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एससीओ बैठकः पीएम मोदी जिस समरकंद गए हैं, वहाँ दफ़न है तैमूरलंग

उज़्बेकिस्तान में पहली बार एससीओ की शिखर बैठक समरकंद में हो रही है जो एक ऐतिहासिक शहर रहा है.

By BBC News हिन्दी
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समरकंद में एससीओ की शिखर बैठक के लिए पहुँचे सदस्य देशों के नेता
Reuters
समरकंद में एससीओ की शिखर बैठक के लिए पहुँचे सदस्य देशों के नेता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में हिस्सा लेने के लिए उज़्बेकिस्तान के समरकंद शहर पहुंचे हैं.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी वहाँ मौजूद हैं. सम्मेलन को लेकर भारत में सबसे ज़्यादा कयास इस बात पर लग रहे हैं कि वहाँ प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति के बीच अलग से मुलाक़ात होती है या नहीं.

दोनों देशों की सेनाओं के बीच अप्रैल 2020 में एलएसी पर हुई तनातनी के बाद से ये पहला मौक़ा है जब मोदी और जिनपिंग एक साथ किसी सम्मेलन में आमने-सामने होंगे.

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि पीएम मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोयेव से अलग से मुलाक़ात होगी. मगर चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग से अलग से मुलाक़ात होने के बारे में अभी कुछ भी निश्चित नहीं है.

शंघाई सहयोग संगठन या एससीओ का गठन 2001 में छह देशों ने मिलकर किया था. तब चीन और रूस के अलावा मध्य एशिया के चार देश कज़ाक़स्तान, किर्गिज़स्तान, उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान इसके सदस्य थे.

संगठन का पहली बार 2017 में विस्तार किया गया, और भारत और पाकिस्तान को शामिल किया गया. अब ईरान भी एससीओ का सदस्य बनने जा रहा है.

उज़्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन पहले भी तीन बार हो चुके हैं, मगर ये तीनों सम्मेलन राजधानी ताशकंद में हुए थे. इस साल उज़्बेकिस्तान में पहली बार एससीओ की शिखर बैठक समरकंद में हो रही है.

समरकंद एक ऐतिहासिक शहर है जिसके बारे में बीबीसी ने पहले लेख प्रकाशित किए थे. पढ़िए समरकंद के बारे में ये विशेष लेख.


तैमूरलंग
Getty Images
तैमूरलंग

समरकंद क्यों है ख़ास?


एससीओ की बैठक उज़बेकिस्तान के समरकंद में हो रही है. समरकंद इतिहास के पन्नों का एक अहम हिस्सा है.

एक खूनी योद्धा के तौर मशहूर हुए तैमूरलंग का जन्म समरकंद में ही हुआ था.

अगर इतिहास के महान योद्धाओं और विजेताओं के बारे में सोचें तो चंगेज़ ख़ान और सिकंदर महान के नाम याद आते हैं. लेकिन अगर आप मध्य एशियाई और मुस्लिम देशों के बारे में थोड़ा बहुत भी जानते होंगे तो ये सूची तैमूरलंग के बिना पूरी नहीं होगी.

तैमूरलंग का जन्म समरकंद में 1336 में हुआ था. ये इलाका अब उजबेकिस्तान के नाम से मशहूर है. कई मायनों में तैमूरलंग सिकंदर महान और चंगेज़ ख़ान से कहीं ज्यादा चमकदार शख्सियत के मालिक थे.

तैमूरलंग इतिहास में एक खूनी योद्धा के तौर पर मशहूर हुए. 14वीं शताब्दी में उन्होंने युद्ध के मैदान में कई देशों की जीता. कहते हैं कि तैमूरलंग को अपने दुश्मनों के सिर काटकर जमा करने का शौक था.

'तैमूरलंग: इस्लाम की तलवार, विश्व विजेता' के लेखक जस्टिन मारोज्जी के मुताबिक वह जमाना ऐसा था कि यु्द्ध बाहुबल से लड़ा जाता था, बम और बंदूकों के सहारे नहीं. ऐसे में तैमूरलंग की उपलब्धि किसी को भी अचरज में डाल सकती है.

