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बच्चों के खिलौनों ने माता-पिता की सोच की पोल खोल दी

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नई दिल्ली, 15 अक्टूबर। माता-पिता का खेलने के लिए लड़के को फुटबॉल और लड़की को गुड़िया देना पूर्वाग्रही सोच का नतीजा है. डेनमार्क की खिलौना निर्माता कंपनी लेगो ने ऐसे ही पूर्वाग्रह पर एक वैश्विक सर्वे कराया है जिसके नतीजे देखकर कंपनी ने कहा है कि वह अपने उत्पादों से लैंगिक रूढ़िवादिता को खत्म करने के लिए काम करेगी. दरअसल सर्वे में पाया गया था कि माता-पिता अपने बेटों के लिए तो लेगो के खिलौने चाहते हैं लेकिन सिर्फ एक चौथाई माता-पिता ही अपनी बेटियों के लिए इन्हें चाहते हैं.

Provided by Deutsche Welle

इस सर्वे के पहले हिस्से में 6 से 14 साल के बच्चों के माता-पिता को रखा गया, जिसके बाद इसे उनके बच्चों को सौंप दिया गया. कंपनी ने यह सर्वे 7 देशों में किया. ये देश अमेरिका, चीन, जापान, पोलैंड, रूस, चेक रिपब्लिक और ब्रिटेन हैं.

सर्वे के समापन में लेगो ने कहा है, "लड़कियां दुनिया के लिए तैयार हैं लेकिन समाज खेलों के जरिए उनकी मदद करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है. 76 फीसदी माता-पिता अपने बेटों के लिए लेगो के खिलौनों चाहते हैं, जबकि सिर्फ 24 फीसदी माता-पिता ही अपनी बेटियों के लिए इन्हें चाहते हैं."

सर्वे में यह बातें भी सामने आईं-

- क्रिएटिव तरीके से खेलने के मामले में लड़कियों को, लड़कों के मुकाबले कम लैंगिक पूर्वाग्रह का अहसास होता है. करीब 74 फीसदी लड़कों ने माना कि कुछ खास गतिविधियां सिर्फ लड़कियों के लिए होती हैं और कुछ सिर्फ लड़कों के लिए जबकि ऐसा मानने वाली लड़कियां 64 फीसदी ही थीं.

- अक्सर उनके माता-पिता और समाज की ओर से सुझाए गए खेलों से अलग क्रिएटिव खेलों में शामिल होने के प्रति लड़कियां ज्यादा खुली सोच रखती हैं. 82 फीसदी लड़कियों ने माना कि लड़कियों के लिए फुटबॉल खेलना और लड़कों के लिए बैले करना ठीक है जबकि सिर्फ 71 फीसदी लड़के ही ऐसा मानते थे.

- लड़के उस दौरान भी पूर्वाग्रहों का सामना करते हैं, जब बात उन खिलौनों की हो, जिन्हें पारंपरिक तौर पर लड़कियों से जोड़ा जाता रहा है. सर्वे में पाया गया कि 71 फीसदी लड़के कहते हैं कि उन्हें इस बात से डर लगता है कि अगर वे ऐसे खिलौनों से खेलेंगे, जिन्हें आमतौर पर लड़कियों से जोड़ा जाता रहा है तो उनका मजाक बनाया जाएगा लेकिन सिर्फ 42 फीसदी लड़कियां ही ऐसा महसूस करती हैं.

- सर्वे में यह भी पाया गया कि माता-पिता लड़कों के मुकाबले लड़कियों को डांस और कपड़े पहनने जैसी गतिविधियों के लिए पांच गुना ज्यादा प्रोत्साहित करते हैं जबकि खाना बनाने जैसी गतिविधियों के लिए यह प्रोत्साहन तीन गुना ज्यादा होता है. दूसरी ओर, लड़कियों के मुकाबले लड़कों को खेल-कूद के लिए चार गुना ज्यादा और कोडिंग वाले खिलौनों से खेलने के लिए दोगुना ज्यादा प्रोत्साहित किया जाता है.

हर खिलौने को खेले हर बच्चा

लेगो की चीफ प्रोडक्ट एंड मार्केटिंग ऑफिसर जूलिया गोल्डिन कहती हैं, "हमें कभी ऐसे कयास नहीं लगाने चाहिए कि कोई चीज केवल लड़कों के लिए है और कोई सिर्फ लड़कियों के लिए. हमें लगता है कि ऐसे प्रोडक्ट बनाते रहने चाहिए जो बच्चों को उत्साहित करते हैं, जो उन्हें खेलने में अच्छे लगते हैं और जिन्हें जोड़कर बनाना उन्हें वाकई पसंद है. लेकिन हमें उन्हें ही इन खिलौनों को तय करने की छूट देनी होगी."

हालांकि अभी भी लेगो ने यह जानकारी स्पष्ट तौर पर नहीं दी है कि वह खिलौनों में कौन से खास बदलाव करने वाली है.

ब्रिटेन में खिलौनों को समावेशी बनाने को लेकर चलाए जा रहे अभियान 'लेट टॉयज बी टॉयज' का कहना है कि कंपनियों को अपने विज्ञापनों की बारीकी पर भी ध्यान देना चाहिए. 'लेट टॉयज बी टॉयज' की ओलिविया डिकिन्सन कहती हैं, "बहुत कुछ अब ऑनलाइन भी हो रहा है, वे (बच्चे) कई वीडियो भी देख रहे हैं तो हम यह चाहेंगे कि बच्चे ऐसे विज्ञापन देखें, जिसमें हर तरह के बच्चे हर तरह के खिलौनों के साथ खेल रहे हों."

जानकारों को आशा है कि बच्चों के खिलौने अब ज्यादा दिनों तक पुराने हो चुके लैंगिक पूर्वाग्रहों के आधार पर नहीं तय किए जाते रहेंगे.

Source: DW

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English summary
toys tell what parents think
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