अमेरिका के नये 'दुश्मन' से महा-डील, सऊदी के लिए 'खजाना' खोलेगा चीन, जानिए भारत पर असर?
एक संपादकीय में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने "चीन-अरब राज्यों के शिखर सम्मेलन को "चीन-अरब देशों के संबंधों के इतिहास में एक मील का पत्थर" बताया है"।
Xi Jinping Saudi Arabia Visit: दुनिया की राजनीति, जिसे जियोपॉलिटिक्स कहते हैं, वो एक नया करवट ले रहा है और पिछले 8 दशकों से अमेरिका और सऊदी अरब की 'भाई-भाई' वाली दोस्ती अब खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आज से 3 दिवसीय सऊदी अरब के दौरे पर जा रहे हैं और दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश के प्रिंस सलमान और अरब वर्ल्ड के तमाम शासकों से मुलाकात करेंगे। चीनी राष्ट्रपति का ये दौरा कई मायनों में अहम माना जा रहा है और विश्व की राजनीति में नये ध्रुव के बनने के संकेत मिल रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कोरोना महामारी फैलने के बाद ये तीसरी विदेश यात्रा है और 2016 के बाद सऊदी अरब की अपनी पहली यात्रा के के दौरान शी जिनपिंग चीन-अरब शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे।
चीन-सऊदी अरब संबंध कैसे हैं?
एक दिन पहले तक ना तो सऊदी अरब ने और ना ही चीन ने पुष्टि की थी, कि शी जिनपिंग सऊदी अरब की यात्रा पर जाने वाले हैं और इस दौरान वो अरब देशों के 16 राष्ट्राध्यक्षों के साथ शिखर सम्मेलन करेंगे, जो गल्फ कॉपरेशन काउंसिल का निर्माण करते हैं। शी जिनपिंग की सऊदी अरब की तीन दिनों की राजकीय यात्रा शनिवार को खत्म होगी, लेकिन सारे संकेत ऐसे मिल रहे हैं, कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, सऊदी अरब में अपना खजाना खोलने जा रहा है। वहीं, सऊदी अरब, जो तेल पर अपनी निर्भरता छोड़कर नई अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहता है, वो चीनी राष्ट्रपति के दौरे को एक बड़े अवसर के तौर पर देख रहा है। वहीं, सऊदी अरब अपने तेल निर्यात का बड़ा हिस्सा चीन को निर्यात करता है, जो सालाना अरबों डॉलर का होता है।
चीन और सऊदी में अरबों की डील
हालांकि, हालिया वर्षों में चीन की अर्थव्यवस्था लगातार गिरावट से गुजरी है और कोविड संकट ने चीन को काफी परेशान किया है। चीन का आर्थिक विकास सितंबर में समाप्त होने वाले आखिरी तिमाही में एक साल पहले के मुकाबले 3.9 प्रतिशत तक पहुंच गया, जो कि इस के पहले छमाही के मुकाबले 2.2 प्रतिशत ज्यादा है। विकास दर तक पहुंचने का सरकार का लक्ष्य अभी भी काफी कम है। बावजूद इसके मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है, कि सऊदी अरब और चीन के बीच 29.3 अरब डॉलर की महाडील हो सकती है। चीन की पूरी कोशिश अमेरिका के साथ सऊदी अरब के संबंधों में आई भारी गिरावट का फायदा उठाने की है और अगर चीन, सऊदी अरब को साध लेता है, तो फिर पूरा अरब बाजार उसके लिए खुल जाएगा।
खराब होते अमेरिका-सऊदी संबंध
जुलाई महीने में जो बाइडेन ने सऊदी अरब की यात्रा की थी और प्रिंस सलमान से तेल प्रोडक्शन बढ़ाने की अपील की थी, लेकिन सऊदी अरब ने बाइडेन की अपील को खारिज कर दिया। वहीं, अमेरिका को आंख दिखाते हुए सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओपेक प्लस ने नवंबर महीने से हर दिन 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल उत्पादन में कटौती करना शुरू कर दिया। इसके बाद से ही अमेरिका और सऊदी अरब के संबंध काफी गरम रहने लगे हैं। अमेरिका ने सऊदी के फैसले की आलोचना की करते हुए मुद्रास्फीति बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया था। वहीं, सऊदी अरब के तेल कटौती फैसले का रूस को भी फायदा मिलने वाला है, उससे भी अमेरिका काफी नाराज है और अमेरिका ने तो सऊदी अरब को परिणाम भुगतने तक की धमकी दे दी है, जबकि बाइडेन प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह चुके हैं, कि सऊदी अरब अब वो पुराना दोस्त नहीं रहा। इसके साथ ही यमन युद्ध को लेकर भी अमेरिका और सऊदी के संबंध खराब हुए हैं और कई अमेरिकी सीनेटर मांग कर चुके हैं, कि अमेरिका को फौरन सऊदी अरब को तेल सप्लाई बंद कर देनी चाहिए।
अमेरिका को संदेश भेजेंगे प्रिंस सलमान?
