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फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता को इस्लाम के ख़िलाफ़ क्यों माना जा रहा है?

लैसिते यानी धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत फ़्रांस की राष्ट्रीय विचारधारा है. लेकिन हाल की कई घटनाओं के कारण अब इस पर सवाल भी उठ रहे हैं.

By ज़ुबैर अहमद
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फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता को इस्लाम के ख़िलाफ़ क्यों माना जा रहा है?

'धर्म विहीन राज्य' ही फ़्रांस का सरकारी धर्म है. ये आपको भले ही चौंका देने वाला लगे, लेकिन सच ये है कि 'laicite' या लैसिते या 'धर्म से मुक्ति' ही इसकी राष्ट्रीय विचारधारा है.

फ़्रांसी की राजनीति पर गहरी नज़र रखने वाले डॉमिनिक मोइसी ने लैसिते पर टिप्पणी करते हुए एक बार कहा था कि ये ऊपर से थोपी गई एक प्रथा है. उन्होंने कहा था, "लैसिते गणतंत्र का पहला धर्म बन गया है."

'लैसिते' शब्द फ़्रांस में इस समय सबसे अधिक चर्चा में है. हाल ही में फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के इस्लाम पर दिए गए बयान को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है.

उन्होंने पैग़ंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने के एक फ़्रांसीसी शिक्षक के फ़ैसले का समर्थन किया था और शिक्षक की हत्या के बाद कहा था कि इस्लाम संकट में है.

उन्होंने फ़्रांस में इस्लाम को फ़्रांस के हिसाब से ढालने की बात भी कही थी.

उसके बाद से उनके और मुस्लिम देशों के कई नेताओं के बीच ठन गई है. कई मुस्लिम देशों में फ़्रांस में बनी चीज़ों के बहिष्कार की मांग की जा रही है.

फ़्रांस में 16 अक्तूबर की घटना ने वहाँ के लोगों को झकझोर कर रख दिया है. पैग़ंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने वाले शिक्षक की 18 साल के एक मुस्लिम लड़के ने दिनदहाड़े हत्या कर दी.

इस हत्या के बाद देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. राष्ट्रपति के बयान ने मुस्लिम देशों के नेताओं और समाज को नाराज़ तो किया ही, साथ ही लैसिते में परिवर्तन को लेकर भी बहस छिड़ गई है.

फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता को इस्लाम के ख़िलाफ़ क्यों माना जा रहा है?

कट्टर धर्मनिरपेक्षता या लैसिते क्या है?

Laicite फ़्रांसीसी शब्द laity से निकला है, जिसका अर्थ है- आम आदमी या ऐसा शख़्स, जो पादरी नहीं है.

लैसिते सार्वजनिक मामलों में फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत है, जिसका उद्देश्य धर्म से मुक्त समाज को बढ़ावा देना है.

इस सोच का विकास फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान शुरू हो गया था.

इस विचारधारा को अमलीजामा पहनाने के लिए इसे 1905 में एक क़ानून के तहत सुरक्षित और सुनिश्चित कर दिया गया.

इस क़ानून में धर्म और राज्य को अलग-अलग कर दिया गया. मोटे तौर पर ये विचार संगठित धर्म के प्रभाव से नागरिकों और सार्वजनिक संस्थानों की स्वतंत्रता को दर्शाता है.

सदियों तक यूरोप के दूसरे देशों की तरह फ़्रांस में भी रोमन कैथोलिक चर्च का ज़ोर रहा है.

इस संदर्भ में धर्म से मुक्त समाज का विकास सराहनीय था. 20वीं शताब्दी के शुरू में लैसिते एक क्रांतिकारी सोच थी.

लेकिन इसे राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने में दशकों लग गए. इसे लोगों तक पहुँचाने के लिए राज्य ने एक संस्था बनाई, जिसे फ़्रांसीसी भाषा में 'ऑब्ज़र्वेटॉइर डे लैसिते' या 'धर्मनिरपेक्षता की संस्था' कहा जाता है.

इस संस्था की वेबसाइट पर लैसिते की परिभाषा कुछ इस तरह है- लैसिते अंतरात्मा की स्वतंत्रता की गारंटी देता है.

