समंदर आज भी तय करते हैं हमारी ज़िंदगी के रास्ते
'जो इतिहास से सबक़ नहीं लेते, वो उसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं- यूरोपीय दार्शनिक जॉर्ज सैंटयाना की ये बात बहुत गहरे अर्थ वाली है और हर दौर, हर समाज, हर देश पर लागू होती है. सवाल ये है कि इतिहास हमें क्या सबक़ देता है?तो, इसका जवाब ये है कि इतिहास का हर दौर, आने वाले वक़्त के लिए सबक़ है.
'जो इतिहास से सबक़ नहीं लेते, वो उसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं- यूरोपीय दार्शनिक जॉर्ज सैंटयाना की ये बात बहुत गहरे अर्थ वाली है और हर दौर, हर समाज, हर देश पर लागू होती है. सवाल ये है कि इतिहास हमें क्या सबक़ देता है?
तो, इसका जवाब ये है कि इतिहास का हर दौर, आने वाले वक़्त के लिए सबक़ है. किसी दौर की कामयाबी, किसी दौर की तबाही. किसी राजा की शोहरत, किसी देश की बदनामी, किसी का ज़ुल्म, किसी की दानवीरता, इतिहास का हर क़िस्सा अपने आप में एक सबक़ है.
आपने ट्रॉय का क़िस्सा तो सुना होगा? वही ट्रॉय, जिसका राजकुमार पेरिस, स्पार्टा की राजकुमारी हेलेन को भगाकर ले गया था. फिर इस अपमान का बदला लेने के लिए ग्रीक सेनाओं ने ट्रॉय पर हमला बोलकर उसे तबाह कर दिया था.
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प्राचीन काल में लिखे गए दो यूनानी महाकाव्यों इलियड और ओडिसी में इस लड़ाई का ज़िक्र मिलता है. इन्हें लिखने वाले ग्रीक कवि होमर, उस दौर का इतिहास नहीं लिख रहे थे.
माना यही जाता है कि उन्होंने अपने महाकाव्यों में एक काल्पनिक क़िस्से को प्रस्तुत किया था. लेकिन, हम ये क़िस्सा पिछले क़रीब 3 हज़ार से भी ज़्यादा साल से सुनते आ रहे हैं.
अब, ट्रॉय की लड़ाई कितनी हक़ीक़त और कितना फ़साना थी, ये तो फ़िलहाल नहीं मालूम. मगर, पश्चिमी सभ्यता में ट्रॉय का क़िस्सा बहुत मशहूर है. बल्कि पूरी दुनिया में इसे बड़े चाव से पढ़ा जाता है. इसी लोकप्रियता को एक बार फिर से भुनाने की कोशिश हो रही है. बीबीसी वन पर 'ट्रॉय:फॉल ऑफ़ एक सिटी' के नाम से एक सिरीज़ शुरू हुई है.
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ट्रॉय नाम की जगह भी थी, इस बारे में भी यक़ीन से नहीं कहा जा सकता. पर, एक बात तो तय है कि ये क़िस्सा जिस इलाक़े का बताया जाता है, वो बेहद अहम कारोबारी बंदरगाह ज़रूर रहा होगा. ये वो जगह है, जहां एशिया और यूरोप मिलते हैं.
इसे आज हम 'द दर्दानेल्स' के नाम से जानते हैं. ये वो जलसंधि है, जहां एशियाई तुर्की और यूरोपीय तुर्की मिलते हैं. इस जलसंधि को लेकर, यूरोपीय इतिहास के हर दौर में देश भिड़ते रहे हैं. पहले विश्व युद्ध में भी इस जगह पर क़ब्ज़े के लिए गैलीपोली का युद्ध हुआ था.
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माना जाता है कि ट्रॉय नाम का कोई शहर था तो वो इसी जलसंधि के आस-पास रहा होगा. किसी दौर में एक अहम समुद्री बंदरगाह रहा होगा, इसमें कोई शक नहीं. ट्रॉय की कहानी जिस दौर की है, उस दौर को हम मानवता के इतिहास के कांस्य युग के नाम से जानते थे.
ईसा के 1300 साल पहले भूमध्य सागर के आस-पास मिस्र, हित्तियों, मध्य तुर्की, यूनानी, बेबीलोन और मध्य-पूर्व के देशों में कई शहरी सत्ताएं क़ायम थीं. इनके बीच ख़ूब कारोबार होता था.
द दर्दानेल्स की जलसंधि से उस वक़्त बहुत से जहाज़ गुज़रते रहे होंगे. जिन्हें रोककर ट्रॉय के राजा ख़ूब टैक्स वसूली करते रहे होंगे.
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लेकिन, 1170 ईसा पूर्व तक आते आते, मिस्र को छोड़कर बाक़ी सभी साम्राज्यों का ख़ात्मा हो गया था. इसके बाद अंधकार युग शुरू हो गया. हालात इतने बिगड़ गए कि लिखने-पढ़ने की कला भी विलुप्त सी हो गई.
