5 लाख साल पुराने वायरस को एक्टिव कर रहा रूस, वैज्ञानिक बोले- कुछ गलती हुई तो कोरोना से भी भयंकर होगी तबाही
ऐसा माना जाता है कि इसी वायरस की वजह से उस वक्त के जीवों जैसे कि मैमथ, प्रागैतिहासिक घोड़े और ऊनी गैंडे जैसे विशालकाय जीवों का अस्तित्व खत्म हो गया था।
रूस 5 लाख साल पुराने वायरस को सक्रिय करने में जुट गया है। इसके लिए साइबेरिया शहर के नोवोसिबिर्स्क में एक पूर्व बायोवेपन्स प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों की एक टीम दिन-रात इस पर काम कर रही है। पश्चिमी देशों के विशेषज्ञों ने इसे लेकर चेतावनी भी जारी की है। उनके मुताबिक ये वायरस आधे मिलियन वर्ष से निष्क्रिय पड़े हुए हैं जिन्हें एक बार फिर से सक्रिय करने का प्रयास रूसी वैज्ञानिक कर रहे हैं। अगर कुछ गड़बड़ी होती है तो इसका अंजाम कोरोना से भी अधिक खतरनाक होगा और इससे मानव जाति का अस्तित्व मिट जाने का भी खतरा बरकरार रहेगा।
हिमयुग काल के हैं ये वायरस
वायरोलॉजी के वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर के ये वैज्ञानिक हिम युग के समय के इस वायरस पर काम कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी वायरस की वजह से उस वक्त के जीवों जैसे कि मैमथ, प्रागैतिहासिक घोड़े और ऊनी गैंडे जैसे विशालकाय जीवों का अस्तित्व खत्म हो गया था। ये वैज्ञानिक लाखों साल पुराने इन संरक्षित जीवों के शव का अध्ययन करने में जुटे हुए हैं। इन वैज्ञानिकों का उद्देश्य इन जीवों की मृत्यु का कारण बनने वाले वायरसों को निकालना और उनका अध्ययन करना है।
-55 डिग्री तापमान
द मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 5 लाख साल पुराने विशालकाय मैमथ और ऊनी गैंडों के विशालकाय शव रूस के याकुटिया नाम की जगह पर 2004 में मिले थे। याकुटिया का तापमान -55 डिग्री तक ठंडा होने के कारण यहां पर लाखों साल पुराने जीव संरक्षित हैं। रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों को मैमथ के शरीर से अजूबा वायरस मिला है। इस वायरस का नाम पैंडोरावायरस येडोमा है। ऐसा माना जाता है कि इन वायरस की वजह से ही इन विशालकाय जीवों का पृथ्वी पर से अस्तित्व मिट गया। ऐसे में कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इन निष्क्रिय वायरस वाले मृत जानवरों का अध्ययन करना जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि ये वायरस जीवित शरीर में फैल कर तबाही मचा सकते हैं।
आ सकती है एक और महामारी
लंदन के किंग्स कॉलेज के बॉयो सिक्योरिटी एक्सपर्ट फिलिपा लेंट्जोस ने चेतावनी दी है कि ये वायरस जिंदा होकर किसी तरह से लैब के बाहर आता है तो दुनिया में एक और महामारी आ सकती है। उन्होंने कहा कि ये बेहद जोखिम भरा यानी आग से खेलने जैसा है। यूनिवर्सिटी ऑफ ऐक्स-मार्सिले में नेशनल सेंटर ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के प्रोफेसर जीन-माइकल क्लेवेरी ने द टाइम्स को बताया, "वेक्टर अनुसंधान बहुत, बहुत जोखिम भरा है। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कभी भी इस प्रकार के वायरस का सामना नहीं करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि मनुष्य इन लाखों साल पुराने वायरस का सामना नहीं कर पाएंगे।
बेहद विवादित लैब रूसी लैब में हो रहा प्रयोग
प्रोफेसर ने बताया कि जिस लैब में यह प्रयोग हो रहा है वह बेहद विवादित रह चुका है। इसी लैब में साल 2019 में एक गैस विस्फोट हुआ था। इस दौरान इस लैब में बुबोनिक प्लेग, एंथ्रेक्स और इबोला सहित बेहद खतरनाक बीमारियों के वायरस मौजूद थे। इस दौरान एक लैबकर्मी जिंदा जल गया था। उन्होंने आगे कहा कि इसी लैब में एक स्टाफ ने गलती से इबोला वायरस संक्रमित सुई चुभो लिया था जिसके बाद उसकी तड़प-तड़प कर मौत हो गई थी। प्रोफेसर ने कहा कि वेक्टर रिसर्च सेंटर दुनिया के उन दो लैबों में से एक है जहां खतरनाक चेचक वायरस अब भी सुरक्षित रखे हुए हैं।
वायरस के कारण फैल चुकी हैं बीमारियां
प्रोफेसर ने जोर देकर कहा कि ऐसा नहीं है कि इन लाखों साल पुराने जानवरों के अवशेषों पर टेस्ट नहीं हो सकता है। बेहद सुरक्षित तरीके से ऐसा किया जा सकता है मगर अभी के हालात इसके अनुकूल नहीं हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों और रूस के वैज्ञानिकों के बीच संचार बंद हो चुके हैं। इससे पहले भी कई बीमारियां इन वायरस के कारण फैल चुकी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये लैब में टेस्ट के दौरान हुई विफलता के कारण ही उत्पन्न हुए थे।
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