पांच आसान सवालों में समझिए क्या है रूस-यूक्रेन संकट, अगर युद्ध हुआ तो दुनिया पर क्या होगा असर?
पिछले कई सदियों से रूसा साम्राज्य का हिस्सा रहा यूक्रेन सोवियत संघ का भी हिस्सा रहा और साल 1991 में जब सोवियत संघ का विखंडन हो गया, उस वक्त पहली बार यूक्रेन एक स्वतंत्र वजूद में आया था।
नई दिल्ली, जनवरी 26: रूस द्वारा संभावित हमले को देखते हुए यूक्रेन की सुरक्षा में नाटो सहयोगियों ने कीव (यूक्रेन की राजधानी) की सुरक्षा बढ़ा दी है। नाटो गठबंधन का कहना है कि, रूस की आक्रामता से यूक्रेन को बचाने के लिए सैनिकों को भेजा गया है। जबकि, रूस का कहना है कि, वो अपने देश की राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा कर रहा है और रूस की तरफ से नाटो गठबंधन को क्षेत्रीय शांति को खत्म करने का आरोप लगाया गया है। ऐसे में क्या है रूस-यूक्रेन संकट और अगर वास्तव में रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई हो जाती है, तो इसका पूरी दुनिया पर क्या असर होगा, आईये पांच आसान सवालों में समझते हैं।
रूस-यूक्रेन में क्यों है विवाद?
पिछले कई सदियों से रूसा साम्राज्य का हिस्सा रहा यूक्रेन सोवियत संघ का भी हिस्सा रहा और साल 1991 में जब सोवियत संघ का विखंडन हो गया, उस वक्त पहली बार यूक्रेन एक स्वतंत्र वजूद में आया। सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन ने तेजी से रूस के साथ अपने संपर्कों को खत्म करना शुरू कर दिया है और उसने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के साथ तेजी से मजबूत संबंध स्थापित करने शुरू कर दिए। लेकिन, यूक्रेन के लिए ऐसा करना आसान नहीं था। क्योंकि, अगर यूक्रेन की सियासत का एक हिस्सा पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना चाहता था, तो एक हिस्सा रूस के साथ नाता तोड़ने को तैयार नहीं था। ये झगड़ा लगातार बढ़ता गया और साल 2014 में रूस की तरफ झुकाव रखने वाले राष्ट्रपति विक्टर यनुकोविच ने यूरोपीय संघ के साथ एक समझौते को अस्वीकार कर दिया, जिसका बड़े पैमाने पर यूक्रेन में विरोध किया गया और असर ये हुआ, कि रूस की तरफ रूझान रखने वाले राष्ट्रपति विक्टर यनुकोविच को सत्ता से हटा दिया गया। रूस की तरफ से आरोप लगाया गया, कि यूक्रेन की राजनीति में उथल-पुथल पश्चिमी देशों की तरफ से मचाया गया है और फिर रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया पर हमला साल 2014 में हमला कर दिया और उसपर कब्जा जमा लिया।
रूस के पक्ष में यूक्रेन के 'अलगाववादी'
रूस ने जब क्रीमिया पर हमला किया, तो उसे अलगाववादियों से पूरा साथ मिला है और इस युद्ध में करीब 14 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। रूस ने अलगाववादियों को पूरा समर्थन दिया, जिससे पूर्वी यूक्रेन में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बन गई और भीषण रक्तपात हुआ। यूक्रेन और पश्चिम ने रूस पर विद्रोहियों को समर्थन देने के लिए अपने सैनिक और हथियार भेजने का आरोप लगाया। मॉस्को ने इससे इनकार करते हुए कहा कि, अलगाववादियों में शामिल होने वाले लोग रूसी स्वयंसेवक थे। कीव के अनुसार, यूक्रेन के पूर्वी औद्योगिक क्षेत्र डोनबास को तबाह करने वाली लड़ाई में 14,000 से अधिक लोग मारे गए। दूसरी तरफ अमेरिका और नाटो गठबंधन ने यूक्रेन के सैनिकों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया, जिसका रूस की तरफ से कड़ा विरोध किया गया और रूस की तरफ से कहा गया कि, इस ट्रेनिंग की वजह से यूक्रेन के सैनिक अलगाववादियों के खिलाफ सशस्त्र हिंसा कर सकते हैं। इसके साथ ही रूसी राष्ट्रपति ने नाटो में शामिल होने की यूक्रेन की कोशिश को 'रेड लाइन' कहा है और रूस ने किसी भी तरह से ट्रेनिंग सेंटर का भारी विरोध किया है।
यूक्रेन विवाद में रूस क्या चाहता है?