ब्रिटिश म्यूज़ियम के जे लेस्ले फिटन कहते हैं कि होमर ने ट्रॉय का जो क़िस्सा लिखा है, वो असल घटना के क़रीब 4 सौ बरस बाद का है. ये इतिहास है, तो इसमें काफ़ी कल्पनाएं भी शामिल हैं.
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कांस्य युग में अंतरराष्ट्रीय कारोबार-
इतिहास का कांस्य युग राजमहलों से चलने वाले देशों का था. ये सभी देश किसी न किसी चीज़ के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हुआ करते थे. ये ठीक आज के दौर जैसा था. जैसे पूरी दुनिया के वित्तीय बाज़ार, कारोबार और लेन-देन आज एक-दूसरे से जुड़े हैं.
उस दौर में कांसा सबसे अहम था. इसके बग़ैर कोई भी देश ताक़तवर सेना नहीं खड़ी कर सकता था. और बिना मज़बूत फौज के कोई देश ताक़तवर नहीं हो सकता था.
कांसा बनाने के लिए भूमध्य सागर के आस-पास के देश साइप्रस पर निर्भर थे. मगर, इसके लिए ज़रूरी दूसरी धातु यानी टिन, चार हज़ार किलोमीटर दूर स्थित अफ़ग़ानिस्तान से आता था. ये टिन पहले ज़मीन के रास्ते से सीरिया पहुंचता था. फिर वहां से जहाज़ों के ज़रिए दूसरे देशों तक.
उस दौर में कांसे की वही अहमियत थी, जो आज तेल की है.
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यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की डॉक्टर कैरोल बेल कहते हैं कि हथियार बनाने लायक़ ज़रूरी टिन जुटाना उस दौर के हर शासक का पहला लक्ष्य था. ठीक उसी तरह, जैसे आज हर अमरीकी राष्ट्रपति के ज़हन में यही ख़याल होता है कि वो अमरीकी लोगों को कैसे सस्ता तेल मुहैया कराएं.
कारोबार की दिक़्क़तें-
आज 21वीं सदी में हम ने बहुत तरक़्क़ी कर ली है. तकनीकी रूप से ताक़तवर हो गए हैं. फिर भी, दुनिया में ऐसे चोकिंग प्वाइंट्स हैं, जहां कारोबार रुकने पर दुनिया भर पर असर पड़ता है. 2012 में ईरान ने धमकी दी थी कि वो होरमुज़ जलसंधि से होकर कारोबार रोक देगा. होरमुज़ जलसंधि से होकर दुनिया का 20 फ़ीसद तेल कारोबार होता है. अगर, ईरान इस पर रोक लगाता, तो दुनिया का कमोबेश हर देश प्रभावित होता.
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पिछले साल ब्रिटेन के थिंक टैंक चैथम हाउस ने कहा था कि वो दुनिया भर के ऐसे कारोबारी 'चोकिंग प्वाइंट्स' के बेहतर प्रबंधन की कोशिश करे.
'द दर्दानेल्स' से होकर आज भी दुनिया भर के गेहूं का पांचवां हिस्सा गुज़रता है. अगर तुर्की ने ये रास्ता रोका, तो पूरी दुनिया को झटका लगेगा. दुनिया भर में खाने की क़ीमतें बढ़ जाएंगी.
जब आज के दौर में ऐसा होने का डर है, तो सोचिए कि कांस्य युग में तो ऐसा अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी नहीं था. ऐसे में किसी भी एक देश ने ऐसा रास्ता रोका, तो तबाही ही मच जानी थी.
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जलवायु परिवर्तन की चुनौती-
आज पूरी दुनिया में धरती की आबो-हवा बिगड़ने की बहुत चर्चा होती है. कांस्य युग में भी जलवायु परिवर्तन का तमाम देशों पर गहरा असर पड़ता था.
अमरीका की जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एरिक क्लाइन कहते हैं कि उस दौर में भी अकाल पड़ा करते थे. उस दौर के कई ऐसे पुरातात्विक सबूत मिले हैं, जो ये बताते हैं कि कांस्य युग में बहुत से देशों में क़रीब तीन सौ सालों तक अकाल पड़ा रहा था. उस दौर में भूमध्य सागर का तापमान बहुत ठंडा हो गया था. नतीजा ये कि आस-पास के इलाक़ों में बारिश बहुत कम हो गई थी.
कांस्य युग में तो देशों को एक के बाद एक कई तरह की तबाहियां देखी थीं. सूखा और अकाल ही नहीं, ज्वालामुखी विस्फोट, भयंकर ज़लज़ले, गृह युद्ध, बड़े पैमाने पर उठ खड़ा हुआ शरणार्थी संकट और कारोबार में बाधा पड़ने जैसी मुश्किलों ने एक के बाद एक भूमध्य सागर के आस-पास के देशों को परेशान किया था.
