ताइवान को आजादी से रोकने के लिए उस पर हमला करेगा चीन, टॉप चीनी जनरल की खुली धमकी
बीजिंग।
चीन
ने
कहा
है
कि
अगर
ताइवान
ने
आजादी
चाही
तो
उस
पर
हमले
का
विकल्प
खुला
हुआ
है।
शुक्रवार
को
देश
के
एक
टॉप
जनरल
की
यह
टिप्पणी
ऐसे
समय
में
आई
है
जब
चीन
और
ताइवान
के
बीच
पहले
से
ही
तनाव
मौजूद
है।
चीन,
ताइवान
को
अपना
हिस्सा
मानता
है
और
राष्ट्रपति
शी
जिनपिंग
पहले
ही
मिलिट्री
एक्शन
की
बात
कह
चुके
हैं।
20
मई
को
ताइवान
की
राष्ट्रपति
साइ
इंग
वेन
ने
अपना
दूसरा
कार्यकाल
शुरू
किया
है
और
कोरोना
वायरस
के
दौरान
वह
हर
पल
चीन
का
खुलकर
विरोध
करती
आई
हैं।
यह भी पढ़ें-ताइवान पर मोदी सरकार के इस फैसले से चीन को लगी मिर्ची
जनरल बोले मिलिट्री एक्शन संभव
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक बीजिंग के ग्रेट हाल ऑफ पीपुल में एंटी-सक्सेशन लॉ के 15 साल पूरे होने के मौके पर चीफ ऑफ ज्वॉइन्ट स्टाफ डिपार्टमेंट और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के सदस्य जनरल ली झूचेंग ने कहा कि सेना के प्रयोग के सभी विकल्प खुले हुए हैं और चीन, ताइवान पर हमला करेगा। साल 2005 में आए इस कानून के बाद ही चीन को ताइवान के खिलाफ कानूनी आधार पर मिलिट्री एक्शन लेने की मंजूरी मिल गई थी। कानून के मुताबिक अगर ताइवान, चीन से बाहर निकलता है या फिर ऐसा करता हुए प्रतीत होता है तो फिर उस पर मिलिट्री एक्शन संभव है।
हमेशा दोहराई मिलिट्री एक्शन की बात
ली ने कहा, 'अगर शांतिपूर्ण तरीके से समाधान की संभावना खत्म हो जाती है तो फिर पीपुल्स आर्म्ड फोर्सेज पूरे देश के साथ जिसमें ताइवान के लोग भी शामिल होंगे, किसी भी अलगाववादी नेता की योजना को सफल होने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएगी।' उन्होंने आगे कहा, 'हम यह वादा नहीं करते हैं कि सेना का प्रयोग नहीं होगा और हर जरूरी उपाय का विकल्प सुरक्षित रखते हैं ताकि ताइवान स्ट्रेट्स पर स्थिति नियंत्रण में रहे।' चीन हमेशा से ताइवान पर मिलिट्री एक्शन की बात कहता आया है लेकिन यह पहला मौका है जब इसके किसी टॉप जनरल की तरफ से ऐसी टिप्पणी की गई है।
क्यों है चीन और ताइवान के बीच विवाद
चीन और ताइवान के बीच विवाद, चीन के सिविल वॉर के समय से ही चल रहा है। वर्ष 1927 में हुए इस सिविल वॉर की वजह से सेनाओं ने चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और यह गठबंधन नेशनलिस्ट क्यूमिनटैंग आर्मी यानी केएमटी के विरोध में हुआ था।वर्ष 1949 में में जब चीन का सिविल वॉर खत्म हुआ तक यह पॉलिसी अस्तित्व में आई। हारे हुए देश के लोगों को क्यूओमिनटैंग कहा गया और ये ताइवान चले गए। यहां पर इन्होंने अपनी सरकार बना ली जबकि जीती हुई कम्यूनिस्ट पार्टी चीन पर शासन कर रही थी। दोनों ही पक्षों का कहना था कि वे चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सन् 1949 से ही ताइवान को मिलती आ रही धमकी
सन् 1949 से ही चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी ने ताइवान को धमकी दी हुई है कि अगर उन्होंने औपचारिक तौर पर खुद को एक आजाद देश घोषित किया तो फिर चीन को अपनी सेनाओं का प्रयोग करना पड़ेगा।वन चाइना पॉलिसी मानने वाले हर देश चाहे वह भारत हो या फिर अमेरिका, उसे ताइवान को चीन का हिस्सा मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस पॉलिसी के तहत एक चीनी सरकार को ही स्वामी माना जाता है। चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसका भरोसा है कि एक दिन ताइवान भी चीन का हिस्सा होगा।