बढ़ते शहर और कब्र के लिए कम पड़ती ज़मीन, अपनों के शवों को न दफनाएं तो क्या करें?
घनी आबादी वाले शहरों में शव दफनाने के लिए ज़मीन कम पड़ने लगी है. कहीं कब्र किराए पर मिल रही है तो कहीं नए शव दफनाने के लिए पुरानी कब्रों को खोदा जा रहा है. क्या परंपराओं और मान्यताओं के बीच शवों को नष्ट करने का कोई तरीका खोज पाएंगे हम?
साल 2013 में सिंगापुर में आठ लेन की एक सड़क बनाने के लिए बुकित ब्राउन कब्रिस्तान के 3,400 से अधिक कब्रों को खोदा गया.
इसके बाद साल 2017 में एक सैन्य हवाई अड्डे के विस्तार के लिए सिंगापुर के चोआ चू कांग कब्रिस्तान की क़रीब की 45,500 कब्रें खोद कर उनमें दफन किए गए शवों के अवशेषों को बाहर निकाला गया.
ग्रीस के एथेंस में कब्र तीन साल के लिए किराए पर मिलती है, जिसके बाद उसमें से अवशेषों को निकाल पर या तो ख़त्म कर दिया जाता है या फिर कलश में भरकर ख़ास जगह पर रख दिया जाता है. इसका खर्च परिजनों को उठाना होता है.
सिंगापुर के अलावा लंदन, न्यूयॉर्क, यरूशलम, इस्तांबुल, सिडनी और वैंकुवर जैसे शहरों में बढ़ती आबादी के कारण अंतिम संस्कार के लिए ज़मीन कम पड़ रही है.
कई समुदायों में ये मान्यता है कि पारंपरिक तरीके से दफ़न करने पर ही मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है. और दफनाने के लिए ज़मीन की कमी मानव जाति के सामने परंपरा, धर्मिक मान्यता और शव संस्कार से जुड़े अहम प्रश्न खड़े करता है.
दुनिया जहान में आज हम इसी विषय पर पड़ताल कर रहे हैं कि भविष्य में शवों का हम क्या कर सकते हैं और क्या शव संस्कार से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को हम छोड़ सकेंगे?
परंपरा का हिस्सा है शव संस्कार
इतिहासकार थॉमस लैकर ने हाल में 'शवों के साथ क्या किया जाए' विषय पर एक किताब लिखी है. ये किताब कुछ हद तक एक प्राचीन ग्रीक विचारक डायोजीनिस से प्रेरित है जिन्होंने सवाल किया था कि मरने के बाद लाश की फिक्र क्यों.
एक बार डायोजीनिस के शिष्यों ने उनसे पूछा कि मरने के बाद उनके शव का वो क्या करें. उन्होंने कहा, "मेरी लाश को शहर की दीवार पर रख देना." शिष्यों ने कहा, "लाश को चिड़िया और जानवर नोचकर खा जाएंगे."
डायोजीनिस ने कहा, "मेरे हाथों में लाठी दे देना, मैं उन्हें भगा दूंगा." शिष्य बोले, "पर आप तो मर चुके होंगे." डायोजीनिस ने जवाब दिया, "मरने के बाद मेरी लाश के साथ क्या होता है उसकी मुझे चिंता क्यों होनी चाहिए?"
लेकिन डायोजीनिस के शिष्यों ने उनके शव के साथ ऐसा नहीं किया. शायद ऐसा करना उन्हें अमानवीय लगा होगा. लेकिन सवाल ये है कि जब शरीर में आत्मा है ही नहीं तो शव संस्कार क्यों ज़रूरी है?
थॉमस लैकर कहते हैं, "ऐसा इसलिए क्योंकि सदियों से उन्हें जो संस्कृति और मान्यताएं मिली है, ये उसको नकारने जैसा होता. मरने वाले के शव संस्कार को कई समुदायों में उसकी नश्वरता का प्रतीक माना जाता है."
दरअसल, इंसान की नस्ल को दूसरी प्रजातियों से जो बात अलग करती है, वो है मौत के बाद भी मरने वाले को खयाल रखना. लेकिन क्या हमें पता है कि इतिहास में सबसे पहले इंसान ने कब पारंपरिक तौर पर शव संस्कार करना शुरू किया.
