थाईलैंड: अगर चार महीने तक बच्चे गुफा से ना निकले तो..
लेकिन चार महीने, एक लंबा समय है. अगर इतने दिनों तक ये बच्चे गुफा के भीतर ही रहे तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका क्या असर होगा?
डॉक्टर एंड्रिया डेनिस लंदन में बच्चों और किशोरों के मनोचिकित्सक हैं. उनका कहना है कि इस दुर्घटना का बच्चों की मानसिक सेहत पर कई तरह से असर पड़ सकता है.
थाईलैंड में नौ दिनों तक लापता रहे 12 बच्चों और उनके फ़ुटबॉल कोच की ख़बरों ने पूरी दुनिया को बांधे रखा.
ये सभी लोग 23 जून की शाम फ़ुटबॉल का अभ्यास करने के बाद उत्तरी थाईलैंड की एक गुफा देखने गये थे. लेकिन बाढ़ के पानी के कारण सभी गुफा के अंदर फंस गये.
बचावकर्ताओं के एक दल ने नौ दिन बाद इन सभी को खोज लिया और दसवें दिन इन लोगों तक दवाइयाँ और खाना पहुँचाया गया.
बचाव दल के अनुसार गुफा में फंसे बच्चों और उनके कोच ने गुफा के भीतर कोई ऐसी जगह तलाश ली थी जिससे वे बाढ़ के पानी की चपेट में आने से बच गये.
बहरहाल, थाई सेना की मदद से अब इन बच्चों को बाहर निकालने की कोशिश की जा रही है. थाई सेना का कहना है कि बच्चों को बाहर निकालने में चार महीने तक का समय लग सकता है.
'सुरक्षात्मक' भाव
लेकिन चार महीने, एक लंबा समय है. अगर इतने दिनों तक ये बच्चे गुफा के भीतर ही रहे तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका क्या असर होगा?
डॉक्टर एंड्रिया डेनिस लंदन में बच्चों और किशोरों के मनोचिकित्सक हैं. उनका कहना है कि इस दुर्घटना का बच्चों की मानसिक सेहत पर कई तरह से असर पड़ सकता है.
वो कहते हैं, "इससे उनमें डर बैठ सकता है. वो चिड़चिड़े और मूडी हो सकते हैं. लेकिन यहाँ जो सबसे अच्छी बात है, वो ये है कि बच्चे एक टीम में हैं. इससे उनका एक समुदाय बना हुआ है. साथ ही उनमें एक 'सुरक्षात्मक' भाव भी बरकरार है."
अमरीका के वर्जीनिया में स्थित रिचमंड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डोनेल्सन आर फोर्सिथ इससे सहमत हैं.
वो कहते हैं, "समूह में होने से आपदा से बच निकलने और ज़िंदा रहने का जज़्बा बना रहता है. इससे बच्चों को फ़ायदा होगा और वो एक जुट रहेंगे. हालांकि समूह में होने का एक ख़राब पक्ष ये होता है कि लोग भावुक होने लगते हैं. कई बार एक दूसरे पर आरोप लगाने लगते हैं. गुस्सा होते हैं और छोटे-बड़े का भाव मन में ले आते हैं."
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अब होना क्या चाहिए?
ये एक बेहद असामान्य स्थिति है. इससे पहले साल 2010 में ऐसी ही एक दुर्घटना हुई थी. तब चिली की खदान में मज़दूर क़रीब 70 दिनों तक सुरंग में फंसे रहे थे.
लेकिन ये मामला उससे एकदम अलग इसलिए है, क्योंकि इससें 12 बच्चे शामिल हैं.
डॉक्टर एंड्रिया डेनिस कहते हैं कि इस वक़्त सबसे अहम भूमिका उन वयस्कों की है जो इन बच्चों को बचाने में जुटे हैं या वो कोच जो उनके साथ हैं.
वो कहते हैं कि बच्चों के साथ ईमानदारी के साथ बातचीत की जाए ताकि उनके मन में कम से कम डर बैठे. इसके लिए ज़रूरी है कि उन्हें पता हो कि उन्हें बाहर लाने के लिए क्या कुछ किया जा रहा है और आगे क्या होने वाला है.
डॉक्टर एंड्रिया डेनिस कहते हैं कि उन्हें बाहर निकालने की प्रक्रिया में अगर ऐसा कुछ भी हुआ जिसकी बच्चों ने उम्मीद नहीं की होगी, तो बच्चों के दिमाग पर इसका असर लंबे समय तक रह सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को भी अपनी भावनाएं खुलकर कहनी होंगी. जो भी वो महसूस कर रहे हैं, उसे बताने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
गुफा में फ़ोन लाइन बिछाई गई है. इससे वो अपने परिजनों के संपर्क में रह सकेंगे. ज़ाहिर तौर पर इससे बच्चों का मनोबल बढ़ेगा.
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अंधेरे का कितना असर ?
गुफा में रोशनी का इंतज़ाम करना बचाव दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. क्योंकि बिना रोशनी के ये बच्चे दिन और रात में अंतर नहीं कर पायेंगे.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रसल फ़ॉस्टर ने अनुसार, बिना रोशनी के 'बॉडी क्लॉक' गड़बड़ा जाती है, जिसका सीधा असर मनोस्थिति पर पड़ता है.
फ़ॉस्टर कहते हैं, "लगातार अंधेरी जगह में रहने से सोने और जागने का चक्र गड़बड़ा जाता है. मूड ख़राब रहने लगता है और शरीर में कई तरह की क्रियाएं बिगड़ जाती हैं."
हालांकि प्रोफ़ेसर फ़ॉस्टर मानते हैं कि बचाव दल गुफा में लाइटें लगायेंगे. इन लाइटों को दिन और रात के हिसाब से जलाया बुझाया जायेगा.
वो कहते हैं कि चिली में 70 दिन तक फंसे रहे खनिकों के लिए भी यही व्यवस्था की गई थी.
फ़ॉस्टर कहते हैं कि ज़मीन पर वापस लौटने के बाद इन बच्चों को सामान्य होने में भी कुछ वक़्त लगेगा.
बाद में भी होगा कोई असर?
गुफा से बाहर आने के बाद भी कई अनुभव और ख़राब यादें इन बच्चों को परेशान कर सकती हैं.
बॉस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रॉबर्ट ए नॉक्स कहते हैं, "ऐसा देखा गया है कि जो बच्चे इस तरह का सदमा झेलते हैं, उनमें मनोदशा में विकार आ जाते हैं. ये लंबे समय तक उनके साथ रह सकते हैं. उन्हें डिप्रेशन हो सकता है और वो तनाव में आ सकते हैं."
लेकिन ऐसा सभी बच्चों के साथ नहीं होगा.
प्रोफ़ेसर रॉबर्ट कहते हैं कि ऐसी दुर्घटना के बाद दस में से सिर्फ़ तीन बच्चों के साथ ही ऐसे विकार हो सकते हैं. बाकी एक तिहाई बच्चों को कुछ महीने तक मेडिटेशन यानी ध्यान लगाने से मदद मिलेगी और वो इस ट्रॉमा से बाहर आ जायेंगे.