मोदी-जिनपिंग की मुलाकात के लिए वुहान शहर को ही क्यों चुना गया?
भारत और चीन के शीर्ष नेताओं के बीच होने वाली मुलाकात को चीन की राजधानी बीजिंग में ना रख कर चीन के एक मध्यवर्ती शहर में रखना एक कूटनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण क़दम है.
ये कहना है चीन की स्थानीय मीडिया का.
चीन के मध्य प्रांत हुबेई की राजधानी वुहान में 27 और 28 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाक़ात होगी.
भारत और चीन के शीर्ष नेताओं के बीच होने वाली मुलाकात को चीन की राजधानी बीजिंग में ना रख कर चीन के एक मध्यवर्ती शहर में रखना एक कूटनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण क़दम है.
ये कहना है चीन की स्थानीय मीडिया का.
चीन के मध्य प्रांत हुबेई की राजधानी वुहान में 27 और 28 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाक़ात होगी.
वुहान से प्रकाशित होने वाले दैनिक अख़बार 'द चैंगजिआंग डेली' का मानना है कि ये संकेत है कि वुहान शहर अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक कलापों के लिए एक ठिकाना बनता जा रहा है.
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वुहान बन रहा है कूटनीति का नया ठिकाना
23 अप्रैल की अपनी रिपोर्ट में अख़बार ने बताया कि पिछले एक साल में ही इस शहर में दो बार और विदेशी उच्चाधिकारियों का स्वागत किया गया है.
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेज़ा मे ने अपना तीसरा चीनी दौरा भी 31 जनवरी 2018 को वुहान से ही शुरू किया था. उनके अलावा फरवरी 2017 में फ्रांस के प्रधानमंत्री बर्नार्ड केज़ेनुवे शहर में आए थे.
अख़बार बताता है कि इसकी लोकेशन, इसका मध्य चीन का सबसे बड़ा शहर होना और दुनिया के सबसे बड़े कॉलेज छात्रों की जनसंख्य़ा वाला शहर होने की वजह से ब्रिटेन के राजनीतिक और आर्थिक जानकारों की नज़र वुहान के शहरी विकास पर बनी हुई है.
चीन के मध्य क्षेत्र में पहला विदेशी दूतावास भी इसी शहर में बना जब 1998 में फ्रांस ने अपना दूतावास यहां बनाया. यही वो पहला इको-सिटी है जिसे फ्रांस और चीन ने मिल कर बनाया.
अन्य मीडिया का कहना है कि वुहान को चुने जाने के पीछे कूटनीतिक और रणनीतिक वजहें हैं.
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असामान्य क़दम
सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के 23 अप्रैल के संपादकीय में कहा गया कि बीजिंग की अपेक्षा थोड़े शांत वुहान को चुनना उस अंसुतष्टि को कम करना है जो भारत में मोदी के आलोचकों को इस दौरे को लेकर होगी.
संपादकीय में ये भी लिखा गया कि किसी प्रांत में जाकर मोदी से मिलने का शी का फैसला भी एक असामान्य क़दम है और प्रोटोकोल से इतर ये क़दम सद्भावना भी दिखाता है और इस मुलाकात की महत्ता भी.
अखबार कहता है कि आने वाली ये मुलाक़ात ऐतिहासिक हो सकती है उतनी ही जितनी पूर्व चीनी नेता डंग शाओपिंग और राजीव गांधी की 1988 की मुलाक़ात जिसने भारत-चीन के रिश्तों के भविष्य की दिशा तय की.
वीचैट पर राजनीतिक टिप्पणीकार ज़ेनहाओ की एक सार्वजनिक पोस्ट से पता चलता है कि एक न्यूज़ वेबसाइट आई ज़ेनदाओ ने बताया कि 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी वुहान आए थे और इसी शहर में दोनों देशों के बीच शांति से मिलजुलकर रहने के पांच नियमों पर भी हस्ताक्षर हुए थे.
इसलिए वुहान का चुनाव शी और मोदी की मुलाक़ात की गंभीरता को भी दिखाता है, एक ऐसे समय जब काफ़ी तनाव के बाद दोनों देशों के बीच कुछ गर्माहट देखने के मिल रही है.
वेबसाइट ने ज़ानहाओ के हवाले से लिखा है कि 2015 में मोदी के बीजिंग दौरे के बाद चीन के नेता भारत नहीं आए हैं तो इस शहर का चुनाव इसलिए भी किया गया है ताकि मोदी की नाक भी बची रहे.
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया
बहरहाल, चीन के विदेश मंत्रालय ने इस पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा है.
23 अप्रैल को एक रिपोर्टर के सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि दोनों देशों से पूछ कर ही दोनों नेताओं की मुलाकात के इंतज़ाम किए गए हैं. मंशा बस यही है कि दोनों नेताओं को गंभीरता से बात करने के लिए अच्छा माहौल मिल सके.
द पेपर वेबसाइट के मुताबिक उप-विदेश मंत्री कोंग शुआनयो ने पत्रकारों को बताया कि वुहान को ना सिर्फ इसलिए चुना गया है क्योंकि यह मध्य चीन का सबसे बड़ा शहर है ब्लकि इसलिए भी क्योंकि इस शहर में भारत-चीन रिश्तों की एक ऐतिहासिक महत्ता भी है.
कोंग ने ये भी कहा कि मोदी चीन के दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम शहरों में आ चुके हैं लेकिन अभी मध्य चीन में नहीं गए हैं.
कोंग कहते हैं, "ये दौरा मोदी के लिए चीन को बेहतर समझने में एक नया अनुभव होगा."