक्ष से मिल जाए। पायलट उस समय पीसीसी अध्यक्ष और डिप्टी सीएम थे। इसी बात से विधायकों को गुस्सा आया। मंत्री के बगावत के उदाहरण तो मिल जाते हैं। लेकिन पार्टी अध्यक्ष के नहीं। हमें 34 दिन तक होटल में रहना पड़ा। सीएम अशोक गहलोत ने अपने साक्षात्कार के दौरान कहा कि मेरे पास इस बात के भी सबूत हैं। सचिन भाजपा के संपर्क में थे और 10-10 करोड़ रूपए बांटे गए थे। यह पता नहीं कि किसको 5 मिले, किसको 10 मिले। दिल्ली के बीजेपी दफ्तर से यह पैसे उठाए गए थे।