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तालिबान के लिए सरकार चलाना नहीं होगा आसान, जानिए कितने खेमों में बंटे हैं अफगानिस्तान के मुसलमान?

अफगानिस्तान में मुसलमान कई समुदायों में बंटे हुए हैं और उनपर बंदूक के द्वारा शासन करना काफी मुश्किल होने वाला है। क्योंकि, समुदायों को डराकर उनपर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है।

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काबुल, सितंबर 08: अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार का निर्धारण हो चुका है और तालिबान ने प्रमुख मंत्रियों की घोषणा कर दी है। काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने दावा किया था कि वो एक ऐसी सरकार का निर्माण करेगा, जिसमें सभी को शामिल किया जाएगा, लेकिन कल तालिबान सरकार के मंत्रियों को देखने के बाद पता चलता है कि तालिबान ने झूठ बोला है। सरकार में तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के अलावा किसी को भी जगह नहीं दी गई है। महिलाओं को कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है। जिसके बाद अंदाजा लगाया जा रहा है कि बंदूक के दम पर भी तालिबान ज्यादा दिनों तक अपनी सत्ता को बरकरार नहीं रख पाएगा। क्योंकि, अफगानिस्तान के मुस्लिम जितने हिस्सों में बंटे हैं, उनकी नाराजगी मोल लेकर तालिबान ज्यादा दिनों तक सरकार नहीं चला पाएगा।

अलग अलग गुटों में नाराजगी

अलग अलग गुटों में नाराजगी

तालिबान कई आतंकवादी समूहों का एक गठबंधन है, जिसे अलकायदा, आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों का समर्थन है। इन संगठनों के आतंकी एक दूसरे के संगठन में शामिल होते रहते हैं, बिल्कुल कॉरपोरेट नौकरी के तहत जैसे लोग एक कंपनी से दूसरी कंपनी में नौकरी करने के लिए जाते हैं। तालिबान 15 अगस्त को ही काबुल पर कब्जा कर चुका था, लेकिन अभी भी उसने अंतरिम सरकार का ही गठन किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान के अंदर भारी फूट है और हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान के शह पर तालिबान को ब्लैकमेल भी कर रहा है। दूसरी तरफ पंजशीर में अभी भी तालिबान को कड़ी टक्कर मिल रही और इन सबके इतर अफगानिस्तान के समाज की राजनीति की संरचना ऐसी है कि कोई एक गुट अकेले पूरे अफगानिस्तान पर शासन नहीं कर सकता है। अफगानिस्तान में अभी तक जो भी सरकार बनी है (तालिबान को छोड़कर) उन्होंने हर समुदाय के लोगों को अपनी सरकार में जगह दी है और उनके प्रभाव को स्वीकार किया है और तभी वो सरकार चलाने में कामयाब हो पाए। आपको ताज्जुब होगा कि अफगानिस्तान में कई वॉरलॉर्ड्स ऐसे हैं, जो तालिबान के कब्जे के बाद भी अलग अलग प्रांतों में राज्यपाल बने हुए हैं।

कितने समुदाय में बंटे हैं अफगान के मुसलमान

कितने समुदाय में बंटे हैं अफगान के मुसलमान

अफगानिस्तान के मुसलमान कई समुदायों के बीच बंटे हुए हैं और उनकी पौराणिक संस्कृति और सांस्कृतिक ढांचा भी अलग अलग है और ये समुदाय कभी किसी के नियंत्रण में नहीं रहे हैं। उनका शासन स्वायत्त रहा है और हर ग्रुप का अलग अलग सरदार रहा है, जिन्हें 'वॉर लॉर्ड्स' कहा जाता है। ये 'वॉर लॉर्ड्स' काफी ताकतवर होते हैं। अफगानिस्तान मे मौजूद अलग अलग समुदाय अपनी परंपरा को काफी ज्यादा तरजीह देते हैं और उसे अपने अस्तित्व से जोड़ते हैं। अफगानिस्तान में कुल मिलाकर 14 अलग अलग समुदाय रहते हैं, जिनमें 7 ऐसे समुदाय हैं, जिनका अफगानिस्तान की राजनीति से लेकर समाज में काफी ज्यादा वर्चस्व मौजूद है। इन समुदायों के नाम हैं पश्तून, ताजिक, हजारा, उज्बेक, तुर्क, बलूच और नूरिस्तानी।

