अमेरिकी मिलिट्री ने अपने नाम के साथ जोड़ा भारत का नाम, यूएस-इंडो पैसिफिक कमांड अब नया नाम
अमेरिकी सेना ने बुधवार को अपनी पैसेफिक कमांड का नाम बदला है और अब इसके नाम में भारत का नाम भी जुड़ गया है। अमेरिकी मिलिट्री की पैसेफिक कमांड का नया नाम है यूएस-इंडो पैसिफिक कमांड। अमेरिकी अधिकारियों की मानें तो यह कदम पेंटागन के लिए भारत की बढ़ती अहमियत की तरफ इशारा करता है।
पर्ल हार्बर। अमेरिकी सेना ने बुधवार को अपनी पैसेफिक कमांड का नाम बदला है और अब इसके नाम में भारत का नाम भी जुड़ गया है। अमेरिकी मिलिट्री की पैसेफिक कमांड का नया नाम है यूएस-इंडो पैसिफिक कमांड। अमेरिकी अधिकारियों की मानें तो यह कदम पेंटागन के लिए भारत की बढ़ती अहमियत की तरफ इशारा करता है। यूएस पैसेफिक कमांड, अमेरिकी सेना की सबसे महत्वपूर्ण कमान में से है और इस पर प्रशांत क्षेत्र में होने वाली अमेरिकी सेना की सभी गतिविधियों की जिम्मेदारी है। इस क्षेत्र में अमेरिकी सेना के करीब 375,000 असैन्य और मिलिट्री पर्सनल तैनात हैं। अब इसी कमांड में भारत की भी हिस्सेदारी है। यह भी पढ़ें-इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ें उपचुनाव परिणाम के ताजा तरीन अपडेट्स
लगातार बढ़ता भारत का संपर्क
अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मटीस ने कहा, 'अमेरिका की पैसेफिक और हिंद महासागर में मौजूद मित्रों और सहयोगियों के साथ हमारे क्षेत्रीय स्थिरता कायम रखने में काफी नाजुक हैं। भारत और प्रशांस महासागरों के बीच बढ़ते संपर्क को देखते हुए आज हम कमांड का नाम यूएस-इंडो पैसेफिक कमांड कर रहे हैं।' मटीस नाम बदलने वाले कार्यक्रम में शामिल हुए थे। एडमिरल फिलीप डेविडसन को कमांड का चार्ज दिया गया। इससे पहले इस कमांड की जिम्मेदारी एडमिरल हैरी हैरिस पर थी जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया के लिए राजदूत के पद पर नामांकित किया है।
भारत की बढ़ती अहमियत
कमांड का नाम बदलने का मतलब यह नहीं है कि इस क्षेत्र में अतिरिक्त संसाधन भेजे जाएंगे बल्कि इसका मतलब अमेरिका की ओर से भारत की बढ़ती सैन्य अहमियत को पहचानना है। साल 2016 में अमेरिका और भारत ने एक समझौता किया था जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे के जमीन, एयरस्पेस और नेवेल बेसेज का प्रयोग रिपेयर या फिर रि-सप्लाई के लिए कर सकते हैं। यह एक ऐसा कदम था जिसके तहत रक्षा संबंधों को एक कदम और आगे बढ़ाया गया था क्योंकि चीन लगातार इस क्षेत्र में आक्रामक हो रहा था।
भारत है अमेरिका का बड़ा मिलिट्री मार्केट
अमेरिका, भारत को एक बड़े मिलिट्री मार्केट के तौर पर देखता है। अमेरिका, भारत के लिए नंबर दो का हथियार सप्लायर है और पिछले एक दशक में दोनों देशों के बीच करीब 15 बिलियन डॉलर की डील हो चुकी हैं। मटीस भारत के को और ज्यादा सहूलियतें देने के पक्ष में हैं। पिछले वर्ष ट्रंप ने एक नए कानून पर साइन किया था जिसके तहत ऐसा कोई भी देश जो रूस के साथ डिफेंस और इंटेलीजेंस सेक्टर्स में व्यापार कर रहा है, उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
क्या हैं नाम बदलने के मायने
एडमिरल फिलिप डेविडसन ने पिछले माह एक बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि भारत और अमेरिका के रिश्ते 21वीं सदी में एतिहासिक मौका हैं। उन्होंने कहा था कि वह इसे और सख्ती के साथ आगे बढ़ाना चाहते हैं। वहीं एक्सपर्ट कहते हैं कि नाम बदलने से कोई खास फर्क तब तक नहीं पड़ेगा जब तक कि विस्तार से कोई रणनीति नहीं बनाई जाती। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में ईस्ट एशिया के लिए उप-रक्षा मंत्री रहे अब्राहम डेनमार्क के मुताबिक पैसेफिक कमांड का नाम बदला एक प्रतीकात्मक काम है। इसका बहुत कम असर होगा अगर अमेरिका कोई खास पहल नहीं करता और बड़े स्तर पर कोर्ठ निवेश नहीं करता है।