थॉमस लैकर कहते हैं, "जब हमें पता चलता है कि हमसे पहले किसी समुदाय में अपने मृतकों को दफनाने की परपंरा थी तो हम दावा करते हैं कि हम उनकी तरह हैं. पारपंरिक तौर पर सबसे पहले शवों को कब दफनाया गया इस बारे में हमें पता नहीं, लेकिन सदियों से इंसान दावा करता रहा है कि उसके पूर्वज ऐसा करते थे."
अपने परिजनों की मौत के बाद इंसान उनके शवों को अलग-अलग तरह से ख़त्म करता है. मिस्र में शव के साथ खाना, पानी और शराब जैसी ज़रूरी चीज़ें दफन की जाती थीं. वहां के लोगों की मान्यता थी कि मरने के बाद के सफर के लिए इन चीज़ों की ज़रूरत होगी.
ज़ोराष्ट्रियन शव को आबादी से दूर किसी ऐसी ऊंची जगह रख देते हैं जहां चिड़ियां आसानी से उसे खा सकें. इसे स्काई बरियल कहते हैं. ये लोग मानते हैं कि मरने के बाद शव अशुद्ध हो जाता है और बुरी आत्माएं (नासू) इस पर हमला करती हैं. नासू ज़िंदा लोगों के लिए ख़तरा हो सकती हैं इसलिए शवों को गिद्धों के लिए छोड़ दिया जाता है.
हिंदू शवों को आग के हवाले कर देते हैं. सोलोमन आइलैंड्स में कुछ लोग शवों को समुद्री चट्टानों पर छोड़ देते हैं ताकि उन्हें शार्क खा सकें. साउथ पेसिफिक के कुछ हिस्सों में शव को लाल कपड़े में लपेटकर समुद्र में छोड़ दिया जाता है, इसे वाटर बरियल कहा जाता है.
थॉमस लैकर कहते हैं कि शव संस्कार के अलग-अलग तरीकों के पीछे परंपराएं और मान्यताएं हैं जो समुदाय में रहने और खुद की पहचान बनाए रखने की इंसान की कोशिश है. लेकिन वक्त के साथ चीज़ें बदल रही हैं.
वो कहते हैं, "उन्नीसवीं सदी में शहरों की आबादी कई गुना बढ़ी है और क्रबिस्तान का रूप भी बदला है. अब रूसी व्यक्ति की कब्र के पास इतालवी, ईसाई व्यक्ति की कब्र के पास यहूदी व्यक्ति की कब्र होना आम होने लगा है."
शवों को नष्ट करने की परंपरा इंसान के धर्म से भी जुड़ी है और इसलिए शवों के साथ छेड़खानी करने या सामुहिक कब्र बनाने को गुनाह करार दिया जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि शहरीकरण और दफनाने के लिए कम पड़ती ज़मीन के बीच क्या शव संस्कार के तरीके बदलेंगे.
कब्रों से शव निकालने की मजबूरी
एलेक्ज़ेंडर स्कॉर्कोफिन्स एथेंस की थर्ड सेमेटरी में रोज़ाना का कामकाज देखते हैं. ये ग्रीस के सबसे बड़े कब्रिस्तानों में से एक हैं और यहां क़रीब 28 हज़ार कब्रें हैं. यहां रोज़ाना क़रीब 15 लाशों का क्रियाकर्म किया जाता है.
लेकिन महंगाई के चलते आज यहां ज़िंदा इंसानों के रहने के लिए और मरने वालों की कब्र के लिए जगह मिल पाना दोनों ही मुश्किल हो गया है.
एलेक्ज़ेंडर कहते हैं, "ये बहुत बड़ी समस्या है. एथेंस शहर की आबादी साल दर साल बढ़ रही है और जगह की मांग भी बढ़ रही है. अब हम कब्रिस्तान के हर इंच का इस्तेमाल करने लगे हैं. जहां पहले पगडंडी थी उसके पास भी अब हम कब्रें खोद रहे हैं, लेकिन कब्रों की संख्या बढ़ाना हमारे लिए बड़ी चुनौती है. यहां हर साल पांच हज़ार से अधिक लाशें दफन की जाती हैं. आप समझ सकते हैं ये बड़ा आंकड़ा है."