इस बात की पूरी उम्मीद है, कि सऊदी अरब में चीन के राष्ट्रपति का भव्य स्वागत हो सकता है, जबकि जुलाई महीने में रियाद पहुंचे बाइडेन का काफी सुस्त स्वागत हुआ था। माना जा रहा है, कि शी जिनरपिंग की शानदार मेजबानी कर सऊदी अरब अमेरका को संदेश भेज सकता है, कि उसे दूसरे सुपरवापर का समर्थन मिल चुका है। हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है, कि सऊदी अरब चीन करे साथ नजदीकी संबंध बनाकर केवल अपने हितों और अपने भविष्य की रक्षा कर रहा है। आरबीसी कैपिटल मार्केट्स में ग्लोबल कमोडिटी स्ट्रैटेजी रिसर्च की प्रबंध निदेशक हेलिमा क्रॉफ्ट ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि, "इस तरह की राजनीति का पुनर्गठन हो रहा है और उसमें सवाल ये होता है, कि आपका भविष्य कहां है?" उन्होंने कहा कि, "सउदी के लिए मामला साफ है, वो अपना भविष्य देख रहे हैं।" वहीं, रियाद स्थित गल्फ रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष, सऊदी विश्लेषक अब्दुलअज़ीज़ सगर ने भी इसी तरह की भावनाओं को प्रतिध्वनित किया। सऊदी टीवी अशरक न्यूज से बात करते हुए सगर ने कहा कि, अरब देश पश्चिमी सहयोगियों को बताना चाहते हैं कि उनके पास विकल्प हैं और उनके संबंध मुख्य रूप से आर्थिक हितों पर आधारित हैं।
क्या भारत को चिंतित होना चाहिए?
अगर नजदीकी भविष्य की बात की जाए, तो शी जिनपिंग की सऊदी अरब यात्रा का भारत पर फिलहाल कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, लेकिन सऊदी अरब और चीन के गहरे संबंध का आने वाले वक्त में भारत पर निश्चित ही गहरा असर पड़ेगा। जैसे-जैसे चीन, मध्य-पूर्वी देशों के करीब आता जाएगा, वह इन देशों पर अधिक प्रभाव डालने में सक्षम होगा। और यह भी नहीं भूलना चाहिए, कि भारत केवल चीन के बाद सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार है। लेकिन, मोदी सरकार ने अरब देशों के साथ संबंध मजबूत करने के लिए काफी काम किए हैं और सऊदी अरब और यूएई जैसों के साथ भारत ने काफी मजबूत संबंध स्थापित किए हैं। लिहाजा, चीन के मध्य-पूर्वी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध भारत को सुरक्षा के दृष्टिकोण से जोखिम में डाल सकते हैं।
भारत की सुरक्षा के लिए खतरा
बीजिंग ने पहले ही 2017 में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा अरब के पार स्थापित कर लिया है। नतीजतन, चीन अब लाल सागर और पश्चिमी हिंद महासागर में एक खिलाड़ी बन चुका है, जो भारत के लिए खतरे की घंटी है। नई दिल्ली के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी की निदेशक राजेश्वरी पिल्लई राजगोपालन का मानना है, कि "स्पष्ट रूप से वे भारत के भी करीब और अब चीन के साथ मजबूत संबंध बनना भारत के लिए काफी चिंताजनक है, और हो सकता है, भारत के लिए इसके प्रतिकूल असर हों।" उन्होंने वॉयस ऑफ अमेरिका से कहा कि, "हालांकि ये सिविल प्रोजेक्ट हैं, लेकिन, कुल मिलाकर चिंता यह है कि ये देश चीनी प्रभाव में अधिक से अधिक आ रहे हैं।'
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