पश्तून समुदाय को जानिए

पश्तून समुदाय को जानिए

पश्तून समुदाय को अफगानिस्तान का सबसे बड़ा समुदाय माना जाता है और हमेशा से अफगानिस्तान पर इस समुदाय का दबदबा रहा है। अफगानिस्तान की जनसंख्या के मुताबिक कुल 4 करोड़ की जनसंख्या में करीब 42 प्रतिशत पश्तून आबादी है जो पश्तो बोलते हैं। अफगानिस्तान की राजनीति में पिछले 300 सालों से पश्तूनों का ही दबदबा रहा है और एक तरह से देखें तो अफगानिस्तान की मुख्य पहचान पश्तून ही रहे हैं। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अशरफ गनी भी पश्तून समुदाय से ही आते हैं। ज्यादातर पश्तून सुन्नी मुसलमान हैं और इनके समुदाय प र अरब इस्लामिक रिवाजों का काफी प्रभाव है। तालिबान में भी पश्तूनों का ही वर्चस्व है और दक्षिणी और पूर्वी अफगानिस्तान पर पश्तूनों का नियंत्रण रहा है। इसके साथ ही पाकिस्तान से सटे प्रांतों पर पश्तूनों का काफी प्रभाव है।

ताजिक समुदाय

ताजिक समुदाय

अफगानिस्तान में दूसरे नंबर पर ताजिक समुदाय का प्रभाव है। इनकी आबादी पश्तूनों की तुलना में कम है, लेकिन प्रभाव इनका भी काफी ज्यादा होता है। अफगानिस्तान की कुल 4 करोड़ की आबादी में करीब 27 प्रतिशत ताकिज समुदाय की आबादी है। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह इसी समुदाय से आते हैं और पंजशीर घाटी में ताजिक समुदाय का ही बोलबाला रहा है, इसीलिए पंजशीर में तालिबान के लिए नियंत्रण करना आसान नहीं है। ताजिक समुदाय के लोग दारी भाषा बोलते हैं और पड़ोसी देश ताजिकिस्तान का समर्थन इन्हें मिलता रहा है। ताजिक समुदाय का पंजशीर, बदख्शां समेत उत्तरी अफगानिस्तान पर काफी प्रभाव रहा है वहीं, अफगानिस्तान के पश्चिमी इलाकों पर इनका काफी प्रभाव है। लिहाजा, तालिबान के लिए ताजिक समुदाय को नकारना आसान नहीं होगा और अगर ताजिक समुदाय के विद्रोह की वजह से अफगानिस्तान में भारी गृहयुद्ध की आशंका जताई जा रही है। तालिबान ने ताजिक समुदाय को अपनी सरकार में कोई स्थान नहीं दिया है। अफगानिस्तान के पूर्व सीईओ अब्दुल्ला-अब्दुल्ला भी ताजिक समुदाय से ही हैं, जिन्हें तालिबान ने नजरबंद कर रखा है।