इसका मतलब ये भी है कि हर साल जितनी लाशें दफन की जाती हैं, उतनी ही संख्या में कब्रें खोद कर उनमें पहले दफन किए गए शवों के अवेशष निकाल लिए जाते हैं.
यानी शव दफनाने के लिए, पहले कब्र को खाली करना होता है. गांवों के छोटे कब्रिस्तानों की भी यही स्थिति है लेकिन वहां हालात अभी शहरों जितने बुरे नहीं हुए हैं. एथेंस शहर में हर तीन साल में ये किया जाता है. हालांकि जो लोग पैसे चुका सकते हैं और कुछ सालों तक कब्र किराए पर ले सकते हैं.
लेकिन क्या तीन साल में कोई शव पूरी तरह नष्ट हो पाता है?
एलेक्ज़ेंडर कहते हैं, "ये निर्भर करता है कि कब्र की मिट्टी कैसी है, उसमें कितने जीवित टीशू को नष्ट करने की क्षमता है और यहां का मौसम कैसा है. अगर शव को सर्दियों में दफनाया गया है तो हो सकता है कि वो तीन साल में पूरी तरह नष्ट न हो."
शिशुओं की कब्रों में तीन साल बाद कुछ नहीं बचता. परिजनों को ये चीज़ों के ख़त्म होने का अहसास देता है. लेकिन कभी-कभी परिजनों के लिए ये बेहद मुश्किल भी हो सकता है.
एलेक्ज़ेंडर अपना निजी अनुभव बताते हैं. वो कहते हैं, "जब तीन साल बाद कब्र से मेरे पिता के अवशेष निकाले गए तो वो अच्छे से गले नहीं थे. मेरे लिए ये हमेशा ऐसा घाव बना रहेगा जो मेरे मरने तक साथ रहेगा."
कब्रों से निकाले गए अवशेषों को या तो नष्ट कर दिया जाता है या फिर कलश में भरकर ओसुआरी नाम की ख़ास जगह में रखा जाता है, जिसका किराया परिजनों को देना होता है.
लेकिन आर्थिक तंगी से जूझ रहे ग्रीस में कई लोग अधिक सालों के लिए कब्र किराए पर लेने या फिर ओसुआरी में अवशेष रखने का खर्च नहीं उठा सकते. ऐसी सूरत में अवेशेषों को अंडरग्राउंड सामूहिक कब्र यानी डाइजेस्टिव पिट में डाल दिया जाता है.
कई बार अवशेषों को पूरी तरह गलाने के लिए भी कुछ लोग इसे डाइजेस्टिव पिट में डाल देते हैं.
सरकार ने मुफ्त में सामूहिक कब्र में अवशेष भेजने की घोषणा की है लेकिन एक मुश्किल ये भी है कि सामूहिक कब्र के लिए भी जगह कम है. थर्ड सिमेटरी का डाइजेस्टिव पिट साल 2015 में ही भर गया था.
ऐसे में अवशेष जला देना एक विकल्प हो सकता है. एलेक्ज़ेंडर कहते हैं, "चर्च इसका विरोध करता है क्योंकि ये उनकी रूढ़िवादी मान्यताओं के ख़िलाफ़ है. लेकिन इसकी डिमांड बढ़ रही है और कई लोगों ने बार-बार इसकी मांग की है. अब कई देशों में अवशेषों को जलाया जाने लगा है."
साल 2019 में ग्रीस में पहला शवदाह गृह खुला. उस वक्त ग्रीक क्रेमेशन सोसायटी के अध्यक्ष एंटोनिस एलाकोटिस (जो 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद शवदाह गृह बना सके) ने इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा था "शव संस्कार की परंपराओं को बदलना बेहद मुश्किल और धीमा काम है."
