चीन ने अरबों खर्च कर इस देश में बनवाया आलीशान संसंद, कहीं युंगाडा की तरह ड्रैगन की जाल में ना फंस जाए?
जिम्बॉब्वे की राजधानी हरारे के उत्तर-पश्चिम में लगभग 18 किमी की दूरी पर माउंट हैम्पडेन नाम के एक जगह पर चीन ने इस संसद भवन का निर्माण किया गया है।
China Zimbabwe news: जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति इमर्सन म्नांगागवा बहुत जल्द राजधानी हरारे में 650 सीटों वाली नई संसद का उद्घाटन करेंगे, जिसका निर्माण चीन ने करोड़ों डॉलर खर्च कर बनवाया है। बीबीसी ने सरकारी हेराल्ड अखबार के हवाले से बताया है कि, राष्ट्रपति म्नांगगवा इस मौके पर देश को संबोधित करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि, देश के वित्त मंत्री इसके बाद 2023 का राष्ट्रीय बजट पेश करेंगे। लेकिन, सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या जिम्बाब्वे कभी भी चीन का ये कर्ज वापस कर पाएगा? आइये जानते हैं, कि कैसे ड्रैगन ने चीन की गर्दन को दबोचने का पूरा इंतजाम कर दिया है।
चीन ने बनाया जिम्बाब्वे का आलीशान संसद
रिपोर्ट के मुताबिक, जिम्बाब्वे में बने संसद भवन में उद्घाटन समारोह के दौरान दो कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा और सरकार ने देश के न्यूज चैनलों को आदेश दिया है, कि वो देश की जनता के लिए दोनों कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण करे। इसके साथ ही कार्यक्रम का लाइव प्रसारण संसद के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से भी लाइव प्रसारित किया जाएगा। जिम्बाब्वे की मीडिया ने कहा है कि, देश की संसद को चीनी सरकार ने उपहार के तौर पर वित्त पोषित किया गया है और इसका निर्माण शंघाई कंस्ट्रक्शन ग्रुप कंपनी द्वारा किया गया है। इससे पहले जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति ने नई इमारत को एक राजसी और ऐतिहासिक कार्य के रूप में वर्णित किया था। संसद भवन में चार मंजिलें और कार्यालय भवन की तरफ छह मंजिलें हैं और हर मंजिल पुल के जरिए आपस में जुड़े हुए हैं। वहीं, स्वतंत्र मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है, कि जिम्बाब्वे के लिए ये रकम चीन को लौटाना आसान नहीं होने वाला है।
कितने करोड़ डॉलर किए गये हैं खर्च?
जिम्बॉब्वे की राजधानी हरारे के माउंट हैंपडन में चीन ने इस नये संसद भवन का निर्माण करवाया है। लेकिन, आपको ये जानकार हैरानी होगी, कि चीन ने जिम्बॉब्वे में संसद भवन के निर्माण में 140 मिलियन डॉलर यानि 14 करोड़ डॉलर खर्च कर दिए हैं। लिहाजा, बेहद खराब आर्थिक हालत से गुजर रहा जिम्बॉब्वे इस विशालकाय कर्ज को कैसे चुकाएगा, ये बात किसी को समझ नहीं आ रही है। जबकि, चीन अपने तय प्लानिंग के तहत अफ्रीकी देशों में अपने कर्ज कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है। चीन ने पूरे अफ्रीका महाद्वीप में विशालकाय परियोजनाओं की एक श्रृंखला की शुरूआत कर रखी है और अफ्रीकी देशों के लिए चीन सबसे बड़ा कर्जदाता देश बन चुका है। जिम्बॉब्वे की राजधानी हरारे के उत्तर-पश्चिम में लगभग 18 किमी की दूरी पर माउंट हैम्पडेन नाम के एक जगह पर चीन ने इस संसद भवन का निर्माण किया गया है।
कैसा है जिम्बॉब्वे का संसद भवन?
जिम्बॉब्वे में संसद का निर्माण करने वाले चीन का कहना है कि, इस संसद के निर्माण के बाद जिम्बॉब्वे औपनिवेशिक युग से बाहर निकल जाएगा, क्योंकि पुराने संसद को हटा दिया गया है। वहीं, जिम्बॉब्वे के इस नये संसद में 650 लोगों के एक साथ बैठके की व्यवस्था की गई है, जबकि पुराने संसद में 100 लोगों के ही बैठने की व्यवस्था थी और जिम्बॉब्वे में सांसदों की संख्या 350 होती है, लिहाजा पुराना संसद भवन छोटा पड़ रहा था। एक पहाड़ी की चोटी पर इस संसद भवन का निर्माण किया गया है और इसका निर्माण शंघाई कंस्ट्रक्शन ग्रुप ने किया है। संसद भवन को भव्य गोलाकार परिसर में डिजाइन किया गया है और इस निर्माण का पूरा का पूरा खर्च चीन ने ही उठाया है।
चीन ने बताया दोस्ती की मिसाल
चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिम्बॉब्वे में इस नये संसद को बनाने में चीन के 500 टेक्नीशियन ने काम किया है और 1200 स्थानीय कर्मचारियों को भी संसद के निर्माण में काम करने का मौका मिला। चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन को इस संसद को बनाने में करीब साढ़े तीन सालों का वक्त लगा है और शंघाई कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मैनेजर लिबो कै ने पिछले दिनों कहा था कि, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि नई संसद जिम्बाब्वे और यहां तक कि पूरे दक्षिणी अफ्रीका में एक ऐतिहासिक इमारत बन जाएगी।" चीनी कंपनी ने संसद भवन का निर्माण करने के बाद कहा था कि, "यह चीन-जिम्बाब्वे दोस्ती के लिए एक और मील का पत्थर होगा, जो साल-दर-साल मजबूत होता जा रहा है।" साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबित, इमारत का कुल क्षेत्रफल 33,000 वर्ग मीटर (355,200 वर्ग फुट) है और इसमें दो मुख्य भवन हैं, एक छह मंजिला कार्यालय भवन और एक चार मंजिला संसद भवन। चीनी कंपनी ने कहा है कि, संसद भवन के निर्माण का सारा खर्च बीजिंग ने उठाया है।
कर्ज के जाल में फंस गया जिम्बॉब्वे?
जिम्बॉब्वे फिलहाल देश में बने नये संसद भवन से खुश है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है, कि जिम्बॉब्वे अब चीन के जाल में बुरी तरह से फंस चुका है। इसके पीछे एक्सपर्ट्स युगांडा का उदाहरण देते हैं। युगांडा की सरकार अपने एकमात्र अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट कर्ज ना चुका पाने की वजह से चीन के हाथों गंवाने की कगार पर पहुंच गई है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन के ऋणदाता ने जो लोन के लिए शर्तें लगा रखी हैं, उसमें कर्ज वापसी नहीं कर पाने की स्थिति में एयरपोर्ट पर कब्जे की शर्त भी लगाई गई है। पिछले साल नवंबर में युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने इस शर्त को बदलने की कोशिश के तहत एक प्रतिनिधिमंडल को बीजिंग भी भेजा था, लेकिन चीन ने सौदे के मूल मसौदे में किसी भी तरह के बदलाव से साफ मना कर दिया। लिहाजा, पूरी आशंका है, कि आगे जाकर जिम्बॉब्वे चीन के हाथों की कठपुतली की तरह काम करेगा और अगर उसने चीन के खिलाफ जाने की कोशिश की, तो फिर उसका हाल भी युगांडा की ही तरह होगा।