हजारा समुदाय

हजारा समुदाय

तालिबान के निशाने पर सबसे ज्यादा हजारा समुदाय ही रहता है और तालिबान अब तक हजारों हजारा समुदाय के मुसलमानों को मार चुका है। आबादी के हिसाब से देखें तो अफगानिस्तान में हजारा समुदाय की आबादी 10 प्रतिशत के करीब है और ये दारी भाषा बोलने वाली समुदाय है। हजारा समुदाय की ज्यादातर आबादी मध्य अफगानिस्तान में रहती है और यहीं पर तालिबान के आतंकवादियों ने महात्मा बुद्ध की सबसे ऊंची मूर्ति को नष्ट कर दिया था। हजारा समुदाय में ज्यादातर मुस्लिम शिया हैं और तालिबान इन्हें काफिर मानता हैं और इसीलिए हजारा समुदाय को सबसे ज्यादा अपने निशाने पर लेता है। हजारा समुदाय के लोगों के घर, अस्पताल, स्कूलों, मस्जिदों के ऊपर लगातार तालिबान और इस्लामिक स्टेट खुरासन के आतंकवादी हमला करते रहते हैं।

उज्बेक समुदाय

उज्बेक समुदाय

अफगानिस्तान की आबादी में करीब 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाला उज्बेक समुदाय पर पड़ोसी देश उज्बेकिस्तान का प्रभाव रहा है। उज्बेकिस्तान अफगानिस्तान के उत्तर में है और उज्बेक समुदाय के मुसलमान भी अफगानिस्तान के उत्तर में रहते हैं। इस वक्त उज्बेक समुदाय के वार्डलॉर्ड अब्दुल राशिद दोस्तूम हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वो तालिबान से अपनी जान बचाने के लिए उज्बेकिस्तान चले गये हैं।

तुर्क समुदाय

तुर्क समुदाय

तुर्कमेनिस्तान की सरहद से लगे अफगानिस्तानी इलाके में तुर्क समुदाय के लोग रहते हैं। ये आबादी भी अफगानिस्तान के उत्तरी हिस्से में रहती है। तुर्क समुदाय के लोग भी तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और ये नॉर्दर्न एलायंस को समर्थन करते हैं। 1996 से 2001 के बीच में भी तुर्क समुदाय ने तालिबान की नाक में दम कर दिया था और तुर्क समुदाय और ताजिक समुदाय के लोग मिलकर करीब 35 प्रतिशत आबादी हो जाता है, लिहाजा तालिबान के लिए इन दोनों समुदायों को नजरअंदाज करना भारी पड़ेगा।

बलोच समुदाय

बलोच समुदाय

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की सीमा के पास बलोच समुदाय के लोग रहते हैं और इनका प्रभाव अफगानिस्तान के साथ साथ पाकिस्तान में भी है। बलूचिस्तान एक अलग देश था, जिसपर 1950 के दशक में पाकिस्तान के कब्जा कर लिया और बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही है। बलबचिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों पर पाकिस्तानी सेना भयानक जुल्म करती है और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों का कत्ल पाकिस्तान की सेना कर चुकी है। पाकिस्तान की सरकार बलूचिस्तान की समृद्ध खनिजों का खनन करती है और बड़े हिस्से को एक तरह से चीन कौ सौंप चुकी है। अफगानिस्तान के बलोच और पाकिस्तान के बलोचों के बीच शादी ब्याह तक का रिश्ता है और दोनों तरफ के लोगों में आपस में रिश्तेदारी है। लिहाजा, बलोच समुदाय भी तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है।

नूरिस्तानी समुदाय

नूरिस्तानी समुदाय

अफगानिस्तान में नूरिस्तानी समुदाय का भी थोड़ा प्रभाव है और ये समुदाय उत्तरी पूर्वी अफगानिस्तान में बसे हुए हैं। नूरिस्तानी समुदाय के लोग पहले मुसलमान नहीं थे, इन्हें 19वीं सदी में तलवारों के दम पर जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया। कहा जाता है कि इस समुदाय के लोग भारत के प्रति नरम रूख रखते हैं और इस समुदाय के नेता मोहम्मद अता नूर ने 2020 में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात भी की थी। इन्होंने तालिबान के खिलाफ एक नया संगठन बनाया हुआ है और तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण के बाद ये उज्बेकिस्तान चले गये।

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English summary
Why would it not be easy for the Taliban to run the government among the Muslims of Afghanistan, divided into several communities?
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