क्या भारत की 'लापरवाही' से रिहा हो जाएंगे हमलावर?
मुंबई हमले के सभी अभियुक्तों को पाकिस्तान की अदालत बरी कर सकती है.
2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान के आठ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. इन आठों अभियुक्तों पर मुक़दमा पाकिस्तान की अदालत में चल रहा है.
इनके वक़ीलों का कहना है कि यह केस अब सुनवाई के आख़िरी चरण में है. भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में साल 2008 में इसी महीने 26 नवंबर को 60 घंटे का एक हमला हुआ था.
इस हमले की नौवीं बरसी पर बचाव पक्ष के वक़ील रिज़वान अब्बासी ने बीबीसी से कहा कि रावलपिंडी की अदियाला जेल में हर हफ़्ते इस मामले की सुनवाई हो रही है.
इसी जेल में सात अभियुक्त क़ैद हैं. रिज़वान अब्बासी ने कहा, ''इस मामले में 72 गवाहों की गवाही ली गई है. जांचकर्ता अभी कुछ और गवाहों की गवाही चाहते हैं, लेकिन यह केस आख़िरी चरण में है.''
इन सभी अभियुक्तों पर अदालत में 2009 में सुनवाई शुरू हुई थी, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच भरोसे की कमी के कारण यह सुनवाई लंबी खिंचती गई.
'कसाब की फांसी के बाद जब मैं उनके गांव पहुंची'
'लोग मुझे क़साब की बेटी बोलते थे'
ऐसा लगा जैसे मुंबई पर एक सेना ने हमला बोल दिया हो
आख़िर इस मुक़दमे में इतनी अड़चनें क्यों आईं? अब्बासी इसके लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
अब्बासी कहते हैं, ''शुरुआत में समय काफ़ी बर्बाद हुआ. भारतीय अधिकारियों ने इसमें बिल्कुल सहयोग नहीं किया. पाकिस्तानी अधिकारियों को भारत सबूत जुटाने के लिए नहीं आने दिया गया. इसके बाद जांच के लिए एक आयोग का गठन किया गया पर भारत ने सबूतों की जांच नहीं होने दी.''
अब पाकिस्तान ने भारत से 24 गवाहों को पाकिस्तान भेजने का आग्रह किया है ताकि उनके बयानों को रिकॉर्ड किया जा सके.
बचाव पक्ष के वक़ील ने बीबीसी से कहा कि इस मामले भारत के अधिकारियों के पास कई पत्र भेजे गए. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार ने जांच को लेकर एक ख़ास व्यक्ति की नियुक्ति की है ताकि मुक़दमे का निपटारा जल्द किया जा सके.
उन्होंने कहा कि भारत इस मामले से जुड़े सारे अनुरोधों का जवाब नहीं दे रहा है. अब्बासी को अब लगता है कि भारत गवाहों को पाकिस्तान पूछताछ के लिए नहीं भेजेगा क्योंकि वो इसका निपटारा नहीं चाहता है.
उन्होंने कहा कि भारत इस मामले को ज़िंदा रखना चाहता है ताकि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ इसका राजनयिक इस्तेमाल किया जा सके.
भारत ने नहीं किया सहयोग?
मार्च 2012 में और फिर अक्टूबर 2013 में पाकिस्तान का एक प्रतिनिधिमंडल सबूत जुटाने भारत गया था. पहला दौरा नाकाम रहा था और दूसरे दौरे में आठ सदस्यों वाले इस प्रतिनिधिमंडल को भारत में गवाहों से पूछताछ की अनुमति नहीं दी गई.
इस प्रतिनिधिमंडल में वक़ील, जांचकर्ता और कोर्ट के अधिकारी शामिल थे.
भारत ने इस मामले में किस तरह के सबूत मुहैया कराए हैं? इस पर अब्बासी कहते हैं कि सबूत के नाम पर कुछ नहीं दिया गया है बस आरोप और फाइलें हैं.
उन्होंने कहा कि इन दस्तावेजों का कोर्ट में कोई महत्व नहीं है. अब्बासी ने कहा कि इस मामले में ठोस सबूतों का अभाव है और इसे कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता है. हालांकि भारत इन दावों के हमेशा ख़ारिज करता रहा है.
बचाव पक्ष की तरह दूसरे पक्ष के वक़ील की भी यही राय है. अभियोजक पक्ष के वक़ील अकरम क़ुरैशी ने कहा, ''इस मामले से अहम सबूत ग़ायब है. भारत ने इस केस के अहम सबूतों को नहीं सौंपा है. उन्होंने कहा कि हथियार, गोलियां और सेल फ़ोन को पाकिस्तान जांच के लिए नहीं भेजा गया.
उन्होंने कहा कि इस मामले में भारत के लापरवाह रवैये के कारण केस में बहुत दम नहीं बचा है. मुक़दमे की सुनवाई शुरू होने के बाद से आठ जजों का तबादला क्यों किया गया?
इस पर बचाव पक्ष के वक़ील रिज़वान अब्बासी कहते हैं कि यह रूटीन तबादला है और इसमें कुछ भी ख़ास नहीं है.
दूसरा सवाल यह है कि इस मामले में ज़की-उर रहमान को मास्टरमाइंड कहा जा रहा है और उन्हें ज़मानत दे दी गई. आख़िर ज़कीउर के साथ ऐसा क्यों किया गया?
इस पर बचाव पक्ष के वक़ील का कहना है कि बाक़ियों के लिए किसी ने ज़मानत की मांग नहीं की.
6 महीने के भीतर करना है निपटारा
उन्होंने कहा, ''हाई कोर्ट का आदेश है इस केस को 6 महीने के भीतर निपटाया जाए. ऐसे में हमने फ़ैसला किया है कि बाक़ी बचे अभियुक्तों को ज़मानत पर रिहा नहीं किया जाएगा. हमें उम्मीद है कि इस केस पर जल्द ही फ़ैसला आएगा.''
उन्होंने कहा कि अगर इस मामले को भारत के असहयोग के कारण लंबे समय तक खींचा जाता है तो हमलोग सभी अभियुक्तों को ज़मानत के अनुरोध पर रिहा करने के लिए मज़बूर होंगे.
उन्होंने कहा कि यह उनका अधिकार है. रिज़वान अब्बासी ने बीबीसी से कहा कि ज़की उर रहमान लखवी पाकिस्तान में हैं और उन्हें अदालत में पेश होने से छूट सुरक्षा कारणों से दी गई है. रिज़वान ने कहा कि उनके बदले उनका वक़ील कोर्ट में पेश होता है.
उन्होंने यह भी कहा कि केस जिस मुकाम पर पहुंच गया है वहां से भारत के कहने पर फिर से जांच नहीं की जा सकती है. रिज़वान ने कहा कि कोर्ट अब पीछे नहीं हटेगा और जारी सुनवाई को मुकाम तक पहुंचाएगा.
भारत मुंबई हमले में हाफ़िज़ सईद को ग़िरफ़्तार करने की मांग कर रहा है.
हाफ़िज़ सईद मामले में बचाव पक्ष के वक़ील का कहना है कि अदालत ने उन्हें पहले ही आरोपों से मुक्त कर दिया है. बचाव पक्ष के वक़ील ने कहा कि हाफ़िज़ सईद के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है और मुबंई हमले में उनकी संलिप्तता को साबित नहीं किया जा सका.