रूस क्या चाहता है, इससे महत्वपूर्ण सवाल ये है, कि रूस क्या नहीं चाहता है। रूस यूक्रेन को नाटो में शामिल होने देना नहीं चाहता है और पिछले दिसंबर में जब अमेरिका और रूस के बीच बातचीत की गई थी, तो रूस ने साफ तौर पर कहा था, कि रूस की सीमा के पास वो किसी भी नाटो युद्धाभ्यास के खिलाफ है। जिसका अभी भी नाटो की तरफ से जवाब नहीं दिया गया है। लेकिन, जब रूस की तरफ से कई बार अल्टीमेटम जारी किए गये, तो नाटो की तरफ से सैन्य अभ्यास बंद करने से मना कर दिया गया। इसके साथ ही रूस चाहता है, कि पूर्वी यूरोप से भी नाटो गठबंधन की सेना पीछे हटे, लेकिन नाटो ने ऐसा करने से भी इनकार कर दिया है। इसके साथ ही रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिका से कहा था, कि 'रूस को इस बात की गारंटी चाहिए, कि नाटो की सेना पूर्वी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ेगी और जिन हथियारों को नाटो लेकर आई है, उसे पूर्वी यूरोप से बाहर लिया जाए'। रूसी राष्ट्रपति ने साफ कहा था, कि रूसी सीमा पर आकर किसी भी सेना को उसे धमकाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। रूसी राष्ट्रपति ने साफ तौर पर कहा कि, उन्हें सिर्फ मौखिक आश्वासन नहीं, बल्कि कानूनी गारंटी भी चाहिए।
क्या नाटो में शामिल होगा यूक्रेन?
यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन यूक्रेन नाटो गंठबंधन में शामिल होने के लिए बेकरार है। जिसको लेकर नाटो का कहना है, कि अगर यूक्रेन को नाटो में शामिल होना है, तो उसे देश से भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म करना होगा। हालांकि, पिछले साल दिसंबर में नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा, साल 2008 में नाटो द्वारा जारी किए गये प्रतिबद्धता को खारिज कर दिया था। यानि, यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के पीछे एक बड़ी समस्या खत्म कर दी गई और स्टोल्टेनबर्ग ने ये भी कहा, कि जब इस मुद्दे पर विचार करने का समय आता है, तो रूस यूक्रेन के बाहर होने को लेकर वीटो नहीं कर सकता है। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि, नाटो सहयोगी, खास तौर पर अमेरिका के सैन्य प्रमुख नहीं चाहते हैं कि, रूस के सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना का विस्तार किया जाए और यूक्रेन को नाटो में शामिल कर मॉस्को के साथ अमेरिका के संबंध को और भी खराब किया जाए, लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने नाटो में यूक्रेन की सदस्यता के लिए समर्थन कर दिया है, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अभी तक साफ नहीं कर पाए हैं, कि नाटो में यूक्रेन के शामिल होने को लेकर उनके क्या विचार हैं।
क्या रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध होगा?
