
शुक्र के लिए कब मिशन होगा लांच, धरती के ‘जुड़वा’ ग्रह पर कैसे पहुंचेगा भारत? ISRO ने बताया
नई दिल्ली, मई 07: विश्व के तीन देश काफी तेजी से अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं और ये देश हैं अमेरिका, चीन और रूस। लेकिन, सीमित संसाधनों और बजट की कमी के बाद भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, यानि इसरो विश्व की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों को चुनौती देने में लगा हुआ है और काफी तेजी से अपने अंतरिक्ष अनुसंधान को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और इसी कड़ी में अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी शुक्र ग्रह के लिए अपने मिशन को अंजाम देने वाला है।
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शुक्र ग्रह के लिए भारत का मिशन
भारतीय अंतरिक्ष और अनुसंधान संगठन (इसरो) चंद्रमा और मंगल पर सफलतापूर्वक मिशन शुरू करने के बाद शुक्र पर विजय प्राप्त करना चाहता है। इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा है कि अंतरिक्ष एजेंसी के पास बेहद कम समय में यान बनाने और लॉन्च करने दोनों की क्षमता है। हालांकि, यही मिशन की विशिष्टता है, जो इसे परिभाषित करेगी। सबसे खास बात ये है कि, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने शुक्र ग्रह के लिए दो ‘प्रोब' मिशन घोषणा की हुई है और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी तीसरा ऐसा संगठन है, जो शुक्र ग्रह के लिए अपने मिशन पर तेजी से काम कर रही है

विश्व का तीसरा मिशन
नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा एक अंतरिक्ष यान और दो ‘प्रोब' मिशन की घोषणा के बाद भारत का ऑर्बिटर शुक्र की ‘नरक' दुनिया के लिए घोषित तीसरा मिशन है। भारतीय मिशन, पृथ्वी के रहस्यमय जुड़वां शुक्र ग्रह की जांच करने के अलावा उसकी विनाशकारी अतीत को समझने के लिए सुराग की तलाश करेगी, जिसको लेकर वैज्ञानिकों का मानना है, कि शुक्र ग्रह पर भी एक वक्त पृथ्वी ग्रह की तरह ही पानी का विशाल भंडार था।

इसरो ने क्या कहा?
इसरो ने उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए एक दिवसीय बैठक आयोजित की, जिन्हें आने वाले वर्षों में मिशन शुरू होने पर खोजा जा सकता है। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि, शुक्र मिशन की कल्पना की गई है और परियोजना की रिपोर्ट बनाई गई है। इसके साथ ही इस मिशन में कितना पैसा खर्च होगा, इसकी भी गणना की गई है। इसके साथ ही इस मिशन के दौरान सारे प्रभावों को जानने के लिए लाइव टीवी टेक्नोलॉजी की भी व्यवस्था की गई है।

वीनस ऑर्बिटर क्या करेगा?
दिन भर चलने वाले सम्मेलन के दौरान, इसरो और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस सहित भारत के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने प्रस्तावित मिशन के उद्देश्यों पर चर्चा की। इस मिशन के दौरान, नियोजित प्रयोगों के बीच, इसरो सक्रिय ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट और लावा प्रवाह सहित सतह प्रक्रियाओं और उथले उप-सतह स्ट्रैटिग्राफी की जांच करेगा। इसके साथ ही, इस मिशन के दौरान शुक्र ग्रह की वातावरण की संरचना, संरचना और गतिशीलता का अध्ययन करेगा, और वीनसियन आयनोस्फीयर के साथ सौर पवन संपर्क की भी जांच करेगा।

भारत के लिए गर्व का मिशन
वैज्ञानिकों ने मिशन वीनस को लेकर जो प्रजेंटेशन दिया है, उसके मुताबिक, इसरो का वीनस ऑर्बिटर, शुक्र ग्रह की सतह की प्रक्रियाओं की जांच करेगा, क्योंकि यह ग्रह के भूगर्भिक और पुनरुत्थान के इतिहास को समझने की कोशिश करता है। वीनस ऑर्बिटर, किसी ग्रह की प्रभाव प्रक्रियाओं को समझता है और सतह पर दबे हुए प्रभाव क्रेटर का पता लगाता है। शुक्र ग्रह की जांच का उद्देश्य, उसकी वातावरण की संरचना, संरचना और गतिशीलता का अध्ययन करने के साथ-साथ सतह की उसके वातावरण की संरचना का भी निर्माण करना और उसके बारे में ज्यादा जानकारियां जुटाना है।

शुक्र ग्रह के आयनमंडल की जांच
रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो का अंतरिक्ष यान, शुक्र ग्रह के आयनमंडल के साथ सौर हवा की स्थिति की भी जांच करेगा, जो ग्रह के वातावरण में प्लाज्मा तरंगों और उसकी गतिशीलता पर प्रकाश डालेगा। इसरो के अंतरिक्ष यान में शुक्र की सतह की जांच करने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार होगा, जो एक प्रमुख उपकरण है। ये उपकरण इसलिए जरूरी है, क्योंकि शुक्र ग्रह जो घने बादलों से ढका होता है जिससे ग्रह की सतह को देखना असंभव हो जाता है। इसरो के अध्यक्ष ने कहा है कि, अंतरिक्ष एजेंसी यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देगी, कि वह शुक्र ग्रह के चारों ओर अद्वितीय रिसर्च कर रही है। उन्होंने कहा कि, "लक्ष्य यह समीक्षा करना है, कि अद्वितीय एडिशनल नॉलेज ऑब्जर्वेशन किया जा सके और देखें, कि हम जो कुछ भी पहले ही कर चुके हैं, उसे दोहरा नहीं रहे हैं। उनमें से कुछ को दोहराना कोई अपराध नहीं है, लेकिन अगर हम विशिष्टता लाते हैं, तो इसका विश्व स्तर पर प्रभाव पड़ेगा'।

इसरो कब लॉन्च करेगा वीनस मिशन?
अंतरिक्ष एजेंसी अगले वर्ष के लिए नियोजित कक्षीय युद्धाभ्यास के साथ प्रक्षेपण के लिए दिसंबर 2024 पर नजर गड़ाए हुए है, जब पृथ्वी और शुक्र को इस तरह से संरेखित होगा, कि अंतरिक्ष यान को न्यूनतम मात्रा में ईंधन का उपयोग करके पड़ोसी ग्रह की कक्षा में भेजा जा सके। इसरो इस मौके को खोना नहीं चाहता है, क्योंकि अगर ये मौका हाथ से निकल गया, तो फिर अगला मौका साल 2031 में ही आएगा।
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