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फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता को इस्लाम के ख़िलाफ़ क्यों माना जा रहा है?

धर्म का कहाँ है स्थान

इसका मतलब हुआ कि हर किसी को अपने धर्म का अपने तरीक़े से पालन करने की इजाज़त होगी, लेकिन ये क़ानून से बड़ा नहीं होगा, बल्कि उसके दायरे में ही रहेगा.

लैसिते के अंतर्गत धर्म के मामले में राज्य तटस्थ होता है और धर्म या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव किए बिना क़ानून के समक्ष सभी की समानता के सिद्धांत को लागू करता है.

ये संस्था आगे कहती है, "धर्मनिरपेक्षता आस्तिक और नास्तिक दोनों ही लोगों को उनकी मान्यताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समान अधिकार की गारंटी देती है. ये धर्म को मानने या ना मानने या धर्म परिवर्तन के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है. ये उपासना के तौर-तरीक़े की आज़ादी देता है, लेकिन साथ ही धर्म से मुक्ति की भी."

यहाँ ये समझना ज़रूरी है कि लैसिते या 'धर्म विहीन होने की सोच' को फ़्रांस के दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों तरह के नेताओं ने अपनाया है और ये अब फ़्रांस की राष्ट्रीय पहचान है.

पिउ रिसर्च के मुताबिक़, 2050 तक फ़्रांस में 'धर्म विहीन होने की सोच' पर यक़ीन रखने वाले लोगों का समूह सारे मजहबी समूहों से ज़्यादा बड़ा बन जाएगा.

फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सर्कोज़ी ने एक बार कहा था कि लैसिते के साथ कोई सौदा या समझौता नहीं किया जा सकता है.

धर्मनिरपेक्षता को और भी मज़बूत बनाने के लिए फ़्रांस ने 2004 में स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया था और छह साल बाद सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को ढँकने वाले नक़ाब को प्रतिबंधित कर दिया.

फ़्रांस में इससे भी कड़े क़दम उठाने की मांग की जा रही है और उनकी माँगें जल्द ही पूरी हो सकती हैं.

दो अक्तूबर को राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक क़ानून लाने की घोषणा की थी, जिसके तहत 'इस्लामी कट्टरपंथ' का मुक़ाबला करने के लिए फ़्रांस के लैसिते या धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को और भी मज़बूत बनाने की बात कही.

मैक्रों ने इसी भाषण में कहा कि 'इस्लाम संकट में है', जिसका मुस्लिम देशों ने विरोध किया.

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धर्मनिरपेक्षता को मज़बूत करने की मांग की वजह

फ़्रांस के मार्से शहर में मोरक्को मूल के एक युवा आईटी प्रोफ़ेशनल यूसुफ़ अल-अज़ीज़ कहते हैं, "मेरे विचार में लैसिते (धर्मनिरपेक्ष मूल्यों) के बचाव और इसे और भी दृढ़ बनाने का प्रयास हवा में नहीं किया जा रहा है. इसका मुख्य कारण फ़्रांस और यूरोप में कट्टर इस्लाम का पनपना है. मैड्रिड या लंदन में आतंकवादी हमले हों या फिर डच फ़िल्म निर्माता थियो वैन गॉग की हत्या या हाल ही में पैग़ंबर मोहम्मद के कार्टून को नापसंद करने पर हिंसा और विरोध. इन घटनाओं को फ़्रांस के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर हमले की तरह से देखा गया. जब सार्वजनिक जगहों पर हिजाब और बुर्क़े पर प्रतिबंध लगाए गए, तो फ़्रांस के मुसलमानों ने इसे इस्लाम और उनके धर्म पर अंकुश लगाने की तरह से देखा, जिससे मामला और भी उलझ गया."