पश्चिमी देशों का रूस पर आरोप है कि, रूस ने यूक्रेन की सीमा पर एक लाख से ज्यादा सैनिकों की तैनाती कर रखी है और रूस यूक्रेन पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन रूस से निपटने के तरीके पर "कुल एकमत" होने का दावा करते हैं। वहीं, अमेरिका ने 8500 सैनिकों को स्टैंडबाय पर रखा है, जबकि नाटो ने कहा कि वह इस क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए जहाज और जेट भेज रहा था। वहीं, अमेरिका ने पिछले महीने 80 टन और इस महीने 90 टन हथियार और गोले बारूद यूक्रेन भेजे हैं। जबकि, राष्ट्रपति पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि इन कार्रवाइयों ने पहले से ही तनावपूर्ण माहौल को और बढ़ा दिया है। उन्होंने अमेरिका पर तनाव को और भी ज्यादा बढ़ाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि, "हम इन अमेरिकी कार्रवाइयों को बड़ी चिंता के साथ देख रहे हैं।" वहीं, रूस ने इस बात से इनकार किया है कि, यूक्रेन पर आक्रमण करने की उसकी कोई योजना है और उसने पश्चिम पर स्थिति को और खराब करने का आरोप लगाया है। वहीं, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि, नाटो को रोकने के लिए इस बात बात की ज्यादा संभावना है, कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण कर दे, क्योंकि रूस शायद ये समझ रहा है, कि नाटो और अमेरिका से यूक्रेन को उतनी मदद नहीं मिल पाएगी।
अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो क्या होगा?
पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को अपना समर्थन दिया है, लेकिन कुछ प्रतिक्रियाएं दूसरों की तुलना में कठिन रही हैं। अमेरिका और ब्रिटेन ने हथियारों की आपूर्ति की है, जबकि जर्मनी अगले महीने एक फील्ड चिकित्सा सुविधा भेजने की योजना बना रहा है, लेकिन जर्मनी की तरफ से कहा गया है कि, वो सैनिकों को युद्ध करने के लिए नहीं भेजेगा। वहीं, पश्चिमी देश रूस के खिलाफ युद्ध के मैदान में नहीं जाकर रूस के खिलाफ कई सख्त प्रतिबंध लगा सकते हैं। सार्वजनिक रूप से, अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों ने रूस को धमकी दी है, कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है, तो उसे ऐसा आर्थिक चोट दिया जाएगा, जो रूस के लिए काफी भारी होगा। लेकिन, यूरोप खुद फंसा हुआ है और कई यूरोपीय देशों में रूस से ही गैस की सप्लाई होती है और रूस ने गैस की सप्लाई थोड़ी कम की, तो ब्रिटेन में हाहाकार मच गया है। ऐसे में क्या वास्तव में यूरोपीय देश रूस को 'सजा' दे पाएंगे, कठिन सवाल है। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि, रूस को ''स्विफ्ट वित्तीय प्रणाली'' से बाहर करना, जो दुनिया भर में एक बैंक से दूसरे बैंक में पैसा ट्रांसफर करता है, सबसे कठिन वित्तीय कदमों में से एक होगा, जो रूस की अर्थव्यवस्था को तुरंत और लंबी अवधि में नुकसान पहुंचा सकता है।
रूस पर हो सकता है गंभीर असर
यह कदम रूस को अधिकांश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन से काट सकता है, जिसमें तेल और गैस उत्पादन से अंतर्राष्ट्रीय लाभ भी शामिल है, जो देश के राजस्व का 40 प्रतिशत से ज्यादा है। अगर वह यूक्रेन पर हमला करता है, तो अमेरिका के पास पुतिन के खिलाफ सबसे शक्तिशाली वित्तीय हथियारों में से एक है, रूस को अमेरिकी डॉलर तक पहुंच से रोक देना। दुनिया भर में वित्तीय लेन-देन में अभी भी डॉलर का दबदबा है, जिसमें प्रतिदिन खरबों डॉलर का ट्रांजेक्शन होता है। अंत में, अमेरिका निर्यात नियंत्रणों को लागू करने पर विचार कर रहा है, संभावित रूप से रूस को हाई टेक्नोलॉजी से दूर करना इसका मकसद है, जो अन्य चीजों के अलावा, युद्धक विमानों और यात्री जेट को उड़ान भरने और स्मार्टफोन को शक्ति प्रदान करने में मदद करता है। लेकिन, रूस ने पिछले दिनों चीन के साथ अपने संबंध काफी मजबूत कर लिए हैं और चीन-अमेरिका के भी संबंध जगजाहिर हैं, लिहाजा अमेरिका रूस को किस हद तक आर्थिक चोट दे सकता है और क्या अमेरिका में रूस को आर्थिक चोट देने की ताकत बची भी है, ये भी बड़े सवाल हैं।