क्या अब लीवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी?
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं में से एक डॉक्टर थॉमस बर्ड ने कहा, "अच्छी बात यह है कि यह तब भी प्रभावी होता है जब आपको गंभीर रूप से चोट लगी हो, एक बार आपका लीवर फिर से विकसित हो जाए तो आप सामान्य जीवन जी सकते हैं."
वो कहते हैं, "अब गंभीर रूप से ख़राब हो चुके लीवर वाले मरीज़ों का क्लिनिकल परीक्षण करना और यह देखना चाहिए कि हम लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता को कैसे रोक सकते हैं."
इनसान का लीवर अगर अचानक बिगड़ जाए तो उसे अब प्रत्यारोपण की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. एडिनबरा के वैज्ञानिकों का यह कहना है.
बिगड़े लीवर में ख़ुद को ठीक करने की प्राकृतिक क्षमताएं हैं. हालांकि कुछ मामलों में इन क्षमताओं को नुकसान पहुंचता है, जैसे कि कुछ गंभीर चोटें जिसमें अधिक मात्रा में दवाओं का लेना भी शामिल है.
यह इलाज एक कैंसर की दवा है जो लीवर की क्षमता को पहले जैसा बना देती है.
यह काम अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि प्रतिरोपण के इस विकल्प का लीवर के रोगियों पर बड़ा असर पड़ेगा.
ब्रिटेन में हर साल क़रीब 200 लोगों को लीवर की ख़तरनाक ख़राबी का सामना करना पड़ता है.
'मुझे नए लीवर की ज़रूरत है'
21 वर्षीय स्टूडेंट नर्स कारा वाट को दो साल पहले लीवर प्रत्यारोपण की ज़रूरत थी.
वो केयर होम में थीं जब उन्हें बीमारी महसूस हुई और उनका चेहरा पीला पड़ने लगा.
जांच से पता चला कि उनकी लीवर में समस्या है जो और बिगड़ती ही जा रही है.
उन्हें एडिनबरा के इंटेंसिव केयर में रखा गया और बताया गया कि उन्हें लीवर प्रतिरोपण की ज़रूरत है. वो कहती हैं, "यह सुनना बहुत भयानक था."
वैज्ञानिकों का कहना है कि कारा जैसे लोगों से उनके काम में मदद मिलेगी.
लीवर में 'सेनेसेंस' प्रक्रिया
वैज्ञानिकों की टीम ने लोगों के लीवर की यह जांच शुरू की है कि वे सुधार की क्षमता क्यों खो देते हैं.
उन्होंने पाया कि गंभीर चोटों की वजह से लीवर में तेज़ी से 'सेनेसेंस' प्रक्रिया शुरू हो गई.
सेनेसेंस प्रक्रिया में कोशिकाएं अक्सर समय से पहले बूढ़ी हो जाती हैं और उनका विभाजन थम जाता है या वो मर जाती हैं.
यह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि गंभीर चोटें अंगों के माध्यम से फ़ैलने वाली संक्रामक स्थिति की तरह हैं.
'साइंस ट्रांसलेशन मेडिसिन' में प्रकाशित इस शोध में एक केमिकल सिग्नल भी मिला है जो इसके लिए ज़िम्मेदार मालूम पड़ता है.
शोधकर्ताओं ने फिर चूहे और प्रायोगिक कैंसर थेरेपी की मदद ली जिससे केमिकल सिग्नल को रोका जा सकता है.
इन्हें अधिक मात्रा में ड्रग्स दिया गया जिससे सामान्य तौर पर लीवर इतना ख़राब हो जाता है कि इससे मौत भी हो सकती है, लेकिन इलाज होने से वो बच गए.
शोधकर्ता इस उम्मीद में मरीज़ों पर दवा को फ़ौरन टेस्ट करना चाहते हैं कि यह लीवर प्रतिरोपण की ज़रूरत को कम कर सकता है.
सामान्य जीवन
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं में से एक डॉक्टर थॉमस बर्ड ने कहा, "अच्छी बात यह है कि यह तब भी प्रभावी होता है जब आपको गंभीर रूप से चोट लगी हो, एक बार आपका लीवर फिर से विकसित हो जाए तो आप सामान्य जीवन जी सकते हैं."
वो कहते हैं, "अब गंभीर रूप से ख़राब हो चुके लीवर वाले मरीज़ों का क्लिनिकल परीक्षण करना और यह देखना चाहिए कि हम लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता को कैसे रोक सकते हैं."
इससे न केवल अंग प्रत्यारोपण की लिस्ट से दबाव कम हो सकता है बल्कि मरीज़ों के जीवन में भी अंतर आ जाएगा.
कारा आज रोज़ाना 13 गोलियां लेती हैं, इनमें से अधिकांश उनके शरीर को नए लीवर को अस्वीकार करने से रोकने के लिए है.
वो कहती हैं, "अगर इस इलाज से लोगों को मदद मिलती है तो यह बहुत फ़ायदेमंद होगा."
शोध समूह जिसमें ग्लासगो का बीटसन इंस्टीट्यूट भी शामिल है, यह भी जांच कर रहा है कि 'सेनेसेंस' क्या लीवर से आगे भी फैलता है और क्या इससे प्रभावित होकर कई और अंग भी ख़राब हो सकते हैं.
वेलकम ट्रस्ट की लिंडसे केर कहती हैं कि यह शोध 'महत्वपूर्ण' है.
वो कहती हैं, "शोध से अब तक यही सुझाव मिलता है कि इस स्थिति का इलाज करने के लिए एक दवा का उपयोग किया जा सकता है जो लीवर प्रतिरोपण जैसी महत्वपूर्ण ऑपरेशन की आवश्यकता को कम करता है."
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