एलेक्ज़ेंडर मानते हैं इस तरह शवों के लिए कब्र की कमी की मुश्किल हल हो सकती है, लेकिन कई शहर ऐसे भी हैं जहां मृतकों का राख तक रखने की जगह नहीं है.
राख संजोना भी हुआ मुश्किल
बेट्सी मा हॉन्ग कॉन्ग में में एक फ्यूनरल सर्विस में निदेशक हैं. वो बताती हैं कि हॉन्ग कॉन्ग में हर साल अप्रैल में चिंग मिंग और अक्तूबर में चोंग यांग फेस्टिवल के दौरान परिवार के सभी लोग कब्रिस्तान जाते हैं.
लोग कब्र के आसपास सफाई करते हैं, उसके सामने कागज़ के पैसे, कागज़ के फर्नीचर और दूसरी चीज़ें जलाते हैं और फिर कब्र के सामने खाना रखते हैं. लोग ये मानते हैं कि ये सभी चीज़ें मरने वाले को मिलेंगी.
लेकिन हॉन्ग कॉन्ग महंगी जगह है, यहां जिंदा लोगों के साथ-साथ शवों के लिए भी ज़मीन महंगी है. यहां अब शवदाह का चलन तेज़ी पकड़ रहा है.
बेट्सी बताती हैं, "लोग वक्त के साथ बदलते हैं. यहां मरने वाले 90 फीसदी से अधिक लोगों के परिजन अब शवों का दाह संस्कार चाहते हैं. 1970 के दशक से सरकार ने यहां शवदाह जगरूकता अभियान चलाना शुरू किया था. पहले स्कूलों कॉलेजों में इसके बारे में बताया जाता था, अब टीवी और विज्ञापन के ज़रिए भी लोगों को समझाया जाता है."
घनी आबादी वाले इस शहर में हर साल लगभग पचास हज़ार लोगों की मौत होती है और मृतकों की राख को कलश में भर कर छोटी-छोटी अलमारियों में कोलंबेरियम नाम की इमारत में रखा जाता है. लेकिन अब कोलंबेरियम के लिए भी जगह कम पड़ रही है.
बेट्सी कहती हैं, "अभी भी हॉन्ग कॉन्ग में 20 हज़ार लोगों के कलश, कोलंबेरियम में जगह पाने के इंताज़ार में है."
सरकार और कोलंबेरियम बनाना तो चाहती है, लेकिन लोग अपने पड़ोस में ऐसी इमारत नहीं चाहते. यहां कुछ समूह मृतकों की राख को ख़ास बगीचों में फैलाने के समर्थन में अभियान चला रहे हैं और इसे पसंद भी किया जा रहा है.
बेट्सी मा ने अपने पिता की राख को संजोने का अनोखा तरीका निकाला है. वो बताती हैं, "मेरे पिता की मौत क़रीब 32 साल पहले हुई थी. मेरी मां बूढ़ी हो गईं हैं और वो कोलंबेरियम नहीं जा सकतीं. मैंने अपने पिता की राख को कोलंबेरियम से निकाल कर उससे जेम स्टोन्स बनाए. मैंने उससे लॉकेट और दूसरे गहने बनाए हैं."
बेट्सी कहती हैं कि इससे लोगों ये अहसास होता है कि मरने वाला हमेशा उनके साथ है. वो बताती हैं, "कुछ साल पहले जब हम क्रूज़ पर गए थे तो मां उनकी राख वाला लॉकेट साथ लाई थीं. उन्होंने कहा हम साथ में क्रूज़ पर जा नहीं सके थे इसलिए मैं तुम्हारे पिता को भी साथ ले आई हूं. मैंने अपनी मां के चेहरे पर खुशी देखी."
लेकिन हर किसी लिए मरने वाले की राख को गले में या कान में पहन सकना आसान नहीं. ऐसे में शवों को दुनिया से विदा देने के लिए हमें क्रांतिकारी उपायों के बारे में सोचना पड़ेगा.
क्या शव का भी हो सकता है इस्तेमाल?