मामूली चोर तैमूरलंग


हालांकि सिकंदर की तरह तैमूरलंग का जन्म किसी राजपरिवार में नहीं, बल्कि एक साधारण परिवार में हुआ था. तैमूरलंग को एक मामूली चोर बताया जाता है जो मध्य एशिया के मैदानों और पहाड़ियों से भेड़ों की चोरी किया करता था.

चंगेज़ ख़ान की तरह तैमूरलंग के पास कोई सिपाही भी नहीं था. लेकिन उन्होंने आम झगड़ालू लोगों की मदद से एक बेहतरीन सेना बना ली जो किसी अचरज से कम नहीं था.

1402 में जब तैमूरलंग ने सुल्तान बायाजिद प्रथम के खिलाफ युद्ध मैदान में पैर रखा तो उनके पास भारी भरकम सेना थी जिसमें आर्मीनिया से अफ़ग़ानिस्तान और समरकंद से लेकर सर्बिया तक के सैनिक शामिल थे.

तैमूरलंग अपने जीवन में इन मुश्किलों से पार पाने में कामयाब रहे लेकिन सबसे हैरानी वाली बात यह है कि वे विकलांग थे. आपको भले यकीन नहीं हो लेकिन हकीकत यही है कि उनके शरीर का दायां हिस्सा पूरी तरह से दुरुस्त नहीं था.

समरकंद स्थित तैमूरलंग का मक़बरा
Thinkstock
समरकंद स्थित तैमूरलंग का मक़बरा

हादसे में हुए विकलांग


जन्म के समय उनका नाम तैमूर रखा गया था. तैमूर का मतलब लोहा होता है. आगे चलकर लोग उन्हें फारसी में मजाक मजाक में तैमूर-ए-लंग (लंगड़ा तैमूर) कहने लगे.

इस मजाक की शुरुआत भी तब हुई जब युवावस्था में उनके शरीर का दाहिना हिस्सा बुरी तरह घायल हो गया था. इसके बाद यही नाम बिगड़ते बिगड़ते तैमूरलंग हो गया.

लेकिन तैमूरलंग के सफ़र में उनकी शारीरिक विकलांगता आड़े नहीं आई, जबकि वह जमाना ऐसा था जब राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए शारीरिक सौष्ठव भी जरूरी था.

युवा तैमूरलंग के बारे में कहा जाता है कि वह महज एक हाथ से तलवार पकड़ सकते थे. ऐसे में ये समझ से बाहर है कि तैमूरलंग ने खुद को हाथ से हाथ की लड़ाई और घुड़सवारी और तीरंदाज़ी के लायक कैसे बनाया होगा.

इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि तैमूरलंग बुरी तरह घायल होने के बाद विकलांग हो गए थे. हालांकि इस बात पर अनिश्चितता जरूर है कि उनके साथ क्या हादसा हुआ था.

वैसे अनुमान यह है कि यह हादसा 1363 के करीब हुआ था. तब तैमूरलंग भाड़े के मजदूर के तौर पर खुर्शान में पड़ने वाले खानों में काम कर रहे थे, दक्षिण पश्चिम अफगानिस्तान में स्थित इस हिस्से को आजकल मौत का रेगिस्तान कहा जाता है.

एक अन्य स्रोत- लगभग शत्रुता वाला भाव रखने वाले 15वीं शताब्दी के सीरियाई इतिहासकार इब्ने अरब शाह के मुताबिक एक भेड़ चराने वाले चरवाहा ने भेड़ चुराते हुए तैमूरलंग को अपने तीर से घायल कर दिया था. चरवाहे का एक तीर तैमूर के कंधे पर लगा था और दूसरा तीर कूल्हे पर.


सीरियाई इतिहासकार ने तिरस्कारपूर्ण अंदाज में लिखा है, "पूरी तरह से घायल होने से तैमूरलंग की गरीबी बढ़ गई. उसकी दुष्टता भी बढ़ी और रोष भी बढ़ता गया."