युसूफ़ अल-अज़ीज़ी कहते हैं, "फ़्रांस के मुसलमानों को लगता है कि लैसिते की आड़ में उन्हें टारगेट किया जाता है. देखिए, ज़रा ग़ौर कीजिए कि फ़्रांस में ईसाइयों के बाद मुसलमान सबसे अधिक संख्या में हैं. हम फ़्रांस की आबादी के 10 प्रतिशत हिस्से से अधिक हैं. वो लगभग सभी अपने मजहब पर चलने वाले हैं. मैं लिबरल हूँ, लेकिन अपने मजहब को मानता हूँ. देश की बाक़ी 90 प्रतिशत आबादी में से बहुमत उनका है, जो किसी धर्म को नहीं मानते. तो ज़ाहिर है कि धर्म को लेकर कोई भी नया क़ानून बनेगा, तो मुस्लिम ये समझेंगे कि ये उनके ख़िलाफ़ है."

यूसुफ़ फ़्रांस में ही पैदा हुए और वहीं पले-बढ़े. उनकी पत्नी गोरी नस्ल की हैं.

वो कहते हैं, "मैं फ़्रांस की मुख्यधारा का अटूट हिस्सा हूँ, लेकिन मुझे भी समाज में अरब की तरह से देखा जाता है."

उनका तर्क है कि मुसलमानों को शांतिपूर्ण तरीक़ों से अपने धार्मिक विश्वास को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता देने से वो फ़्रांस को अपने घर की तरह, अपने वतन की तरह अधिक अपनाएँगे.

क्या फ़्रांस का मॉडल काम नहीं कर रहा है

ख़ुद फ़्रांस में आज ये चर्चा हो रही है कि लैसिते काम नहीं कर रहा है.

हाई स्कूल शिक्षिका मार्टिन ज़िबलेट के अनुसार, "अगर एक तरफ़ इस्लामी कट्टरपंथ में उछाल आया है, तो दूसरी तरफ़ मेरे समाज में (गोरी नस्ल के फ़्रांसीसी समाज में) इस्लाम विरोधी विचार बढ़ा है."

उनके अनुसार इस्लामी कट्टरपंथ को रोकने के उपाय तो किए जा रहे हैं, लेकिन इस्लामोफ़ोबिया को रोकने के लिए कोई क़ानून नहीं बनाया गया है.

यूसुफ़ इनसे सहमत हैं. वो कहते हैं कि उनके समाज में ये बात आमतौर से महसूस की जाती है कि लैसिते का सहारा लेकर राज्य उनके साथ भेदभाव करता है.

फ़्रांस के एक पूर्व मंत्री बुनुआ अपारु को आपत्ति इस बात पर है कि जिस मजहबी कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ लैसिते को आगे बढ़ाया गया है, वो कट्टरपंथ ख़ुद सेक्युलर लोगों में मौजूद है.

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उन्होंने हाल में एक इंटरव्यू में लैसिते को धर्मनिरपेक्ष अधिनायकवाद कहा था.

बुनुआ अपारु का कहना है,"सहिष्णुता (दमन नहीं) एक ऐसी नीति है, जो एक बहुसांस्कृतिक समाज के साथ वास्तव में तालमेल बिठाती है."

फ़्रांसीसी संस्कृति और समाज में लैसिते की गहरी जड़ों को देखते हुए, ये काम आसान नहीं होगा. जैसा कि राष्ट्रपति मैक्रों कहते हैं, "लैसिते गणतंत्र का एक मूलभूत सिद्धांत है."

दक्षिणपंथी नेशनल फ़्रंट पार्टी, जो मरीन ले पेन के नेतृत्व में हाल के चुनावों में फली-फूली है, बड़े पैमाने पर ख़ुद को लैसिते के रक्षक के रूप में पेश करके सफल हुई है.

इसी देश के कुछ सियासी विशेषज्ञ इस्लाम पर राष्ट्रपति के बयान को एक सियासी बयान मानते हैं, क्योंकि राष्ट्रपति का चुनाव डेढ़ साल में होने वाला है और मरीन ले पेन की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है.

मरीन ले पेन के आलोचक मानते हैं कि उनका लैसिते 'इस्लामोफ़ोबिया के विरुद्ध केवल एक मखौटा है', लेकिन उनकी बढ़ती लोकप्रियता सत्ता में आने का रास्ता खोल सकती है.

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English summary
Why is the secularism of France considered against Islam?
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