कल्चर एंथ्रोपोलॉजिस्ट रुथ स्टोलसन जो फिलहाल शवों के लिए जगह की तंगी पर किताब पर काम कर रही हैं, कहती हैं कि मान्यताओं के आधार पर शवों को दफनाना सही लगता है लेकिन तार्किक नज़रिए से देखा जाए तो ये ज़मीन की बर्बादी है.
वो बताती हैं कि मृतकों की यादों को संजोए रखने के लिए कुछ जगहों पर लोग अब कब्रों पर ऐसे कोड लगा रहे हैं जिसे स्कैन कर व्यक्ति के बारे में और जानकारी ली जा सकती है.
वो कहती हैं, "जब आप शव को देखते हैं तो आपको अहसास होता है कि उस व्यक्ति के साथ आपका संबंध हमेशा के लिए बदल गया है. मौत रिश्ते तोड़ने का अहसास होता है, लेकिन परंपराएं रिश्तों को नए मायने देने का काम करती हैं. लोग मरने वाले का सम्मान करते हैं और कहते हैं कि ज़मीन में बनी ये कब्र आपका नया घर है."
रुथ स्टोलसन कहती हैं कि इस तरीके में अभी शव को दफनाना ज़रूरी है जिसके लिए ज़मीन की ज़रूरत होती है. वो शवों को नष्ट करने के तरीकों पर काम कर रहे कोलंबिया युनिवर्सिटी के डेथ लैब का उदाहरण देती हैं.
रुथ बताती हैं, "लैब के छात्रों ने एक तरह के खास पॉड्स डिज़ाइन किए हैं जिसके भीतर शव रख कर उसे गलने के लिए छोड़ा जाएगा. इस प्रक्रिया से जो उर्जा पैदा होगी उसका इस्तेमाल घरों और सड़कों को रौशन करने में किया जाएगा."
लेकिन एक सवाल ये भी है कि क्या लोग अपने परिजनों के शवों को उर्जा तब्दील होते देख सकेंगे? शवों से खाद बनाने के भी तरीके सुझाए जा रहे हैं लेकिन इन तरीकों को अपनाने को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है.
रुथ कहती हैं, "मुझे लगता है कि, हमारे समाज में हर शव के लिए सम्मान दिखाना ज़रूरी होता है. वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी एक नए डिज़ाइन पर काम कर रही है. एक बक्से में कुछ लकड़ियों और अल्फा-अल्फा घास के साथ शव रख कर उसे ऊंचे तापमान पर सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. 30 दिनों में शव खाद बन जाता है. बाद में परिजन इसमें से थोड़ी खाद ले सकते हैं."
लेकिन क्या लोग अपनों के शवों से बनी खाद का इस्तेमाल कर सकेंगे?
थॉमस लैकर की तरह रुथ स्टोलसन मानती हैं कि मृतक के शव के साथ इंसान का नाता इतना गहरा है कि इस परंपरा को छोड़ पाना आसान नहीं.
वो कहती हैं, "हमारे लिए ऐसे समाज की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है जिसमें इंसान और मृतक के शव के बीच कोई नाता न हो."
शव संस्कार, इंसानी तौर पर हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा है लेकिन इसमें बदलाव की ज़रूरत को लेकर बहस छिड़ चुकी है. पहले के दौर में शव को दफनाना आसान था लेकिन जीने के लिए पैर पसारने की होड़ में, ये अब बड़ी समस्या बन गया है.
आज के दौर में हॉन्ग कॉन्ग और सिंगापुर जैसे शहरों में दफनाने का विकल्प अमीरों के पास है, लेकिन ग़रीबों के पास ये विकल्प मौजूद नहीं. ग्रीस में ग़रीबों के लिए अवशेषों को डाइजेस्टिव पिट में डालना विकल्प भी है और मजबूरी भी. वहीं कई और जगहों पर लोग बढ़ते शहरीकरण के बीच परंपरा और शव संस्कार के उलझे तानेबाने को सुलझाने में लगे हैं.
जब तक इंसान है तब तक शवों को नष्ट करने की समस्या बनी रहेगी. लेकिन बदलते वक्त और ज़रूरतों के साथ अब लोग अपनी परंपराओं और मान्यताओं को चुनौती दे रहे हैं और इस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं.
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