स्पेनिश राजदूत क्लेविजो ने 1404 में समरकंद का दौरा किया था. उन्होंने लिखा है कि सिस्तान के घुड़सवारों का सामना करते हुए तैमूरलंग घायल हुए थे.

उनके मुताबिक, "दुश्मनों ने तैमूरलंग को घोड़े से गिरा दिया और उनके दाहिने पैर को जख्मी कर दिया, इसके चलते वह जीवन भर लंगड़ाते रहे, बाद में उनका दाहिना हाथ भी जख्मी हो गया. उन्होंने अपने हाथ की दो उंगलियां गंवाई थी."

सोवियत पुरातत्वविदों का एक दल जिसका नेतृत्व मिखाइल गेरिसिमोव कर रहे थे, ने 1941 में समरकंद स्थित तैमूरलंग के खूबसूरत मक़बरे को खुदवाया था और पाया कि वे लंगड़े थे लेकिन 5 फुट 7 इंच का उनका शरीर कसा हुआ था.

उनका दाहिना पैर, जहां जांघ की हड्डी और घुटने मिलते हैं, वह जख्मी था. इसके चलते उनका दाहिना पैर बाएं पैर के मुकाबले छोटा था. यही वजह है कि उनका नाम 'लंगड़ा' तैमूर पड़ गया था.


उज़्बेकिस्तान में लगी तैमूरलंग की प्रतिमा
Getty Images
उज़्बेकिस्तान में लगी तैमूरलंग की प्रतिमा

विकलांगता नहीं बनी बाधा

चलते समय उन्हें अपने दाहिने पांव को घसीटना पड़ता था. इसके अलावा उनका बायां कंधा दाएं कंधे के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा ऊंचा था. उनके दाहिने हाथ और कोहनी भी बाद में ज़ख्मी हो गए.

बावजूद इसके 14वीं शताब्दी के उनके दुश्मन जिनमें तुर्की, बगदाद और सीरिया के शासक शामिल थे, उनका मजाक उड़ाते थे लेकिन युद्ध में तैमूरलंग को हरा पाना मजाक उड़ाने जितना आसान कभी नहीं रहा.

तैमूरलंग के कट्टर आलोचक रहे अरबशाह ने भी माना है कि तैमूरलंग में ताकत और साहस कूट कूट कर भरा हुआ था और उन्हें देखकर दूसरों में भय और आदेश पालन का भाव मन में आता था.

कभी नहीं हुई हार


18वीं शताब्दी के इतिहासकार एडवर्ड गिब्बन ने भी तैमूरलंग की काफी प्रशंसा की है. गिब्बन के मुताबिक तैमूरलंग की सैन्य काबलियत को कभी स्वीकार नहीं किया गया.

गिब्बन ने लिखा है, "जिन देशों पर उन्होंने अपनी विजय पताका फहराई, वहां भी जाने अनजाने में तैमूरलंग के जन्म, उनके चरित्र, व्यक्तित्व और यहां तक कि उनके नाम तैमूरलंग के बारे में भी झूठी कहानियां प्रचारित हुईं."

गिब्बन ने आगे लिखा है, " लेकिन वास्तविकता में वह एक योद्धा थे, जो एक किसान से एशिया के सिंहासन पर काबिज हुआ. विकलांगता ने उनके रवैये और हौसले को प्रभावित नहीं किया. उन्होंने अपनी दुर्बलताओं पर भी विजय प्राप्त कर ली थी."

जब तैमूरलंग का 1405 में निधन हुआ था, तब चीन के राजा मिंग के ख़िलाफ युद्ध के लिए वे रास्ते में थे. तब तक वे 35 साल तक युद्ध के मैदान में लगातार जीत हासिल करते रहे.

अपनी शारीरिक दुर्बलताओं से पार पा कर विश्व विजेता बनने का ऐसा दूसरा उदाहरण नजर नहीं आता.

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English summary
SCO meeting: Timurlang is buried in Samarkand where PM Modi visited
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