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प्रोफ़ेसर क्लाइन कहते हैं कि कोई एक मुश्किल हो तो कोई निपट भी ले, एक साथ कई आफ़तों के हमले ने पूरे इलाक़े की व्यवस्था को नेस्तनाबूद कर दिया था.
आज हम बहुत तरक़्क़ी कर चुके हैं. मगर 2011 मे जापान में आए फुकुशिमा भूकंप ने पूरी दुनिया पर असर डाला था. कंप्यूटर के कल-पुर्ज़ों की सप्लाई बाधित हुई थी.
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एक के बाद एक तबाही-
1250 ईसा पूर्व तक भूमध्य सागर के आस-पास के देश कई मुश्किलों से एक साथ जूझ रहे थे. तुर्की पर राज करने वाले हित्तियों की एक रानी ने मिस्र को चिट्ठी लिखकर मदद मांगी थी. इसमें हित्ती रानी ने लिखा था कि मदद फौरन न आई, तो सब भूख से मर जाएंगे.
मिस्र ने फौरन अनाज की बोरियां हित्तियों की मदद के लिए रवाना की थीं. जैसे, आज कई देश दूसरों की मदद का ख़ूब शोर मचाते हैं. ठीक उसी तरह कांस्य युग में भी मिस्र के फराओ ने ग़ुरूर से कहा था कि उसने अनाज से लदे जहाज़ हित्तियों के देश रवाना किए हैं.
लेकिन, उस दौर में इस अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपनी सीमाएं थी. सबको मदद मिल नहीं पाती थी. नतीजा ये होता था कि कई जगहों पर गृह युद्ध छिड़ जाते थे.
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होमर के महाकाव्य: हक़ीक़त या फ़साना ?
ट्रॉय की लड़ाई स्पार्टा की राजकुमारी हेलेन को ट्रॉय के राजकुमार पेरिस के भगा ले जाने की वजह से हुई थी. ये क़िस्सा इलियड और ओडिसी महाकाव्यों में मिलता है.
उस दौर के दस्तावेज़ बताते हैं कि ग्रीक राजाओं ने अनातोलिया पर कई बार धावा बोला था. जिस जगह पर ट्रॉय शहर के होने का अंदाज़ा लगाया जाता है, वो समुद्री कारोबार के लिहाज़ से बहुत अहम था.
ज़ाहिर है कि ट्रॉय को लेकर तुर्की और ग्रीक शासकों के बीच झगड़े ज़रूर हुए होंगे. 1200 ईसा पूर्व के दौरान इस शहर को यक़ीनी तौर पर तबाहो-बर्बाद कर दिया गया था. हालांकि इसके ठोस सबूत ग्रीस में नहीं मिलते. मगर, सीरिया में ज़रूर उस जंग के निशान मिले हैं. वहां पर कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जो बताते हैं कि ट्रॉय की लड़ाई की वजह से बहुत से लोग भागकर सीरिया पहुंचे थे और पनाह ली थी.
क़िस्से-कहानियों के वो समुद्री दैत्य
जंग की वजह से हज़ारों लोग भाग कर आस-पास के देशों में घुस गए थे. इन देशों ने मदद के लिए गुहार भी लगाई. मगर उनकी गुहार किसी ने नहीं सुनी.
भयंकर लड़ाई की वजह से भागे लोगों ने तब मिस्र का रुख़ किया. लेकिन मिस्र ने इन लोगों को अपने इलाक़े में घुसने से रोक दिया. मिस्र के राजाओं को लगा कि ये शरणार्थी उनके लिए मुसीबत बन जाएंगे.
ये बात सुनकर आपको डोनाल्ड ट्रंप की याद ज़रूर आई होगी. जो अमरीका की हर परेशानी के लिए शरणार्थियों को ज़िम्मेदार मानते हैं.
मिस्र के एक शिलालेख में उस दौर का क़िस्सा दर्ज है. इसमें लिखा है कि दुश्मन देश हमारे ख़िलाफ साज़िश रच रहे हैं. इनका सिरे से ख़ात्मा होना ज़रूरी है.
समंदर के रास्ते आ रहे इन लोगों को मिस्र ने मार-काटकर अपने इलाक़े में घुसने से रोक दिया.
जीत की हार-
अब अगर यूनान के राजाओं ने मिलकर ट्रॉय को तबाह कर दिया था. तो भी उनकी जीत बहुत दिनों तक क़ायम नहीं रख सकी.
कुछ ही साल के भीतर यूनान के राज्य, हित्ती, सीरियाई देश, असीरियन और बेबीलोनियन सत्ताएं तबाही की कगार पर पहुंच गईं. इस दौर में सिर्फ़ मिस्र ही बच रहा.
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर क्लाइन कहते हैं कि उस दौर में राजा सिर्फ़ देवी-देवताओं से प्रार्थना ही कर सकते थे.
वो आगाह करते हैं कि इतिहास से हम ये सीखते हैं कि हर सभ्यता अंत में तबाह हो गई. ऐसे में ये सोचना अहंकार है कि हमारा दौर ऐसे ही चलता रहेगा.